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________________ १७८] पार्श्वनाथचरित [विज्जुकुमारविजकुमार-विद्युत्कुमार (= भवनवासी विमण-विमर्दन( = नाश करनेवाला)६.३.९:११.६.९,१२.५.२ देवोंका एक भेद) १६.९.६. विमल-त स १.३.३;१.१४.१,१.२३.७;३.२.२;१७.१०.७. /विज्झ-व्यध (= वेधना) विमलबुद्धि-त स (= एक ज्योतिषीका नाम) १३.५.८. वर्त तृ. ए. विज्झइ ८.२१.११. विमाण-विमान ( = कल्प; स्वर्ग) ४.१.२,४.११.७;७.११.११ विज्झ-(= धक्का ) १.२३.५,३.१४.९. विमाण–विमान ( = आकाश यान) १४.४.९,१४.५.१. विद्वि-विष्टि ( = बेगार ) ३.३.५. / विमुच्च-वि + मुंच ( = छोड़ना) विहि-वृष्टि ८.४.१. वर्त० तृ० १० विमुच्चइ १.४.९. विड-विट १.१६.६. भू० कृ. विमुक्क १.१.४;६.७.७,१२.११.१५ विडप्प-(= राहु, दे. ना० ७.६५), १२.१४.५. विमुहिय-विमुखित (= विमुख; रहित ) १४.९.३. विणट्ठ-वि + नश का भू० कृ १.११.१२. विमूढ–त स (=मूर्ख ) २.५.१२. विणय-विनय १.८.६,१.१४.२,२.६.७;८.२०.१४ /वियंभ-वि+ जम्भ (= प्रकट होना) विणास-विनाश १.२०.५,२.११.६.. वर्त० तृ० ए० वियंभइ २.१५.८,१२.१२.२२. /विणिवाय-वि + नि+पातय (= मार गिराना) भू० कृ. वियंभिय १.२.१०. वर्त० तृ० ए० विणिवायइ ६.५.१३. -वियंभियय ८.१६.१०. विणु-विना १.४.१,३.८.७ वियखण-विचक्षण १.२.४; १.३.७,५.२.१०,१३.३.५ विष्णत्त-वि+ज्ञपय का. भू. कृ. १.१७.६,१.१९.६,९.९.१ वियड्ढ-विदग्ध (= चतुर ) ९.६.३. विण्णप्पय-वि+ज्ञपय का. भू. कृ. १२.४.२ " वियप्प-विकल्प ( = कल्पना) ५.२.८,१४.१९.७. विण्णाण-विज्ञान २.१.९;८.१८.१०. वियप्पिय-वि+कल्प का भू० कृ०१.१४.१२. वित्त-वृत्त (=हुआ) १.१४. ५,९.११.३ विलिंदिय--विकलेंद्रिय ३.३.१०,१८.३.२. वित्त-वृत्त (= गोला) १४.२०.११ वियसिय-विकसित २.१.८;२.३.१०;६.९.३;६.१४.१२ वित्तय-वित्त + क (= विख्यात ) १४.८.११ वियाणय-विज्ञायक (= जानकार ) ६.७.१ वित्थार-विस्तार ६.१६.४. वियाणिय-वि+ज्ञा का भू.कृ. ७.३.५८.१८.१, वित्थारिय-वि+ स्तृ का. प्रे० भू० कृ० १.८.३ °वियार-विकार ३.८.४;६.९.४. वित्थिण्ण–विस्तीर्ण १.७.४. वियार-विचार १.३.६. विदिगिच्छ-विचिकित्सा ( = सम्यक्त्वका एक दोष) ३.५.२. वियारण-विदारण २.१२.२. विदेह-त स (= विदेह क्षेत्र) ४.४.१;६.१.३,१६.१२.१ वियारय-विदारक ८.३.११ विदाण-विद्राण (= दुखी ) ६.१३.५ वियारिवि-वि + चारय (= विचार करना ) का पू० कृ. विहारिवि-वि+दार (= चीरना ) का. पू० कृ. ७.१.७.। विद्दाविणि-विद्राविणी (= नाशकारी) ७.१.७.. विरइय-विरचित १.३.७८.१.४. विद्दुम-विद्रम १७.१३.७... विरस-त स (=रस रहित; दीप्तिहीन) १०.१२.६. विद्ध-बिंधा हुआ (= एक ग्रहदोष ) १३.७.१... Vविरस-वि + रस (=क्रन्दन करना) विद्धि-वृद्धि १०.८.४. .. वर्त० तृ० ब० विरसहिं १४.१७.७. विप्प-विप्र १.९.१; विरह-त स १.११.१.२,९.२. विभच्छ—बीभत्स ५.१२.४.. विरहाउर-विरहातुर १०.१२.५. विभासिय-विभाषित (=कहा हुआ) ७.२.४... विरहिय–विरहित ५.४.२,५.४.७. विमण-(= अनमना-शिथिल ) ५३.१६.१,१३.१९.१. विराल-विडाल २.१२.४;३.१०.४,१५.४.५ -विमणगत्त १३.१९.१.. विरुद्ध-त स १.२.७,९.११.६;११.१३.१५ -विमणमण १३.१६.१. विरोह-विरोध १.२०.२,१४.८.८. /विमण्ण-वि + मन् (=मानना') विरोहविरुद्ध विरोधविरुद्ध ७.१०.१४. वर्त० द्वि. ए. विमण्णहि ९.९.१०.. विरोहिय-विरोधन + क १.१९.१०.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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