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________________ १०४] पार्श्वनाथचरित [१७, १४हेमवर्णसे शोभित थे। श्रेष्ठ केवलधारियोंने जिनागममें ऐसा ही कहा है। विषयवनमें अग्निशिखा रूप पार्श्व और सुपार्श्व ये दोनों प्रियंगु (हरित ) वर्ण थे । गुणोंसे निर्मल शशिप्रभ और पुष्पदन्त शंख तथा कुंदके समान उज्ज्वल थे। गुणोंके सागर जिनवर वासपज्य तथा पदमप्रभ दोनों ही विद्रम वर्णके थे। जिनवर मनिमवत तथा अ. म वर्णके थे। जिनवर मुनिसुव्रत तथा अत्यन्त बलशाली नेमि ये दोनों विमल और अमल मरकत (नील) वर्णके थे। कुछ जिनवर इक्ष्वाकु वंशमें उत्पन्न हुए कुछ हरिवंशमें पैदा हुए तथा कुछने सोमवंशमें जन्म लिया। सबके ( जन्मसमय ) अतिशय हुए ॥१३॥ प्रथम दस तीर्थकरोंकी आयुका प्रमाण तीर्थंकर ऋषभकी आयुका प्रमाण चौरासी लाख पूर्व कहा गया है । जगके स्वामी अजितका आयु-मान बहत्तर लाख पूर्व जानो । सम्भवकी आयुका प्रमाण गणनाके अनुसार साठ लाख पूर्व जानना चाहिए। गुणके समुद्र जिनेन्द्र अभिनन्दन पचास लाख पूर्व जीवित रहे । पाँचवें ( तीर्थकर सुमति ) ने यहाँ ( इस पृथिवीपर ) चालीस लाख पूर्व पर्यन्त निवास किया था । सुखसे समृद्ध प्रसिद्ध जिनवर पद्मप्रभ तीस शतसहस्र पूर्व तक तथा त्रिभुवनको प्रकाशित करनेवाले सुपार्श्व भरतक्षेत्रमें बीस लाख पूर्व तक जीवित रहे । तपों और नियमोंके भण्डार चन्द्रप्रभुने पृथिवीपर दस लाख पूर्व तक निवास किया । सुविहितकी आयु दो लाख पूर्व थी। उन्होंने पृथिवीपर क्षान्ति और इन्द्रिय निग्रहसे युक्त तप किया । जगके स्वामी शीतलकी (आयु) गणनाके अनुसार एक लाख पूर्व बताई गई है। ऋषभादि प्रथम दस जिनेन्द्रोंकी आयु ( उक्त प्रकारसे ) बताई गई है। हे नराधिप, उस सबको मैंने संक्षेपमें तुझे समझाया ॥१४॥ श्रेयांस आदि चौदह तीर्थंकरोंकी आयुका प्रमाण । श्रेयांस जिनेन्द्रकी अत्यन्त उज्ज्वल ( आयु ) चौरासी शतसहस्र वर्षकी थी। पृथिवी-पूजित जिनदेव वासुपूज्य बहत्तर लाख वर्ष जीवित रहे । विमल जिनवरकी आयु साठ शतसहस्र वर्षकी कही जाती है । अनन्त जिनवरने पृथिवीपर तीस लाख वर्ष तक तप किये और धर्मका प्रचार किया। शुभ कर्मोंका संचय करनेवाले तीर्थङ्कर धर्मने दस लाख वर्ष तक ( पृथिवीपर ) निवास किया । परमार्थ-चक्षु तीर्थङ्कर शान्ति गजपुरमें एक लाख वर्ष तक रहे । जिन्होंने सहस्रों गुणों और मार्गणाओंका प्रदर्शन किया उन कुन्थुने पंचानबे हजार वर्ष तथा अर जिनेन्द्र ने चौरासी हजार वर्ष तक सुरेन्द्रके समान हस्तिनापुरमें निवास किया। जिन्होंने चतुर्गतिरूपी पापबेलको काट फेंका वे मल्लि-तीर्थङ्कर पचपन हजार (वर्ष) तथा जिन्होंने जगको हिंसा रहित किया वे मुनिसुव्रत तीस हजार वर्ष जीवित रहे। जिनवर नमिकी आयु दस हजार वर्ष तथा तीर्थङ्कर नेमिकी एक हजार (वर्ष ) थीं। पार्श्वकी आयुका मान सौ वर्ष तथा वर्धमानकी (आयुका मान ) सत्तर वर्ष था। चौबीसों जिनेन्द्रोंकी आयु केवलज्ञानसे ज्ञात हुई है । हे रविकीर्ति राजन् , वह सब मैंने तुम्हें स्पष्टरूपसे बताई ॥१५॥ प्रथम दस तीर्थकरोंके तीर्थकी अवधि प्रथम तीर्थकालको पचास लाख करोड़ सागर प्रमाण जानो। जगके स्वामी अजितका तीर्थकाल तीस लाख करोड़ सागरकी संख्याका था। सम्भवका तीर्थकाल दस लाख करोड़ सागरका था। इस कालमें समस्त ज्ञानोंके विशेष ज्ञाता थे। अभिनन्दनका तीर्थकाल नौ लाख करोड़ सागर था । पाँचवें (सुमति) का तीर्थकाल, जिसमें आशाओंकी पूर्ति हुई, नब्बे हजार करोड़ सागर था। छठवें तीर्थङ्कर (पदम) का तीर्थकाल मुनियों द्वारा निश्चित रूपसे नौ हजार करोड़ सागर कहा गया है। जिसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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