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________________ १७, १३ ] अनुवाद [१०३ "सुमति तथा छठवें शुद्ध भाव ( वाले ) 'पद्मप्रभु हैं। सातवें अत्यन्त महान् 'सुपार्श्व हैं। तदनन्तर चन्द्रप्रभु, सुविहित 'पुष्पदन्त, शीतल, सुरेन्द्र पूजित, "श्रेयांस तथा बारहवें जिनवर 'वासुपूज्य हैं। फिर परमेश्वर विमल, "अनंत, "धर्म, जिनवर, "शान्ति, "कुंथु, कर्मोंका नाश करनेवाले "अर, समूचे जगके स्वामी तीर्थङ्कर "मल्लि, मोक्ष प्राप्त करनेवाले जिनवर "मुनिसुव्रत, 'नमि, "नेमि, "पार्श्व तथा हतशरीर कामदेवको जोतनेवाले अन्तिम ( तीर्थङ्कर ) “वीर ( वर्धमान महावीर ) हैं । मनुष्यों और देवों द्वारा नमस्कृत तथा त्रिलोकके स्वामी तीर्थङ्कर चौबीस कहे गये हैं। अब तुम उनकी ऊँचाई, (उत्पत्ति ) स्थान, वर्ण, आयु तथा उनके धर्म ( प्रवर्तनके काल ) का प्रमाण सुनो ॥१०॥ तीर्थकरोंकी कायाका प्रमाण आदि तीर्थकर ( की ऊँचाई ) पाँच सौ धनुष तथा अजितकी पचास (धनुष) कम उतनी ही। कामका क्षय करनेवाले सम्भवकी चार सौ ( धनुष ) तथा अभिनन्दन की ( ऊँचाई ) साढ़े तीन सौ थी। जिनवर सुमति तीनसौ धनुष तथा पद्मप्रभ दो सौ पचास (धनुष ) ऊँचे कहे गये हैं। घोर अन्धकारका नाश करनेवाले सुपार्श्व दो सौ तथा जिनके चरणों में सुर प्रणाम करते हैं वे शशिप्रभ डेढ़ सौ (धनुष ऊँचे थे)। गुणोंके भण्डार जिनवर सुविहित (पुष्पदन्त ) सौ तथा जिनवर शीतल नब्बे धनुष थे। श्रेयांस जिनवर अस्सी धनुष और बारहवें ( वासुपूज्य ) सत्तर धनुष थे। विमलकी ऊँचाई साठ धनुष तथा अनन्तकी पचास कही गई है। तीर्थकर धर्म पैंतालीस धनुष तथा अच्छे कर्मोंके कर्ता जिनवर शान्ति चालीस धनुष ( ऊँचे थे) और भट्टारक कंथ पैंतीस तथा धर्मका प्रवर्तन करनेवाले अर तीस थे। तीर्थंकरदेव मल्लि पच्चीस तथा मनुष्यों और देवों द्वारा सेवित बीसवें ( मुनिसुव्रत ) बीस (धनुष ऊँचे थे)। जिनवर नमिकी देह पन्द्रह (धनुष ऊँची) तथा अन्धकारको दूर करनेवाले नेमि दस धनुष ऊँचे थे। जिनकी कोई तुलना नहीं है वे पार्श्व नौ हाथ तथा श्री वर्धमान जिनवर सात हाथ ( ऊँचे ) थे। हे नराधिप (रविकीर्ति ), यह मैंने तीर्थंकरोंकी ऊँचाई मनसा-पूर्वक बताई। अब वे परमेश्वर जिन-जिन नगरियों में उत्पन्न हुए थे उनके नाम तुम सुनो ॥११॥ तीर्थकरोंके जन्म-स्थान पहिले (ऋषभ ) दूसरे ( अजित ), चौथे ( अभिनन्दन ) पाँचवे ( सुमति ), तथा संयम और नियमके धारण करनेवाले चौदहवें ( अनन्त ) इन पाँचोंने अयोध्यामें निवास किया । गुणोंके भण्डार सम्भवने श्रावस्तीमें (निवास किया ) । पदमप्रका निवास कौशाम्बीमें तथा सुपार्श्व और पार्श्वका निवास वाराणसीपुरीमें रहा । महान् चन्द्रप्रभ चन्द्रपुरीमें, जिनवर पुष्पदन्त काकंदीमें चरमदेह शीतल भद्दलपुरीमें, मोहका क्षय करनेवाले श्रेयांस सिंहपुरीमें, धवल-वंशोत्पन्न बारहवें (वासुपूज्य ) चम्पामें. जगमें प्रशंसित विमल कम्पिलामें तथा तीर्थकर धर्म रत्नवाहितामें (उत्पन्न हुए)। जो चक्रवर्ती भी थे उन तीनों ( शान्ति. कंथ और अर) का जन्म गजपुर (हस्तिनापुर ) में हुआ। जयश्रीसे युक्त तथा भुवनके स्वामी नमि और मल्लि ये दोनों मिथिलामें उत्पन्न हए । मुनिसुव्रतने कुशाग्र (राजगृह ) नगरीमें तथा रागका शमन करनेवाले नेमिने शौरीमें जन्म लिया। वर्धमान जिनवर भारतक्षेत्रमें जन तथा धनसे समृद्ध कुण्ड ग्राममें उत्पन्न हुए। __ बारहवें ( वासुपूज्य ), नेमि, जिनेश्वर मल्लि, पार्श्व तथा चौबीसवें ( महावीर ) इन पाँचों जगके स्वामियोंने कुमारावस्थामें ही तप ग्रहण किया ॥१२॥ १३ तीर्थकरोंका वर्ण ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, कामदेवका नाश करनेवाले सुवीरु (महावीर), शीतल, जिनवर भट्टारक श्रेयांस, विमल, अनन्त, जगमें श्रेष्ठ धर्म, शान्ति, जिनेश्वर कुंथु, अर, मल्लि तथा नमिनाथको मिलाकर ये जगके परमेश्वर जिनवर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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