SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०] पार्श्वनाथवरित [ १, २२२२ कमठ द्वारा मरुभूतिकी हत्या; दोनोंका पुनर्जन्म जब मरुभूति इस प्रकारसे क्षमा-प्रार्थना कर रहा था तब कमठ (क्रोधसे) जलता हुआ उठा। उसका मुँह रुधिरके समान लाल हो गया और उसने (मरुभूतिपर) एक भीषण दृष्टि डाली। फिर एक शिलाखण्ड हाथमें लेकर प्रहार किया। उस गुरु-प्रहारसे (वह मरुभूति) आहत हो मूर्च्छित हो गया और पृथिवीपर गिर पड़ा। उस (कमठ)ने उस पर शिलाखण्डसे पुनः पुनः और जल्दी-जल्दी घातक प्रहार किए । अन्तमें मरुभूति विपके जीवने वेदनासे पीड़ित शरीरको छोड़ा। वह महावनमें हिमगिरिके समान धवल और उज्वल गजके रूपमें उत्पन्न हुआ। वह लम्बी सूंडवाला, मदसे विहल और क्रोधी हाथी अशनिघोष नामसे प्रसिद्ध हुआ। कमठ-प्रिया वरुणाने भी मनुष्य-भवमें बहुत दु:ख भोगकर अन्तकाल किया। वह उस मत्त गजेन्द्रकी हृदयसे इच्छा करनेवाली प्रथम पत्नी हुई। उसी समय कमठने भी अनेक कष्ट सहनेके पश्चात् अन्तकाल किया। वह उसी वनमें अत्यन्त भयावह, जगको अशोभन प्रतीत होनेवाला, जीवोंका नाश करनेवाला और दुःखसे परिपूर्ण कुक्कुट नामका भयंकर सर्प उत्पन्न हुआ ॥२२॥ गजकी स्वच्छन्द क्रीडा वह अशनिघोष गजराज अपने समूहके साथ सम्पूर्ण वनमें बड़े अनुरागसे घूमता था तथा अपने पूरे समूहकी रक्षा करता था । वह सल्लकीके कोमल पत्तोंको खानेमें दक्ष था। (गज) समूहका वह प्रधान राजपथसे आने-जानेवाले सार्थों को नष्टभ्रष्ट करता था । वह (अपनी) स्थिर सैंडसे पद्मिनीके उत्कृष्ट नालों के द्वारा श्रेष्ठ करिणियोंको पंखा करता था। वह मदोन्मत्त हाथी पर्वतकी चोटीपर धक्का मारता था तथा बड़े-बड़े वृक्षोंको उखाड़कर अपनी सूंडसे पकड़ रखता था। वह मकरन्दकी गन्धसे अत्यन्त सुगन्धित और निर्मल जलमें आनन्द पूर्वक अवगाहन करता था, करिणियोंकी क्रीडाओंमें लीन था एवं मदनातुर हो रति-रसके रागमें डूबा हुआ था । वह गजाधिप सहस्रों रुकावटोंका वनमें क्षय करता एवं (दांतोंसे) ठेल मारता हुआ घूमता था। करिणियोंके संगमें मदसे मत्त, विषयों में प्रसक्त तथा चन्द्रमाकी किरणोंके समान निर्मल वह गजराज पृथिवी पर जलनिधिके समान मनोहर तथा पोंसे विभूषित सरोवरोंमें भ्रमण करता फिरता था ॥२३॥ ॥पहिली सन्धि समाप्त ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy