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________________ १५६] पउमकित्तिविरइड [१७,१७,१ सेयंसहाँ तित्थु णिरंतराइँ चउअण्णइँ वूहउ सायराइँ। बारहमउ सायर वृहु तीस सिव-मुहु जहिं पाविउ सयल सीस । णव विमल जिणिंदहो भासियाइँ जहिं संजम-चयइँ पयासिया। सायर चयारि गुणाहिवहो भाँसियइँ अणंत जिणाहिवहो । तित्थयरहों धम्मों सायराइँ अक्खियइँ तिण्णि बहु-गुणकराई। पर ताइँ जिणागमें कहियाइँ तिहि पायहि पल्लहाँ रहियया। पल्लद्ध संति-जिणवरहाँ तित्थु पल्लोवमु भाउ चउत्थु कुंथु । तं वरिस-सहस-कोडीहिँ ऊण इंउ कहिउ जिणागमें फुड अणूणु । ऍहु ऍकु सहसु कोडिहँ" पवित्तु अर-तित्थ वृहु वरिसह महंतु । पत्ता- उवहि सयइँ जिण-सीयलहों ऊणउ तित्थु जं उत्तउ । सेयंस-आइ जिण-अहँ मि तं" ऍउ कहिउ णिरुत्तउ ॥ १७ ॥ 5 . जिण-मल्लि-तित्थु चउअण्ण लक्ख छहि लक्खहि मुणि सुव्वयहाँ संख । णमि-तित्थु भडारउ पंच लक्ख जहि सिद्धिहि रिसि मुणिं गय असंख । तेयासी सहसइँ सयइँ सत्तु ऍउ णेमि-तित्थु पंचास वुत्तु । तित्थयरहो पासहाँ दुइ सयाँ पंचाँसहि वरिसहि संजुयाइँ । अंतिमउ तित्थु तित्थावसाणु इकवीस सहस वरिसह पमाणु । जे (रिय सहसहँ वरिस के वि अइदूसम- कालहों मज्झि ते वि । छासहि लक्ख जे पुच कहिय छव्वीस सहस वरिसेहि रहिय । तित्थयरु मल्लि आइहि करेवि पूरविय संख सा इह गणेवि । घत्ता- तित्थयरहो तित्थ-पमाणइँ तुज्झु णराहिव कहियइँ । चक्कहरहँ ऍवहि णामइँ णिसुणि जिणागमि भणियइँ ॥ १८ ॥ 10 पढमउ भरहु आसि चक्केसरु विजउ सयरु पुहइ-परमेसरु । तिजउ मघवा आसि अखंडिउ वैसि किउ जेण भरहु पुर-मंडिउ । (१७) १ ख- तित्थू । २ क- वृहई । ३ ख- पाविय । ४ ख- अक्खियई । ५ ख- सुहसायराइं । ६ ख- ताई । ७ ख- रहियाइं । ८ ख- तित्थू । ९ ख- एउ । १० ख- एकु । ११ ख- कोडिहुं । १२ ख- तेत्थु जं वुत्तउ । १३ ख- अट्ठमिहि । १४ क- तइउ ।। (१८) १ ख- जिणु । २ ख- तित्थू । ३ ख- वुत्तु । ४ ख- सयाइई । ५ ख- पंचाइहिं । ६ ख- संजयाई । ७ ख- में यह पूरी पंक्ति छूटी है । ८ क- वरिससहसउ धरिय के वि । ९ ख- पुचि । १० क- एमइ; ख- एवइ । (१९) १ ख- विजउ सगरु । २ क- में यह आधी पंक्ति छूटी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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