________________
-१७, १६, १४]
पासगाहचरिउ
दस वरिस लक्ख तित्थयरु धम्मु परिवसिउ आसि संचिय-सुकम्मु । तित्थयरु संति परमत्थ-चक्खु थिउ गयउरें वरिसह एकु लक्खु । पणणवइ कुंथु वरिसह सहास
जें दरिसिय गुण-मग्गण-सहास । चउरासी सहसइँ अरु जिणिंदु हथिणारे णिवसिउ णं सुरिंदु । पणवण सहस तित्थयरु मल्लि जें तोडिय चउगइ-पाव-बेल्लि । मुणिसुव्बउ वरिस-सहास-तीस जीवियउ जेण जैग किय अहिंस । दस-वरिस सहस णमि जिणहाँ आउ "णेमिहे तित्थयरहों सहसु जाउ । सउ वरिसहँ पासो आउ-माणु बाहत्तरि वरिसइँ वड्ढमाणु । धत्ता- चउवीसंहँ आउ जिर्णिदेह केवलणाणे भासियउ।
रविकित्ति णराहिव तुम्हहँ त मैं सयलु पयासियउ ॥ १५ ॥
पंचास-लक्ख-कोडिहिँ पमाणु सायरहँ तित्थु पढमउ वियाणु । अजियहाँ जगणाहहाँ तीस लक्ख कोडिहि चूहु सायर| संख । देह कोडि लक्ख उवहिउ असेसु संभवहाँ तित्थु जाणिय-विसेसु । णव कोडि लक्ख उवहिहि विसालु अहिणंदण-तित्थहाँ कहिउ काल । पंचमउ णवइ कोडिहिँ सहामु सायरहँ वूहु जहि पूरिआसु । णव-कोडि-सहस-उवहिहि णिरुतु छट्टउ तित्यंकरु मुणिहिं वुत्तु । णव कोडि सयइँ सायरहँ तित्थु सत्तमउ आसि णासिय-कुतित्थु । जलर्णिहिहि णवइ कोडिहि विचित्तु अट्ठमउ तित्थु बोल्लिय अचिंतु । णवमउ तित्थंकरु गुण-समूहु उहिहि णव कोडिउ आसि बहु । णव-णवइ लक्ख सायरहँ कहिय णव-णवइ संहास सायरहि सहिय । सीयल-जगणाह-जिणेसरहो ऍउ तित्थु वृहु परमेसरहो। अह एक कोडि सायरहँ कहिय इह उर्वहि-सयइँ ऍक्केण रहिय । घत्ता- छासहिहि लक्खहि वरिसहँ दसमउ जग-परमेसरण ।
छब्बीस सहासइँ अण्णु वि" ऊणउ कहिउ जिणेसरण ॥ १६ ॥ ७ ख- संचिउ सुधम्मु । ८ क- वरेहि सह ए । ९ ख- उरि णिवसाउ तें सु। १० क- पण्ण । ११ ख- किय तिविह वेस । १२ क, स्व- मिहि । १३ क- जिणिदहो । १४ क- मय ।
(१६) १ ख- दस । २ ख- संभवहुं तित्थ । ३ ख- हि । ४ ख- णिहिहु । ५ ख- उवहिहु । ६ क- सहसणवसयहि सहिय । ७ ख- तेत्यु । ८ ख- उअहि । ९ ख- एकेण । १० ख- सहि । ११ ख- मि । १२ ख- ओणउ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org