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पउमकित्तिविरइउ
[१३, १५, ५
को मुंहड जिणेसइ समरि जउणु कहि लब्भइ पइँ सम-सरिसु रैयणु । मइँ मल्लिवि कहि तुहुँ गयउ देव हिय-इंछिय हँउँ तुह करमि सेव । मइँ काइँ वराएँ कियउ तुज्झु जे दिण्णु दुक्खु ऐवड्डु मज्झु । 'ऍत्थंतरि मंतिहि वुत्तु एउ मं रोवहि णरवइ मल्लि सोउ । परमेसरु सो तित्थयरु देउ
परमत्थ-वियक्खणु मुणिय-भेउ । रइ करइ केम संसार-वासि जर-मरण-बाहि-बहु-दुह-णिवासि । पत्ता- तुहुँ गर-पुगैव-माणुसु सो जग-सामिउ देउ ।
कह ऍक्केंट' वासउ तुम्हहँ सैरिसउ होउ ॥ १५ ॥
रविकित्ति पुरहों गउ विमण-मणु रोवंतु सबंधव-सुहि-सयणु । तहि कालि पहावइ सुणिवि वत्त । जागणाहहाँ केरी मुच्छ पत्त । हा दुट्ठ-विहिह छलु काइँ एउ जगणाहें सहु जं किउ विओउ । किं तुज्झु पयावइ एउ जुत्तु पव्वज़हि जं महु ठवहि कंतु । किं तुज्झु णाहि कारुण्ण-भाउ जं देहि मज्झु एचड्डु घाउ । किं दिव्य दइय तउ गेहि णाहि जं पिसुण-सहा मज्झु जाहि । अह इत्थु दोसु को देइय तुज्झु पुव्व-किउ आयउ कम्मु मज्झु । किउ अण्ण-जम्मि सइँ आसि पाउ उप्पण्णु तेण भोगंतराउ । जगणाहहाँ जा गइ महु वि सा वि इह जम्मि अवर महु णाहि का वि । पत्ता- मेल्लिवि पासकुमारु अवरहों मझु णिवित्ति ।
एह पइज्ज पहावइ करइ जमुज्जल चित्ति ॥ १६ ॥
उव्वाइलेण रविकित्ति राउ | सुमरेवि बहिणि हय-गय-सहाउ । वाणारसि-णयरिहे गउ तुरंतु विवणम्मणु पासही कह केहंतु । जाइवि हयसेणु णरिंदु दिठु पणवेप्पिणु आसणे पुणु वइछ । अक्खिय असेस संगाम-वत्त
जह लइय दिक्ख पासे महंत । तं वयणु मुणिवि हयसेणु राउ महि पडिउ णाइ दारुणु णिहाउ । चेयण लहेवि रोवणहँ लग्गु
महु अज्जु मणोरह-थंभु भग्गु। । ७ ख- सुहडू । ८ ख- वयणु । ९ क- मिल्लिवि । १० ख- तुम्हहं कर । ११ क, ख-एवडु ! १२ ख- एत्यंतरें । १३ क- णिवासे । १४ क- पुंगम माणु । १५ ख- एकट्टहिं । १६ क- सरसउ ।।
(१६) १ ख- प्रति का पत्र क्रमांक ६२ गुम हुआ है अतः यहां से लेकर १८ वें कडधक की पांचवीं पक्कि का पाठ केवल क प्रति के आधार पर संशोधित किया गया है। २ क- सिहु । ३ क- एवडु । ४ ख- इत्थ । ५ क- दईय ।
(१७) १ ख- करंतु । २ क- जायवि । ३ क- रोवणइ ।
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