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- १३, १९, ११]
पासणाहचरिउ
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असहाउ अज्जु हउँ अज्जु वुण्णु महु को वाहिका देमि वाय
घत्ता - पइँ विणु अज्जु महाबल पुरि वाणारसि सुण्णी । सरण का पईसमि भग्ग-विहूण अवण्णी ।। १७ । १८
महु अज्जु असे वि अणु सुण्णु । इय वत्त मरण - सम-सरिस आय ।
रोवंत मंतिहि पुहविणाहु जो मेरु- सिहरें हाविउ सुरेहि सो रमइ केम पहु मणुत्र-जम्मे
महि पुराणहि अह गरिंद चवीस होति देवाहिदेव तेवीस जिणवरु एहु जाउ तिथयर देव जे विगय-कोह संसारि णाहि जहँ को वि लोहु संबोउि "मंतिहि एम राउ घत्ता - पासकुमार - विओएँ ववगय- पउरुस - माणु ।
विकित्ति राहिउ विमण-गत्तु तेहें चलण-जुअल पणविवि सिरेण परमेसरि अणु सु हउँ अलज्जु णिय- बहुहि आहवि उणु लेवि जिण - दिक्खहि थिउ तुम्हहँ कुमारु रविकित्ति वत्त इह कहइ जाम सिंचिय गोसीरिस - चंदणेण
हँ लग्ग कारुण्णु देवि
वि
पणिउ हो मेलहि पुत्त-गाहु । पणविज्जर जो इह णरवरेहि । परिसेसिवि जो घरु ठियउ धम्मँ । किं हि तुम्हइँ हुय जिणिंद | मोखाणुगामि र सुर-सुसेव । बाल वि जें जीतिउँ मयणु राउ । फेडिय असेस कलि-मल समोह । घर-वासि जाहि ते केम मोहु । her असे चित्त बिसाउ ।
थि इसे विसरणउ णं पसु गलिय-विसाणु ॥ १८ ॥
१९
दूस
-
तह "विर णाहि हु का विस "विर का महु जीविएण
मादेवि पासु पत्तु । उ बहिण वृत्त कोमल-संरेण । विणु पासें जें इह आउ अज्जु । णिक्कंटर अम्ह रज्जु देवि । लेव असेसु वि रज्ज-भारु । मुच्छावियम्मादेवि ताम । चेयण लहेवि उट्ठय खणेण । तिण- सरिसउ णिय-जीविउ गणेवि । कहि गयउ धुरंधरु मँइँ मुवि । हा सुहड धीर कहि ँ गयउ पास । - रज्जे कु विगुणु णाहि एण |
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(१८) १ क- रोमंतउ । २ क- आगमहे पुराणहे । ३ क- णिसुणहि तुम्हहि । ६ क- जहि । ७ क- मंति है ।
(१९) १ क- तहि । २ क- सिरेहि । ७ क- रोवणहे । ८ क कारुणु । ९ ख
३ क - सरेहि । ४ क - बाहहि । इय। १० क महु । ११ ख- विरहि ।
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४ क- जितिउ ।
५ क- जिणु । १२ क- मुहु ।
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५ क - तिथयर ।
६ क- गोसीरस । १३ ख - विरहि ।
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