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-२, १०, १०]
पासणाहचरिउ
जाणेविणु दिक्खहि पहु णिसत्तु जं अम्हहिं दिक्खहि णिंद कीय पाविजहि जिणवर-धम्म मोक्खु जिण-सासणि संसउ णाहि को वि। अज्जु वि तुह णंदणु वालु बालु अज्जु वि ण विजाणइ समर-चारु अज्जु वि ण विजाणइ राय-सिक्ख सत्थत्थ-पुराणहि बाल-रज्जु
पणवेप्पिणु मंतिऍ एउ वुत्तु । तं तुम्हहँ विरह-भयेण भीय । फुडु अविचल लब्भइ परम-सॉक्खु । पहु अम्हहँ वुत्तउ करहि तो वि । परिपालणि रज्जहाँ णाहि कालु। कह विसहिवि सकइ रज-भारु । तं वारहि पहु गिडंतु दिक्ख । परिहरिउ किं ण जह मुणिहि मज्जु ।
घत्ता-- पहु महिल णराहिउ बालउ मंति वि अबुह अयाण जहि ।
तिहु आयहँ ऍक्कहों मे भउ रज्जु करंतहाँ होइ तहि ॥९॥
पहु अरविंदु समउ सहु सयणहिँ पुणु वि पबॉल्लिउ महुरहि वयणहि । मज्झु पुत्तु जइ एयहाँ बालउ किं पि ण जाणइ आलिहँ आलउ । तुम्हइँ अच्छहु ऍत्थ मुगुणहर , सत्यवंत बहु-दिट्ठ-परंपर। बालहाँ तणउ बोलु मा लिज्ज? परियण सयण बंधु पालिज्जहु । महु केरउ उवयारु सरिजहु रज्ज-धम्म महु पत्तु थविज्जहुँ । अणय करंतु बालु वारिज्जहु सच्च-पुरिस-किउ चरिउ चरिज्जहु । मइँ दिण्णउ में कह वि हरिज्जहु अंतिउ धण-पसाउ पर दिजहु । अण्णु वि कहउँ तुम्ह णिसुणेज्जहु वयणु सुहासिउ चित्ति धरेजहु । घत्ता- अहाँ मुहि-सयणहाँ बंधवहो बाले काइँ करेबउँ ।
जं फल लिहियउ पुन्न-किउ तं तत्तउ भुंजैव्यउँ ॥१०॥
(९)१ क- "वेज्जइ । २ क- ण । ३ क- ह । ४ क- कहतहे । . (१०) १ क- हि । २ क- हो। ३ क- 'हो । ४ क- व। ५ क- म । ६ क-हु । ७क में यह आधी पंक्ति तथा अगली पूरी पंक्ति छूटी है। .
सं. ३
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