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________________ पउमकित्तिविरइउ । [२, ७, १ ७ अण्णु वि जइ पडु-हुउ मज्झु होइ जीबेवइ पच्चउ कु वि करेइ । ता णिप्पचिंतु हउँ करमि रज्जु पन्यजइ मज्झु ण किं पि कन्जु । घर-चासि ठियह जइ होइ मोक्खु पन्यज्ज जाहिँ ता लेवि दुक्खु । परमत्थे धरि गुणु को वि णाहि तें जिणवर-दिक्वहि विउस थाहि । भरहाइ-णरिंदों घरु चएवि जिणवरहाँ धम्म वउ णियम लेवि । साहिवि पंचिंदिय मॉक्टुं पत्त पन्यज होइ कह दोसवंत । जे भूण-दीण वसणापसत्त तउ करिवि ण सकहिं हीण-सत्त । पव्वजहि ते खल जिंद लेंति दूसह-सहासह पुणरवि थियति । सइँ गट्ठा अवरं वि णासयंति बहु-हेउ-सहासहिँ मोहयति । पत्ता- कु-धम्म-कु-तित्थहि मोहिया विविह-कु-हेउ-रुहिणि-भरिय । संसार-महण्णवे णिवडहि भय-मय-दोसहि परियरिय ॥ ७ ॥ 10 अण्णु वि जं संसय-णाउ लेहु तं फुडउ कहमि तुम्ह: सुणेहु । इह दीसहिँ मुणिवर तउ करंत । पर-लोय-विरुद्धउ परिहरंत । भव-कोडि सपुच्छिय ते कहंति . - ण वि संसउ अलियउ ण वि चवंति । अण्णु वि गहरक्खस-भूअ-पेय पच्चक्ख भमहि” महि-यलि अणेय । णिय-कम्म-पाव-फल अणुहवंति पॅलंति जम्मु बहु दुहु सहति । जम्मंतर पञ्चय सय करंति' हिंडंत घरू घरु संचरंति । जणि पयडउ दीसइ पुण्ण-पाउ अणुहबइ जीउ कम्माणुभाउ । मुहु असुहु जीउ अणुहवइ बेवि णाणा-विह-पोंग्गल-सयइँ लेवि । अजरामरु जीउ अणाइ कालु संबद्ध भमइ बहु कम्म-जालु। पत्ता- जहिं अज्जु वि दीसहि केवली साहुहि सीलु धरिजइ । तहि अहाँ मंति णरिंदहो कह मणे संसउ किन्जइ ।। ८॥ ___ 10 (७) १ ख- हुअ । २ ख प्रति का पत्र क्रमांक दस गुमा हुआ है; अतः सातवें कडवक की दूसरी पंक्ति से दसवें कडवक की सातवीं पंक्ति तक का पाठ केवल क प्रति के आधार पर संशोधित किया गया है । ३ क- ट्ठि । ४ क- जाउ । ५ क- 'क्ख । ६ क-ठा । ७ क- "रि । ८ क- "सिहि । (८) १ क- 'ते । २ क- ज । Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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