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________________ छंद चर्चा । (ई) षट्पदी पत्ते ____ जैसा की इसके नाम से स्पष्ट है षट्पदी छन्दों में छह पाद होते हैं। इनके पहिले, दूसरे, तथा तीसरे पादों में मात्राओं की संख्या क्रमशः चौथै, पांचवें और छठवें पादों की मात्राओं की संख्या के बराबर होती है । पा. च. की वर्तमान मुद्रित प्रति में षट्पदियों को भी पंक्तियों में लिखा गया है। प्रथम में प्रथम तीन पाद तथा अन्य में शेष पाद लिखे गये हैं । पंक्तियों की दृष्टि से प्रथम तथा दूसरी पंक्तियों में मात्राओं की संख्या समान है। पा. च. में कुछ षटपदियां ऐसी भी हैं जिनकी दो पंक्तियों में मात्रासंख्या समान नहीं है। उनके या तो पहले और चौथे पाद में मात्रासंख्या समान नहीं या तीसरे और छठवें पाद में किन्तु दूसरे और पांचवें पादों में सर्वत्र वह मात्रा संख्या समान है । इन षटपदियों को संकीर्ण षट्पदी नाम दिया है। जिनकी दोनों पंक्तियों में मात्रासंख्या समान है अर्थात् जिनके प्रथम पाद में चौथे पाद के बराबर और तीसरे में छठवें के बराबर मात्राएं हैं उन्हे शुद्ध षटपदी कहा है। दोनों प्रकार की षट्पदियों के दूसरे तथा पांचवें पादों की मात्रासंख्या सर्वत्र आठ है । इन आठ मात्राओं को दो चतुर्मात्रागगों द्वारा व्यक्त किया गया है। ये मात्रागण प्रायः चार लघु तथा एक भगण के रूप में आए हैं-४+४= UUU +-UU3८। इन षट्पदियों की दूसरी विशेषता यह है कि सर्वत्र इनके प्रथम और द्वितीय तथा चतुर्थ और पंचम पादों में पादान्त यमक प्रयुक्त हुआ है। शुद्ध षट्पदियों के जो भेद पा. च. में प्राप्त हैं वे निम्नानुसार हैं ( i ) जिनके पहिले तथा चौथे पादों में १० तथा तीसरे और छठवें पादों में १२ तद्नुसार प्रत्येक पंक्ति में ३० (१०+८+१२) मात्राएं हैं । पहले तथा चौथे पादों में मात्रागणों की व्यवस्था दो चतुर्मात्रा गणों तथा एक द्विमात्रागण से या एक षण्मात्रागण तथा एक चतुर्मात्रा गण से की गई । तीसरे और छठवें पादों वह व्यवस्था एक षण्मात्रागण, एक चतुर्मात्रागण तथा एक द्विमात्रागण से हुई है । यह द्विमात्रागण अधिकतर दो लघुओं द्वारा व्यक्त किया गया है-- पहिला तथा चौथा पाद-४+४+२ या ६+४=१०. तीसरा तथा छठवां पाद-६+४+२ (UU) = १२. आठवीं संधि के दूसरे तथा चौदहवीं संधि के १७ वें कडवकों के पत्ते इस छन्द में हैं। प्रा. पै. (१.९७ ) में इस छंद को चौपाइया नाम दिया है । किन्तु वहाँ उसके लक्षणों को भिन्न रूप से बताया है । यह होते हुए भी उसकी पंक्ति में तीस मात्राओं का उल्लेख है जो स्पष्टतः १०,८ तथा १२ मात्रावाले तीन टुकड़ो में बटी है तथा उसका प्रथम तथा द्वितीय खण्ड में अन्य यमक प्रयुक्त है। ये सब लक्षग पा. च. में प्रयुक्त इस षट्पदी के समान हैं। (ii) जिनके पहिले तथा चौथे पादों में १२ तथा तीसरे और छठ में ११ तद्नुसार प्रत्येक पंक्ति में ३१ (१२ +८+११) मात्राएं हैं उनके प्रथम और चौथे पादों में मात्रागणों की व्यवस्था पहिले वर्ग की षट्पदी के तीसरे पाद के अनुसार है। तीसरे और छटवें पादों में भी वह व्यवस्था है। भेद केवल अंतिम गण में है। यहां उसके स्थान में केवल लघु प्रयुक्त हुआ है पहिला तथा चौथा पाद-६+४+२०१२ तीसरा तथा छठवां पाद-६+४+१-११ आठवीं संधि का ध्रुवक इस प्रकार का है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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