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________________ ७२] प्राकृतपैंगलम् [१.१४८ आण-< आनीता; शुद्ध धातु रूप का कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत के लिए प्रयोग । अथवा इसे 'खुरसाणस्य ओल्लान् आनयति' का रूप मानकर वर्तमानकालिक क्रिया भी माना जा सकता है। खुरसाणक-'क' संबंधवाचक परसर्गः दे० भूमिकाः परसर्ग । ओल्ला-इस शब्द की व्युत्पत्ति का पता नहीं । टीकाकारों ने इसका अर्थ 'दंडप्रतिनिधिभूताः' किया है। एक टीकाकार ने इसे देशी शब्द माना है, जिसका अर्थ होता है 'पति'; 'ओल्लाशब्दः पतिवाचकः' । पर ये मत ठीक नहीं अँचते। क्या यह किसी 'अरबी' शब्द से संबद्ध है ? संभवतः इसका संबंध अरबी 'उलामा' से हो, जिसका अर्थ 'मुल्ला-मौलवी' होता है। दमसि-< दमयसि-वर्तमानकालिक म० पु० ए० व० ।। पढमहि दोहा चारि पअ चउ पअ कव्वह देहु । ऐम कुंडलिआ अट्ठ पअ पअ पअ जमअ कुणेहु ॥१४८॥ [दोहा] दोहा के, फिर चार चरण रोला (काव्य) के दो । इस प्रकार कुंडलिया में आठ चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में यमक (तुक) की रचना करो । टिप्पणी-पढमहि-< प्रथमे; अधिकरण ए० व० । दोहा-< दोहायाः, संबंध कारक ए. व० शुद्ध प्रातिपदिक रूप या शून्य विभक्ति । [अथ गगनांगच्छंदः] पअ पअ ठवहु जाणि गअणंगउ मत्त विहूसिणा, भाअउ बीस कलअ सरअग्गल लहु गुरुसेसिणा ॥ पढमहि मत्त चारि गण किज्जहु गणह पआसिओ, बीसक्खर सअल पअह पिअ गुरु अंत पआसिओ ॥१४९॥ १४९. गगनांग छंदः गगनांग छंद के प्रत्येक चरण में शर (पाँच) से अधिक बीस मात्रायें (अर्थात् पचीस मात्रा) जानो तथा अंत में तीन मात्रा लघु गुरु (15) दो। पहले चतुर्मात्रिक गण करो, जो अन्य गणों से प्रकाशित हो, समस्त चरण में बीस अक्षर हों तथा हे प्रिय, अंत में गुरु प्रकाशित हो । टिप्पणी-ठवहु-आज्ञा म० पु० ब० व० (<स्थापय) । जाणि-पूर्वकालिक क्रिया रूप । किज्जहु-विधि म० पु० ब० व० । पढमहि चक्कल होड गण अंतहि दिज्जह हारु । बीसक्खर गअणंग भणु मत्त पचीस विआरु ॥१५०॥ १५०. प्रत्येक चरण में पहले चतुष्कल गण हो, तथा अंत में हार (गुरु) दो । गगणांग में बीस अक्षर कहो, तथा पचीस मात्रा विचारो । टिप्पणी-दिज्जहु-विधि म० पु० ब० व० । भणु, विआरु (विचारय) आज्ञा० म० पु० ए० व० 'उ' विभक्ति । जहा, भंजिअ मलअ चोलवइ णिपलिअ गंजिअ गुञ्जरा, मालवराअ मलअगिरि लुक्किअ परिहरि कुंजरा । १४८. चऊ-A. B. चौ । कव्वह-A. काव्वह, B. कव्वइ । देहु-A. देहि, B. देइ । एम-C. N. इम । अट्ठ-C. छछ। जमअC. N. जमक, K. जम । कुणेहु-A. कुणेह । B. कुणेहि, १४८-C. १४९, न प्राप्यते । १४९. विहूसिणा-A. विहुसिणा, C. विहसिणा। भाअ-C. ताअउ । मत्त चारि-0. चारि मत्त । किज्जहु-N. किज्जइ । गणह-C.O. गणअ । सअल-N. सम। १५०. चक्कलु-C. चक्कल । दिज्जहु-N. दिज्जइ, O. दिज्जहि, । १५०-C. १५१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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