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१.१४३] मात्रावृत्तम्
[६९ टि०-जत्थ, तत्थ-2 यत्र, तत्र ।
भणु-आज्ञा म० पु० ए० व० । इसका खास रूप / भण+o=भण है। इसी के साथ 'उ' प्रत्यय लगाकर 'भणु' रूप बना दिया गया है। [तालंकिनी लक्षण]
पढम तीअ पंचम पअह मत्ता सोलह जासु ।
सम बारह अरु एक्कदह तालंकिणि भणु तासु ॥१४३॥ [इति रड्डा प्रकरणम्] १४३. ताटंकिनी लक्षण :
जिसके प्रथम, तृतीय तथा पंचम चरण में सोलह मात्रा हों, सम (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरणों में क्रमश: बारह तथा ग्यारह मात्रा हों, उसे ताटंकिनी नामक रड्डाभेद कहो । [पद्मावती छंदः] भणु पउमावत्ती ठाणं ठाणं चउमत्ता गण अट्ठाआ ।
धुअ कण्णो करअलु विप्पो चरणो पाए पाअ उकिट्ठाआ ॥ जइ पलइ पओहर किमइ मणोहर पीडइ तह णाअक्कगुणो ।
पिअरह संतासइ कइ उव्वासइ इअ चंडालचरित्त गणे ॥१४४॥ १४४. पद्मावती छंद:
जहाँ स्थान स्थान पर चतुर्मात्रिक आठ गण हों, ये चतुर्मात्रिक गण कर्ण (55, गुरुद्वयात्मक गण), करतल (15, अंतगुरु सगण), विप्र (l, सर्वलघु), चरण (Is, आदिगुरु भगण) चरण चरण में उत्कृष्ट होते हैं। यदि पयोधर (जगण, 151) चतुर्माणिक गण आ जाय, तो क्या यह मनोहर होता है (अर्थात् यह मनोहर नहीं होता), यह नायक के गुणों को पीडा तक पहुँचाता है, कवि के पिता को दुःख देता है, तथा कवि को उद्वासित करता है; यह चंडालचरित्र गण है।
द्वि० अट्ठाआ-2अष्ट; वास्तविक रूप 'अट्ठ' होना चाहिए । छंदोनिर्वाह के लिए 'अट्ठाआ' रूप बन गया है ।
उकिट्ठाआ-Lउत्कृष्टाः; इसका वास्तविक रूप ब० व० में 'उक्किट्ठा' बनेगा, 'अट्ठाआ' की तुक के लिए यह रूप बना है।
जहा,
भअ भज्जिअ वंगा भंगु कलिंगा तेलंगा रण मुक्कि चले ।
मरहट्ठा धिट्ठा लग्गिअ कट्ठा सोरखा भअ पाअ पले ॥ चंपारण कंपा पव्वअ झंपा आत्था आत्थी जीव हरे ।
कासीसर राणा किअउ पआणा विज्जाहर भण मंतिवरे ॥१४५॥ १४५. उदाहरण :
वंगदेश के राजा भय से भाग गये, कलिंग के राजा भग गये, तैलंगदेश के राजा युद्ध को छोड़कर चले गये, धृष्ट मराठे दिशाओं में लग गये (पलायित हो गये), सौराष्ट्र के राजा भय से पैरों पर गिर पड़े, चंपारण्य का राजा कॉपकर पर्वत में छिप गया और उठ उठकर अपने जीवन को किसी तरह त्याग रहा है। मंत्रिश्रेष्ठ विद्याधर कहते हैं कि काशीश्वर राजा ने युद्ध के लिए प्रयाण किया है। १४३. अरु-C. वा । १४३-C. १४४ । १४४. पउमावत्ती-A. पोमावत्ती, B. पौमावत्ती, C. पोमावती, 0. पउआवत्ती । चउA. B. चौ', गण-B. गणा । अट्ठाआ-B. अठाआ, C. अट्ठाआ । पाए-C. पाअ । पओहस्-0. पओहरु । मणोहर-मणोहरु । णाअ-B. णाइक । पिअरहि-A. पिअरही। कई-B. कवि । गणे-0. गणे । १४४-B. C. १४५, ०. १३५ । १४५. भज्जिअ-A. N. भज्जिअ, C. K. भंजिअ, O. भंगिअ । भंगु-A. C.O. भग्गु । मरहट्ठा-A. मरहठ्ठ, C. मरहठ्ठा । धिट्ठाC.0. ठिठ्ठा । कट्ठा सोरट्ठा-B. कंढा", C कठ्ठा सोरखा । भअ-C. गअ, O. पअ । जीव-C. जीअ, O. जीउ । कीअ-C. कोण । १४५-C. १४६, 0. १३६ ।
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