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________________ १. १३५ ] जहा, मात्रावृत्तम् भइ महुअर फुल्ल अरविंद, णव केसुकाणण जुलिअ । सव्वदेस पिकराव वुल्लिअ, सिअल पवण लहु वहइ ॥ मलअकुहर णववल्लि पेल्लिअ । चित्त मणोभवसर हाइ, दूर दिगंतर कंत । किम परि अप्प वारिहउ, इम परिपलिअ दुरंत ॥ १३५ ॥ [ राजसेना] १३५. उदाहरण : भौरे घूम रहे हैं, कमल फूल रहे हैं, नवीन किंशुकों का वन फूल गया है; सब ओर कोकिल का स्वर बोल रहा है, मलय पर्वत की नई बेलों को कँपा कर शीतल पवन मंद गति से बह रहा है; कामदेव का बाण चित्त को मार रहा है, प्रिय दूर दिशा के अंत में है; मैं किस रीति से आत्मा को रोकूँ ( अपने आपका वारण करूँ), यह ऐसा दुरंत (समय) आ पहुँचा है । यह किसी विरहिणी की सखी के प्रति उक्ति है । अथवा कोई नायिका किसी सखी को उपपति के आनयन का संकेत करती कह रही है, यह ध्वनि भी इस काव्य से निकल सकती है । टिप्पणी-फुल्ल-कुछ टीकाकारों ने इसे कर्मवाच्य भूतकालिक कृदन्त रूप माना है ( पुष्पितानि); हमारे मत से यह वर्तमानकालिक क्रिया का शुद्ध धातु रूप का प्रयोग है । हमने इसका अर्थ किया है- 'फूल रहे हैं' (फूलते हैं) । [ ६७ फुल्लिअ, वुल्लिअ, पेल्लिअ-ये तीनों कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत रूप हैं, जिनका प्रयोग भूतकालिक क्रिया के लिए हुआ है । वुल्ल धातु देशी है । पेल्ल का विकास संस्कृत प्र+ईर (प्रेरयति) से माना जा सकता है। (तु० राज० पेलबो, हि० पेलना) । परिपलिअ - भूतकालिक कृदन्त रूप (< परिपतितः) । अप्पर / आत्मानं, आत्मसूचक (रिफ्लेक्सिव) सर्वनाम कर्म० ए० व० । वारिह— वारयामि । वर्तमानकाल उ० पु० ए० व० (वै०रू० वारिहउँ) । करही गंदा मोहिणी चारुसेणि तह भद्द | राअसेण तालंक पिअ सत्त वत्थु णिप्कंद ॥ १३६ ॥ Jain Education International १३६. रड्डा छंद के भेदों का वर्णन करभी, नंदा, मोहिनी, चारुसेना, भद्रा, राजसेना, ताटंकिनी, हे प्रिय, ये सात (इस छंद के) वस्तु भेद हैं । [करहीलक्षण] पढम तीअ पंचम पअह तेरह मत्ता जासु । बीअ चउत्थ एगारहहिँ करहि भणिज्जइ तासु ॥१३७॥ १३७. करभी का लक्षण जिसके प्रथम, तृतीय तथा पंचम चरण में तेरह मात्रा हों, द्वितीय तथा चतुर्थ में ग्यारह मात्रा हों, उसे करही कहा जाता है । टिप्पणी- भणिज्जइ-कर्मवाच्य रूप, सं० भण्यते । १३५. महुअर - B. महुकर, N. भमर भमइ । फुल्ल - C. फुल्लु । जुलिअ -0. पुलिअ । पिकराव - B. पिकराग । वुल्लिअ - O. सुणिअ । णववल्लि N. O. णउवल्लि । मणोभव' - C. मनोभव, O. मनोभउ । किम परि C. केम परि, N. O. के परि । इम -C. K. O. एम। १३५ - C. १३८ । १३६. मोहिणी - B. मोहणी । चारुसेणि - A. C. चारुसेण । तालंक-तालंकि । पिअ -C. णिअ । णिप्कंद - C. णिफंद | १३६ - C. १३९ | १३७. 'C' प्रतौ न प्राप्यते । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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