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१.१३१]
मात्रावृत्तम्
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जऊ-< यदि ।
पाआ-< प्राप्तं (*प्राप्तः); 'आ'कारांत प्रवृत्ति को खड़ी बोली की आकारांत प्रवृत्ति का बीज रूप माना जा सकता है । तु० हिंदी 'पाया' (पा य् आ) । जिसे पा+आ (> पाउ > *पाओ > प्राप्तः) का ही सश्रुतिक ('य' ग्लाइड बाला) रूप माना जा सकता है।
हउ < अहं (दे० पिशेल ४१७, अप० हउं–हउँ) । इसी से ब्रज० हौं, रा० हूँ, गु० हूँ का विकास हुआ है। (चउबोला छंद)
सोलह मत्तह बे वि पमाणहु, बीअ चउत्थहिँ चारिदहा ।
मत्तह सट्ठि समग्गल जाणहु, चारि पआ चउबोल कहा ॥१३१॥ १३१. चौबोला छंद :
दो चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में सोलह मात्रा प्रमाणित करो, द्वितीय तथा चतुर्थ में चौदह मात्रा (हों)। चारों चरणों में सब कुल ६० मात्रा जानों, इसे चउबोल छंद कहो ।
टिप्पणी-सोलह-< षोडश; (पिशेल ४४३; अर्धमा० जैन महा० सोलस, सोलसय; प्रा०प० रा० सोल (टेसिटोरी ६८०), हि० सोलह, रा० सोला)
पमाणहु, जाणहु-आज्ञा म० पु० ब० व० । चउत्थहिं-< चतुर्थे ।
कहा-(कह) < कथय; आज्ञा म० पु० ए० व० के 'कह' का अंतिम स्वर छंदोनिर्वाह के लिए दीर्घ कर दिया गया है । ठीक यही बात 'चारिदहा' के 'दह' के साथ पाई जाती है, जिसमें भी पदांत 'अ' को दीर्घ कर दिया गया
चचल
जहा, . रे धणि मत्तमअंगअगामिणि, खंजणलोअणि चंदमुही ।
चंचल जव्वण जात ण जाणहि, छडल समप्पड कार्ड णही ॥१३२॥ चिउबोला] १३२. उदाहरण
हे, मत्तमतंगजगामिनि, खंजनलोचने, चंद्रमुखि, हे धन्ये, चंचल यौवन को जाते हुए नहीं जानती, उसे रसिक व्यक्तियों को क्यों नहीं समर्पित करती ?
टिप्पणी :-धणि-< 'धन्ये'; इसका प्रयोग अपभ्रंश में स्त्री के लिए पाया जाता है, दे० पिशेल: 'मातेरियाल्येन त्सुर केन्ननिस् देस अपभ्रंश' ३३० (१), 'ढोल्ला सामला धण चम्पावण्णी' । पिशेल ने बताया है कि इसे 'नायिका' शब्द से अदित किया गया है। इसी संबंध में पिशेल ने 'प्रियाया धण आदेशः' सूत्र भी उद्धृत किया है ।
जुव्वण- यौवन 7 जोव्वण 7 जुव्वण; कर्म कारक ए० व०, (रा० जोबन) । जात-2 V या + शतृ 7 जान्तो / जात; कर्मकारक ए. व० (रा. जातो) ।। जाणहि-(जाण + हि), समप्पहि (Vसमप्प+हि); दोनों वर्तमान म० पु० ए० व० के रूप हैं।
छइल-L*छविल्लेभ्यः (विदग्धेभ्यः) यह देशी शब्द है, जिसका अर्थ 'विदग्ध या रसिक' होता है। तु० हि० छैला, जिसका अर्थ कुछ विकृत हो गया है। यहाँ यह सम्प्रदान ब० व० के अर्थ में शुद्ध प्रातिपदिक का प्रयोग है।
१३१. सोलह मत्तह-N. सोरहँ मत्तहँ । बे वि-B. बे पअ । पमाणहु-K. पमाणह । चउत्थहिँ-B. चउठाइ, C. चउद्दह, K. चउत्थह, N. चउट्ठहि । जाणहु-C. जानहु, K. जाणह । चारिपआ-C. चारिपअं। चउबोल-A. B.C. चौबोल । १३१-C. १३४ । १३११३२. चउबोलाछंदसः लक्षणोदाहरणे न प्राप्येते । १३२. धणि-C. वणि । मअंगम-C. K. मअंगज। B. मअंगअ। खंजणलोअणिB. खंजअ, C. खंजनलोअन । जुव्वण-A. जोव्वण, C. जवण्ण । जात ण आणहि-C. जात न ही । छइल-C. छैल । काइँ णही-A. काइ णाही, C. काध नहीं। १३२-C. १३२ । B. C. चौबोला ।
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