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________________ १.१०६] मात्रावृत्तम् [५३ उड्डउणहपह भमउ खग्ग रिउसीसहि झल्लउ । पक्खर पक्खर ठेल्लि पल्लि पव्वअ अप्फालउ । हम्मीरकज्जु जज्जल भणह कोहाणलमह मइ जलउ । सुलताण सीस करवाल दइ तज्जि कलेवर दिअ चलउ ॥१०६॥ [छप्पय] १०६. उदाहरण: वाहनों के ऊपर पक्खर देकर (डालकर) में दृढ़ सन्नाह पहनें, स्वामी हम्मीर के वचनों को लेकर बाँधवों से भेंट कर युद्ध में धV आकाश में उड़कर घूमूं, शत्रु के सिर पर तलवार जड़ दूँ, पक्खर पक्खर ठेल पेलकर पर्वतों को हिला डालूँ; जज्जल कहता है, हम्मीर के लिए मैं क्रोधाग्नि में जल रहा हूँ; सुलतान के सिर पर तलवार मार कर, अपने शरीर को छोडकर मैं स्वर्ग जाऊँ । यह पद्य आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के मतानुसार शार्ङ्गधर के 'हम्मीर रासो' का है, जो अनुपलब्ध है। राहुल जी इसे किसी जज्जल कवि की कविता मानते हैं । दे० हिंदी साहित्य का इतिहास पृ. २५; हिंदी काव्यधारा पृ. ४५२ । टिप्पणी-पिंधउ (<पिदधामि), धसउ; भमउ, झल्लउ, अफ्फाल-(<आस्फालयामि), जलउ (<ज्वलामि), चलउ (< चलामि)। ये सब वर्तमान उ० पु० ए० व० के रूप हैं, जिनका अप० में 'उ-उँ' (अ) विभक्ति चिह्न है; दे० पिशेल ६४५३ । (वट्टउँ < वर्ते) हेमचंद्र में '3' वाले सानुनासिक रूप मिलते हैं, तु० कड्डउँ (८.४.३८५), किज्जउँ (८.४.३९१), सोइज्जउँ (देशी, सं० विलोक्ये), दक्खउँ (प्रेक्ष्यामि), झिज्जउँ (हेम० ८.४.३५६, ८.४.४५७, ८.४.४२५) । प्राकृतपैंगलम् में अननुनासिक रूप भी मिलते हैं इसका संकेत पिशेल ने भी किया है, दे० पिशेल $ ४५४ पृ. ३२२ । प्रा०० के अन्य रूप हैं-पावउँ; जीवउँ (सानुनासिक रूप); तजउ, पियावउ (अननुनासिक रूप)। साथ ही दे० तगारे $ १३६ पृ. २८७ ।- उ-उँ की व्युत्पत्ति का संबंध 'मि' (आमि) या प्रा० आमु (मु) से लगाने की चेष्टा की जाती है। इस तरह कुछ लोगों के मत से यह विकास प्रा० अमु < *अh >-अउँ के क्रम से हुआ है। पर यह व्युत्पत्ति ऐसे भी मानी जा सकती है कि 'ॐ' (उ) उ. पु० ए० व० कर्ता (हउँ) के '-अउँ' का प्रभाव है। इसी अप० का अव० में उ रूप भी मिलता है । इसी क्रम से हि० रा० 'ॐ' (हि० चलूँ, रा० चालूँ), ब्रज ॐ-औं (मारूँ-मारौं) का विकास हुआ है। दिढ सण्णाह-कर्म कारक ए० व० शून्य विभक्ति । वार उप्पर-(हि० वाहनो पर); उप्पर का परसर्गिक प्रयोग है, इसका 'उप्परि' रूप भी प्रा० पैं० में देखा जा चुका है। पक्ख-कर्म कारक ए० व० शून्य विभक्ति । दइ, लइ, समदि- पूर्वकालिक क्रिया प्रत्यय 'इ' । रण-अधिकरण ए० व० शून्य रूप । हम्मीर वअण-प्रा० पैं० की अवहट्ठ में संबंधकारक (या षष्ठ्यर्थ )में भी शून्य रूप चल पड़े हैं। यह इसका उदाहरण है । संभवतः कुछ विद्वान् यहाँ 'हम्मीरवअण' को समस्त पद मानना चाहें। उड्डा-इसके दो रूप मिलते हैं-१. उड्डुल, २. उड्डङ । एक तीसरा पाठ ‘उज्जल' भी है । 'ल' वाला पाठ लेने पर इसे कर्मवाच्य-भाववाच्य भूतकालिक कृदंत का रूप मानना होगा । Vउड्डुल । 'ल' पूर्वी अवहट्ठ में तथा पूर्व की १०६. पिंध:-A. पिंधिअ । दिढ-C. दिट्ठ । वाह उप्पर-0. उप्पर । पक्खस्-A. पक्ख, C. पष्षर । दइ-A. देई, C. दई । समदि-B संमदि। धस:-A धसिअ, C. धसउ । सामि-A. साहि । हम्मीर-B. हम्मीह, O. हंवीर । लइ-A लेइ, C. लेई । उड्डा-B. उडल, C. उड्डुम, K.O. उड्डल, A. उड्डुउ, N. उड्डउ । रिउ-B. रिपु । झलउ-B.C. O. झालउ । पक्खस्-A.पक्ख, C. पक्खर पक्खर । ठल्लि-C. ठेल्लि । ठल्लि पल्लि-0. पेल्लि ठेल्लि । अप्फाल-B. अप्फारउ, C. अप्पारउ । हम्मीरकज्जु-0. हंवीरकज्जे । जज्जल-A. उज्जल, C. जज्जुल्ल । भणह-A. B.C.O. भण। मह मइ A.O. मह मह, B. मुह मह, C. महु महु, K. मुह मह । दइ-C. देइ । तज्जि -0. तेज्जि । दिअ-C. दिवि । १०६-C. १०७, ०.१०५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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