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________________ मध्ययुगीन हिंदी काव्यपरंपरा के दो प्रमुख छंद ६४९ प्राकृतगलम् का सुंदरी छन्द भी यतिव्यवस्था की दृष्टि से १०, ८, और १४ मात्राओं के यतिखंडों में ही विभक्त है; किंतु इसकी मात्रिक गणव्यवस्था कुछ भिन्न है। इसके सभी चतुष्कल दुर्मिल की तरह सगणात्मक नहीं है, इसका संकेत किया जा चुका है। 'सुंदरी' वर्णिक छन्द में भी, जो स्पष्टतः मध्ययुगीन हिंदी कविता का 'सुंदरी' सवैया है, मात्रिक यतिखंडों को 'अनुप्रास' के द्वारा नियमित किया जाता रहा है। प्राकृतपैंगलम् का उदाहरण (२.२०७) इसका स्पष्ट संकेत करता है। इस छन्द के चतुर्थ चरण में अवश्य ही यतिखंडों का विभाजन ८, ८, १६ हो गया है, जो 'पअले-विअले' की आभ्यंतर तुकयोजना से स्पष्ट है । यह यतिव्यवस्था इस बात को सिद्ध करती है कि धीरे धीरे सवैया की यतिव्यवस्था ८, ८, १६ के तीन यतिखंडों या १६, १६ के दो यतिखंडों में नियमित होने लगी थी। प्राकृतपैंगलम् के 'किरीट' छंद का उदाहरण और नये विकास का संकेत करता है । 'किरीट' ८ भगण का वर्णिक छन्द है, जिसकी यतिव्यवस्था संभवतः १२, ८, १२ मात्राओं पर थी । इस दृष्टि से दुर्मिल की तरह 'किरीट' के गाने में पहली दो मात्रा छोडकर तीसरी मात्रा से ताल नहीं दी जाती थी, बल्कि पहली ताल छन्द के प्रत्येक चरण की पहली ही मात्रा पर पड़ती थी और हर 'भगण' के गुर्वक्षर पर ताल दी जाती थी। प्राकृतपैंगलम् के लक्षणपद्य में 'किरीट' की यति-व्यवस्था का कोई संकेत नहीं मिलता और न यहाँ उदाहरणपद्य में ही १२, ८, १२ वाली यति-खंडों की योजना तथा कहीं भी आभ्यंतर तुक का प्रयोग मिलता है। स्पष्ट ही यह 'किरीट' सवैया उस समय की रचना जान पडता है, जब कवि इसकी तालयति और आभ्यंतर तुक का प्रयोग छोड़ चले थे; किंतु यहाँ 'कख' 'गघ' वाली द्विपदीगत पादांत तुक फिर भी सुरक्षित है। वप्पह भत्ति सिरे जिणि लिज्जिअ रज्ज विसज्जि चले विणु सोदर । सुंदरी संगहि लग्गि इकल्लिअ मारु विराधकबंध तहा घर ॥ मारुइ मिल्लिअ बालि वहल्लिअ रज्जु सुगीवहि दिज्जु अकंटअ । बंधि समुद्द विघातिय रावण सो तुम राहव दिज्जउ णिब्भअ ॥ प्राकृतपैंगलम् के ये चारों छन्द, जिन्हें सवैया बहुत बाद में कहा जाने लगा है, मूलतः एक ही ३२ मात्रा वाले छन्द के विविध प्ररोह हैं। स्वयंभू और हेमचन्द्र में इस तरह की तीन द्विपदियों का उल्लेख है : (१) स्कंधकसम (जिसे स्वयंभू 'गंधरामक' कहते हैं) यति १०, ८, १४ मात्रा (२) मौत्तिकदाम, यतिव्यवस्था १२, ८, १२ मात्रा (३) नवकदलीपत्र, यतिव्यवस्था १४, ८, १० मात्रा हेमचन्द्र के अनुसार इन तीनों छन्दों की गणव्यवस्था ८ चतुर्मात्रिकों की योजना से नियमित है, फर्क सिर्फ यति का है: 'अष्ट चतुर्मात्राश्चेत्तदा स्कन्धकसमम् । (७.१८)..., ठजैरिति द्वादशभिरष्टभिश्चेत्तदा तदेव स्कन्धकसमं मौत्तिकदाम । (७.१९)... ढजैरिति चतुर्दशभिरष्टभिश्च यतिश्चेत्तदा तदेव स्कन्धकसमं नवकदलीपत्रम् ।" (७.२०) इन तीनों छन्दों की रचना में जब गणव्यवस्था '६+४+४+४+४+४+४+२' होती है, तो इन्हें ही यति-भेद से क्रमशः मौक्तिकदाम्नी, नवकदलीपत्रा इन स्त्रीसंज्ञक नामों से पुकारा जाता है। इस दृष्टि से हमारे दुर्मिल सवैया के मात्रिक रूप का पुराना उदाहरण हेमचंद्र की निम्न स्कंधकसम द्विपदी है, जो सवैया की अर्धाली कही जा सकती है :१. जिणि वेअ धरिज्जे, महिअल लिज्जे, पिट्ठिहि दंतहि ठाउ घरा । रिउवच्छ विआरे, छलतणु धारे, बंधिअ सत्तु पआल धरा । कुलखत्तिअ तप्पे, दहमुह कप्पे, कंसअकेसिविणासकरा । करुणा पअले मेच्छह विअले, सो देउ णराअण तुम्ह वरा ॥ - प्रा० पैं० २.२०७ २. अट्ठचआरकअं गंधरामअं दसअट्ठचउद्दहिच्छिण्णम् । बारहसमे बीसमए बत्तीसमए जमिअं मोत्तिअदामम् । चोद्दहमे वाईसमए बत्तीसमए णवकेलीपत्तम् । स्वयंभू० (६.१७४-१७६) ३. षण्मात्रश्चतुर्मात्रषट्कं द्विमात्रश्चेदित्येभिर्मात्रागणैः कृतेष्वेषु स्कंधकसमादिषु त्रिषु स्त्रीत्वं स्त्रीलिङ्गशब्दाभिधेयत्वम् । स्कंधकसमा, मौक्तिकदाम्नी, नवकदलीपत्रा चेत्यर्थः । यतिः सैव । - छंदोनुशासन ७.२१ वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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