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________________ ६३४ प्राकृतगलम् ग्यारह मात्रा है, जिसके मात्रा-प्रस्तार के अनुसार कई भेद हो सकते हैं, सर्वलघु वाली 'रसिका' उसका पहला भेद है।' इस पहले भेद का उदाहरण भिखारीदास ने यों दिया है : हसत चखत दधि मुदित, झुकत भजत मुख रुदित । त्रसित तियनि मिलि रहत, रिसजुत विरतिहि गहत ।। अगनित छवि मुखससि क, सिसु तव नवरस रसिक ।। (छंदार्णव ८.१३) यह छन्द मध्ययुगीन हिंदी कविता में प्रयुक्त नहीं होता, केवल उक्त लेखकों ने अपने छंदोग्रंथो में इसका जिक्र भर कर दिया है। अर्धसम चतुष्पदी दोहा $ १९६. दोहा अपभ्रंश और हिंदी काव्यपरम्परा का प्रसिद्ध अर्धसम चतुष्पदी छंद है। प्राकृतपैंगलम् के अनुसार इसके विषम चरणों में तेरह और सम चरणों में ग्यारह मात्रायें निबद्ध होती हैं तथा तुक व्यवस्था केवल सम चरणों (ख-घ) में पाई जाती है। प्राकृतपैंगलम् में इनकी मात्रिक गणव्यवस्था विषम चरणों में ६+४+३ और सम चरणों में ६+४+१ मानी गई है । इस प्रकार दोहा के सम पादांत में 'लघु' पाया जाता है; तथा इसके पूर्व का चतुष्कल सदा 'गुर्वंत (- - - या - -) होता है। इससे यह स्पष्ट है कि दोहा के सम चरण 'जगणांत' (151) या 'तगणांत' (551) होने चाहिएँ। इन दोनों भेदों में जगणांत समपाद वाले दोहा विशेषतः प्रयुक्त हुए हैं । दोहा के विषम चरणों के आरंभ में 'जगण' (151) का प्रयोग निषिद्ध माना गया है और प्राकृतपैंगलम् ने इस तरह के दोहे को 'चांडाल' घोषित किया है। प्राकृतपैंगलम् में दोहा छंद ४५ बार प्रयुक्त हुआ है और २ सोरठा हैं, जो दोहा को ही उलटा कर देने से बने हैं। इन छन्दों की गणव्यवस्था का विश्लेषण निम्न है : दोहा और सोरठा के षण्मात्रिक गणों का विवरण (क) मध्य में सदा दो लघु . . ० ० ० ० (१५) । ~~~ (१२) (९०) -~- (१९) (४४) (ख) मध्य में सदा एक गुरु - न । - - - (१३) | (६८) - - - (२२) (ग) मध्य में केवल एक लघु ~ . . . . . (१०) -- -- (१९) | (२९) • - . ० ० (०) - १. ग्यारह ग्यारह कलनि को, षट्पद रसिक बखानि । सब लघु पहिलो भेद है, गुरु दै बहु बिधि ठानि ॥ - छंदार्णव ८.१२ २. छक्कलु चक्कलु तिण्णिकलु एम परि विसम पअंति । सम पाअहि अंतेक्ककलु ठवि दोहा णिब्भंति ॥ - प्रा० पैं० १.८५ ३. प्रा० पैं० १.८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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