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प्राकृतपैंगलम् के छन्दों का अनुशीलन
प्राकृतपैंगलम् और वर्णिक वृत्तपरंपरा
$ १५८. वर्णवृत्त प्रकरण में प्रा० पैं० के संग्राहक ने १०४ छन्दों का वर्णन किया है। शार्दूलविक्रीडित के दो नाम 'सद्दूलसट्टअ' तथा 'सद्दूलविक्कीडिअ' का भिन्न भिन्न लक्षणोदाहरण देने के कारण कुछ लोगों ने यह संख्या १०५ मानी है। प्राकृतपैंगलम् के वर्णवृत्त प्रकरण का आधार मूलत: संस्कृत छन्दःशास्त्र के ग्रन्थ ही हैं । स्वयम्भू, हेमचन्द्र, राजशेखर, कविदर्पण तथा छन्दःकोश में भी इन छन्दों का आधार संस्कृत के ग्रन्थ ही हैं, जिनमें "पिंगलछन्दःसूत्र' प्राचीनतम महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। स्वयम्भू, हेमचन्द्र तथा राजशेखर ने वणिक वृत्तों के संभाव्य भेदों में से अधिकांश का वर्णन किया है। कविदर्पणकार ने तृतीय तथा चतुर्थ उद्देशों में वर्णवृत्तों का विवेचन किया है तथा पंचम उल्लास में वैतालीय-कोटि के उभयच्छन्दों का विवरण है। कविदर्पणकार ने संस्कृत छन्दःशास्त्र के आधार पर ही वर्णवृत्तों को सर्वप्रथम एकाक्षर वृत्तों से लेकर २६ अक्षर के वृत्तों तक २६ कोटियों में विभक्त किया है, तथा प्रत्येक चरण में २६ से अधिक अक्षरवाले छन्दों को 'दण्डक' नाम दिया है। प्रा० पैं० में न तो इनका सामान्य संकेत ही मिलता है, न इन २६ कोटियों का नामकरण ही, तथापि यहाँ भी जिन छन्दों का विवरण दिया गया है, वे एकाक्षरप्रस्तार से चौबीस अक्षरप्रस्तार तक के वर्णिक छन्द हैं। पंचविंशत्यक्षर तथा षड्विंशत्यक्षर प्रस्तार के कोई छन्द प्राकृतपैंगलम् में नहीं हैं, किंतु दण्डक के दो भेद शालूर तथा वर्णिक त्रिभंगी का संकेत किया गया है। इन वर्णिक छन्दों में भी चतुर्विशत्यक्षरप्रस्तार के सुन्दरी, दुर्मिला तथा किरीट छन्द एवं वर्णिक त्रिभंगी का विकास मूलतः मात्रिक छन्दों से ही हुआ है, तथा इनका संबंध संस्कृत के किन्हीं भी वर्णिक छन्दों या दण्डकों से नहीं जोड़ा जा सकता । इन छन्दों में से प्रथम तीन का विशेष विवेचन हम ३२ मात्रा के मात्रिक छन्दों के संबंध में करेंगे तथा वणिक त्रिभंगी का विस्तृत विवरण मात्रिक त्रिभंगी से तुलना करते हुए मात्रिक वृत्तों के प्रकरण में ही किया जायगा।
वर्णिक वृत्तों की दण्डकभिन्न २६ जातियों या कोटियों में प्रत्येक में गणना के अनुसार उत्तरोत्तर द्विगुणित भेद पाये जाते हैं। एकवर्णवृत्त में केवल २ भेद होते हैं; द्विवर्ण में ४ भेद, त्रिवर्ण में ८ भेद, चतुर्वर्ण में १६, पंचवर्ण वृत्त में ३२, पडवर्ण में ६४, सप्तवर्ण में १२८, अष्टवर्ण में २५६, नववर्ण में ५१२, दशम वर्ण में १०२४ । इस क्रम से षड्विंशत्यत्यक्षर प्रस्तार (उत्कृति कोटि) में ६७१०८८६४ भेद होते ह तथा कुल वर्णिक वृत्तों के भेद १३४२१७७२६ होते हैं। इन भेदों में दण्डक भेदों की गणना नहीं है। वस्तुतः ये सब भेद केवल अंकगणित के अनुसार शास्त्रीय दृष्टि से मान लिये गये हैं, किंतु व्यवहार में कतिपय शतसंख्यक वर्णिक छंद ही प्रयुक्त होते रहे हैं । संस्कृत कवियों में कालिदास की अपेक्षा भारवि, माघ तथा श्रीहर्ष ने अधिक छंदों का प्रयोग किया है। यद्यपि कालिदास ने १९ छंदों का प्रयोग किया है, किन्तु उनके खास छंद कुछ ही है :- इन्द्रवज्रा-उपेन्द्रवज्रा वर्ग; श्लोक, वंशस्थ, मंदाक्रान्ता, रथोद्धता, द्रुतविलंबित तथा वैतालीय । इस दृष्टि से भारवि के खास छन्द १२ हैं, माघ के १६ । भारवि ने औपच्छन्दसिक (वैतालीय कोटि का छन्द), अपरवक्त्र, जलोद्धतगति, चन्द्रिका, मत्तमयूर जैसे अप्रसिद्ध छन्दों का भी प्रयोग किया है, तो माघ में भी पञ्चकावली, पथ्या, मत्तमयूर, भ्रमरविलसित, वंशपत्रपतित, औपच्छन्दसिक, कुटजा, अतिशायिनी, महामालिनी जैसे अनेक अप्रसिद्ध छन्द मिल जाते हैं। इतना होने पर भी संस्कृत कवियों द्वारा व्यवहारतः प्रयुक्त वर्णिक छन्दों की संख्या सौ से कम ही होगी।
हिंदी के कवियों में वर्णिक छन्दों का अधिकाधिक प्रयोग पृथ्वीराजरासो तथा केशव की 'रामचन्द्रिका' में मिलता है । पृथ्वीराजरासो में ३० वर्णिक वृत्तों का उपयोग मिलता है, जिनमें से कई छन्द छन्दोग्रन्थों में नहीं मिलते । केशव ने छन्दमाला में ७८ वर्णिक छन्दों का उल्लेख किया है, जिनमें दण्डक सम्मिलित हैं। रामचन्द्रिका में भी कई अप्रसिद्ध वर्णिक छन्द प्रयुक्त हुए हैं, तथा कुछ छन्द केशव ने स्वयं भी गढ़ लिये हैं; यथा१. 'चतुरधिकशतं वृत्तं जल्पति पिंगलराज:'- 'कृष्णीयविवरण' (टीका) Bid. Ind. ed. पृ० ५९३ २. कई पिंगल भणिअ पंचग्गल सउ सव्वा जाणहु । - प्रा० पैं० (निर्णयसागर सं०) पृ० २२७ ३. तेसु समे एगक्खरमुहछब्बीसक्खरंतचउपाई।
छब्बीस हुंति आई, जो सेसं दंडया तत्तो ॥ - कविदर्पण ३-३ ४. डा० विपिन बिहारी त्रिवेदी : चन्दवरदायी और उनका काव्य पृ० २१७. (हिंदुस्तानी एकेडेमी १९५२)
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