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________________ वैदिक छन्दः परम्परा $ १४१. यद्यपि वैदिक संहिता -भाग के सभी छंद वर्णिक है, तथापि एक दृष्टि से परवर्ती शास्त्रीय संस्कृत छन्दों से इनमें भेद पाया जाता है। संस्कृत की शास्त्रीय छन्दः परम्परा में प्रायः सभी छंद चतुष्पात् होते हैं, जब कि वैदिक छंदों में कई छंद त्रिपात् तथा पंचपात् भी पाये जाते हैं। उदाहरण के लिये गायत्री, उष्णिक्, पुरुउष्णिक् तथा ककुप् छंद त्रिपात् होते हैं, जब कि पंक्ति छंद पंचपात् होता है। बाकी छंद चतुष्पात् हैं। शौनक के ऋक् प्रातिशाख्य के १६ वें, १७ वें तथा १८ वें पटल में वैदिक छंदों का विस्तार से वर्णन किया गया है। आरंभ में वैदिक छंदों को सात प्रकार का माना गया है :- गायत्री (त्रिपात् छंद, प्रत्येक चरण ८ वर्ण), उष्णिक् (त्रिपात् छंद, प्रथम द्वितीय चरण ८ वर्ण, तृतीय चरण १२ वर्ण), अनुष्टुप् (चतुष्पात् छंद, प्रत्येक चरण ८ वर्ण), बृहती ( प्रथम द्वितीय - चतुर्थ चरण ८ वर्ण, तृतीय चरण १२ वर्ण), पंक्ति (पंचपात्, प्रत्येक चरण में ८ वर्ण), त्रिष्टुप् (चतुष्पात् छंद, प्रत्येक चरण ११ वर्ण), तथा जगती (चतुष्पात् छंद, प्रत्येक चरण में १२ वर्ण) ।' इन्हीं में उष्णिक् के अवांतर भेद पुरुउष्णिक् तथा ककुप्, बृहती के अवांतर भेद सतो बृहती, तथा पंक्ति के अवांतर भेद प्रस्तार पंक्ति की गणना की जाती है। इनको लेकर वैदिक छंद कुल मिलाकर ११ होते हैं। कभी-कभी एक छंद के कुछ चरणों के साथ अन्य छन्द के चरण मिलाकर छन्दः सांकर्य भी उपस्थित किया जाता है। इस छंद: सांकर्य को प्रगाथ कहते हैं । ऋक्प्रातिशाख्य में इस छन्दोमिश्रण का विवरण दिया गया है। लौकिक संस्कृत के कुछ छन्द वैदिक छंदों से विकसित माने जा सकते हैं, जैसे वैदिक अनुष्टुप् त्रिष्टुप् तथा जगती का विकास लौकिक संस्कृत के क्रमशः अनुष्टुप् इंद्रवज्रा - उपेंद्रवज्रा (तथा उपजाति) वर्ग, एवं वंशस्थ - इन्द्रवंशा वर्ग के रूप में हुआ है। इतना होते हुए भी वर्ण तथा गणों का जो रूढ़ नियम हमें लौकिक संस्कृत के छंदों में मिलता है, वह वैदिक छंदों में नहीं मिलता। वैदिक छंद केवल अक्षर गणना पर ही नियत रहते हैं, उनमें वर्णिक गणों या तत्तत् अक्षर के गुरु-लघु होने का कोई विशेष नियम नहीं रहता । कभी-कभी तो वैदिक छंदों में ऐसे भी छंद मिल जाते हैं, जिनमें एक या दो वर्ण न्यून या अधिक पाये जाते हैं। उदाहरण के लिये गायत्री छंद में ८ x ३ = २४ वर्ण होते हैं, किंतु किसी किसी गायत्री में एक चरण में केवल ७ ही वर्ण मिलते हैं, तथा इस प्रकार कुल २३ वर्ण होते हैं। इसी प्रकार कभी-कभी किसी एक चरण में ९ वर्ण होते हैं और पूरे छंद में २५ वर्ण । इस प्रकार न्यून या अधिक वर्णवाले छंद क्रमशः 'निचत्' या 'भुरिक्' कहलाते हैं । २३ वर्ण की गायत्री निचृत् गायत्री है, २५ वर्ण की गायत्री भुरिक् गायत्री । कभी दो अक्षर न्यून या अधिक भी हो सकते हैं। दो अक्षर न्यूनवाली (२२ वर्ण ) गायत्री 'विराट् गायत्री' कहलाती है, दो अक्षर अधिक वाली 'स्वराट् 'गायत्री' । ऋग्वेद में सबसे अधिक ऋचाएँ त्रिष्टुप् तथा गायत्री छंद में निबद्ध हैं। ऋग्वेद का तीसरा अधिक प्रचलित छंद जगती है। इन छंदों के अतिरिक्त कुछ अन्य अप्रसिद्ध छंद भी मिलते हैं, जो प्रतिचरण में १२ से अधिक वर्णवाले हैं । इनका प्रयोग ऋग्वेद में बहूत कम हुआ है । इनमें प्रमुख अतिजगती (१३ वर्ण का चतुष्पात् छंद), शक्वरी (१४ वर्ण का चतुष्पात् छंद), अतिशक्वरी (१५ वर्ण का चतुष्पात् छंद), अष्टि (१६ वर्ण का चतुष्पात् छंद) तथा अत्यष्टि (१७ वर्ण का चतुष्पात् छंद) हैं । संस्कृत, प्राकृतापभ्रंश और हिंदी छन्दः परम्परा वैदिक छंदों में प्राचीनतम छंद कौन-सा है, इसके विषय में मतभेद हैं। आर्नोल्डने प्राचीनतम वैदिक छंद अनुष्टुप् माना है तथा गायत्री को उसी का भेद घोषित किया है। त्रिपात् गायत्री की रचना चतुष्पात् अनुष्टुप् के ही एक चरण को कम करने से हुई है। त्रिपात् छंद की रचना मूलतः द्विपात् या चतुष्पात् (दो द्विपात्) छंद का ही विकास है। वैसे ग्रीक साहित्य के विद्वान प्राध्यापक जार्ज थाम्सन का मत है कि त्रिपात् गेय पदों का प्रचलन लोकगीतों में द्विपात् की १. गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् च बृहती च प्रजापतेः । पंक्तिस्त्रिष्टुभ् जगती च सप्तच्छदांसि तानिह ॥ - शौन० ऋक्प्राति० १६-१ । E. V. Arnold: Vedic Metre P. 7 २. ३. Gayatri on the whole appears to be later then Anustubh. This is first suggested by the form of stanza; for the whole balance of the Indo-European Structure of metres is based upon duality, and the stanza of three verses seem to a reduction from the normal stanza of four. - Vedic Metre p. 171. Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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