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________________ प्राकृतपैंगलम् का छन्दःशास्त्रीय अनुशीलन ५२५ संगीतात्मक जान पड़ती है, तथा एक-सी पादांत आवर्तक ध्वनियों से अनुगुंजित लोकगीतों में ही 'तुक' का मूल खोजना पड़ेगा । बाद में चलकर परिनिष्ठित पंडितों में 'तुक' या अन्त्यानुप्रास का दुहरा प्रयोग चल पड़ा हो । संस्कृत अलंकारशास्त्र के 'पादान्त यमक' के साथ इसका गठबंधन बाद की ही कल्पना जान पड़ती है, जब कुशल विद्वान् कवि छंदों के तत्तत् पादांत में केवल तुक का निर्वाह न कर विभिन्न अर्थों वाले समान स्वर-व्यंजन-समूह (यमक) तथा 'अनुप्रास' का विविध प्रकार की तुकांत स्थितियों के लिये प्रयोग किया जाने लगा । हेमचन्द्र की परिभाषाओं में यह स्पष्ट भेद परिलक्षित है। पिछले दिनों 'यमक' तथा 'अनुप्रास' की यह भेद-कल्पना लुप्त हो गई और प्राकृतपैंगलम् जैसे ग्रंथो में केवल 'तुक' (हेमचन्द्र के मत से अनुप्रास) के लिये भी 'यमक' (जमअ) का प्रयोग देखा जाता है । संस्कृत काव्यों में 'तुक' जैसी चीज का बहुत कम प्रयोग देखा जाता है। वैसे शंकराचार्य के कई पद्यों में 'तुक' पाई जाती है तथा गीतगोविन्द के पदों में 'तुक' का खास प्रयोग है। किन्तु गीतगोविन्द पर तो अपभ्रंश काव्य-परंपरा का पर्याप्त प्रभाव है, इससे कोई इन्कार न करेगा। सं० वणिक वृत्तों में भी आगे चलकर अपभ्रंश तथा भाषा कवि तुक का प्रयोग करने लगे थे, इसके चिह्न सर्वप्रथम स्वयंभू के 'स्वयंभूच्छन्दस्' में ही मिलते हैं। संदेशरासक में तीन सं० वर्णिक वृत्त मिलते हैं : मालिनी (छन्द १००), नंदिनी (छन्द १७१), भ्रमरावली (छंद १७३) । इनमें प्रथम उदाहरण में अतुकांत योजना है, किंतु अंतिम दोनों छंदों में 'कख, गघ' वाली तुकांत योजना पाई जाती है । प्रा० पैं० के वर्णिक वृत्त प्रकरण में भी लक्षण पद्यों तथा उदाहरण पद्यों में से अधिकांश में 'कख, गघ' वाली तुक पाई जाती है। केवल कतिपय प्राकृत पद्य, जो प्रायः कर्पूरमंजरी सट्टक से उद्धृत है, तुकांत नहीं है। संस्कृत वर्णिक वृत्तों में भी 'तुकांत' पादों की व्यवस्था कर 'कख, गघ' वाली तुक-योजना हिंदी की मध्ययुगीन कविता में चल पड़ी है तथा केशवदास की रामचन्द्रिका में प्रयुक्त सभी संस्कृत वर्णिक वृत्त तुकांत है । भिखारीदास आदि हिंदी छन्दःशास्त्रियों ने भी इन वर्णिक वृत्तों को तुकांत ही निबद्ध किया है। द्विवेदीयुगीन कवियों में स्वयं द्विवेदी जी, हरिओध जी तथा अनूप शर्मा ने इन्हें असली अतुकांत रूप में अपनाया है; किंतु मैथिलीशरण गुप्त ने इन वृत्तों का प्रयोग प्रायः 'कख, गघ' वाली तुक की योजना के साथ ही किया है, जैसे निम्न मंदाक्रांता में दो वंशों में प्रकट करके पावनी लोक-लीला, सौ पुत्रों से अधिक जिनकी पुत्रियाँ पूतशीला । त्यागी भी हैं शरण जिनके जो अनासक्त गेही, राजा-योगी जय जनक वे पुण्यदेही, विदेही ।। (साकेत : नवम सर्ग, १) गुजराती कविता में भी संस्कृत वर्णिक वृत्तों को प्राय: तुकांत (कख, गघ तुक) रूप में ही अपनाया गया है। नये गुजराती कवियों में भी कलापी जैसे कवियों ने इनका प्राय: तुकांत प्रयोग ही किया है, वैसे कुछ नये कवि इनका अतुकांत प्रयोग करते भी देखे गये हैं। पाश्चात्य छन्दःशास्त्र में तुक (rime) पर विशेष रूप से विचार किया गया है । 'तुक' को वहाँ छंद की गौण लय (secondary rhythem) में माना गया है। छन्द की मुख्य लय (primary rhythm) में तत्तत् प्रकार की चरणगत गणव्यवस्था मानी जाती है । 'तुक' का प्रयोग छन्द के पादान्त में तीन दृष्टि से किया जाता है : (१) संघटनात्मक : (अ) इसके द्वारा छंद के विविध चरणों के अंत का संकेत किया जाता है; (ब) इसके द्वारा छन्दों के विविध चरणों के वर्गीकरण की व्यवस्था संकेतित की जाती है। १. दे० स्वयंभूच्छन्दस् पद्य संख्या १.२, १४, १६, २०, २६, ३०, ३४, ४२, ४६ आदि अनेक पद्य । २. दे० नमूने के तौर पर, केशवदास : रामचन्द्रिका. पद्यसंख्या ११.१०२, ११.२, ११.३, ११.६, ११.७, आदि. ३. भिखारीदास : छन्दार्णव. १२वीं तरंग पृ०. १४७-२६६. ४. हिंदी अतुकांत वर्णिक वृत्तों का एक नमूना यह है :- . गत हुई अब थी द्वि-घटी निशा, तिमिर पूरित थी सब मेदिनी । बहु विमुग्धकरी बन थी लसी, गगन मण्डल तारक-मालिका ।। (प्रियप्रवास २.१) ५. दे० - दलपतपिंगल, प्रकरण ३, पृ. २८-६१. तथा बृहत् पिंगल पृ०. ७२-९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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