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१.५४] मात्रावृत्तम्
[२९ ५३. गाहू का उदाहरण दे रहे हैं :
चंद्रमा, चंदन तथा (मुक्ता) हार तभी तक अपने रूप को प्रकाशित करते हैं, जब तक चंडेश्वर नामक राजा की कीर्ति अपने स्वरूप को नहीं दिखाती ।
टिप्पणी-ताव, जाव < तावत्, यावत् । पआसंति < प्रकाशयति । कित्ती < कीर्तिः ।
अप्पं < आत्मानं (त्म<'प्प' 'आत्मनिपः' प्रा०प्र० ३.४८; अप्प्+अं; कर्म० ए० व०)। ' णिदंसेइ < निदर्शयति । (णि+दंस+इ । (णिजंत)+इ वर्त० प्र० पु० ए० व०)। इस पद्य की भाषा परिनिष्ठित प्राकृत है। अह गाहा,
पढमं बारह मत्ता बीए अट्ठारहेहिँ संजुत्ता ।
जह पढमं तह तीअं दहपंच विहूसिआ गाहा ॥५४॥ [गाहा] ५४. गाथा छंद
गाथा के प्रथम चरण में १२ मात्रा होती हैं, दूसरे में यह १८ मात्राओं से युक्त होती हैं। तीसरे चरण में प्रथम चरण की ही तरह (तेरह मात्राएं) होती है, बाकी (चतुर्थ) चरण में गाथा १५ मात्रा से विभूषित होती है। गाथा छंद को ही संस्कृत ग्रंथकार 'आर्या' कहते हैं । उनका लक्षणोदाहरण यह है:
यस्याः प्रथमे पादे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि ।
अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पंचदश सार्या ।। टिप्पणी-पढमं < प्रथमं; कमात्मक संख्यावाचक विशेषण | पिशेल ४४९ । महा० प्राकृत में इसके पढम, पुढम, पद्म, पुदम ये वैकल्पिक रूप मिलते हैं । अर्धमा० में 'पढमिल्ल' रूप मिलता है । 'पढम' रूप परिनिष्ठित प्राकृत रूप है । अपभ्रंश-अवहट्ठ में इसका रूप 'पहिल' (स्त्रीलि. पहिली) होता है ।
बारह < द्वादश (इसका जैनमहा० अर्धमा० रूप 'बारस' है; महा० अप० रूप 'बाहर' दे० पिशेल ४४३ )।
बीए < द्वितीये; क्रमात्मक संख्यावाचक विशेषण; महा० में इसके बिइअ, बीअ, बिइज्ज रूप मिलते हैं; जैनम० अर्धमा० में इसके बिइअ, बीअ, बिइज्ज रूप मिलते हैं, अप० बीअ; पिशेल $ ४४९ ।
__ अट्टारहेहिं < अष्टादशभिः; इसके अट्ठार-अट्ठारह दोनों रूप होते है; दे० पिशेल अट्ठारह ६ ४४३ । 'द' के स्थान पर 'र' के लिए दे० पिशेल २४५ । 'एहिँ' (एहि) करण कारक ब० व० की विभक्ति है।
जह, तह < यथा, तथा । तीअं < तृतीयं (महा० तइअ, अर्धमा० तइय, शौ० तदिअ । अप० तीअ; पिशेल ६ ४४९ ) ।
दहपंच < पंचदश । (प्राकृत-अप० में समास में पूर्वनिपात होता है। दह < दश, इसके महा० माग० में विकल्प से दस-दह रूप पाये जाते हैं । पिशेल $ ४४२ )।
इसकी भाषा भी प्रायः परिनिष्ठित प्राकृत है। जहा
जेण विणा ण जिविज्जइ अणुणिज्जइ सो कआवराहो वि ।
पत्ते वि णअरडाहे भण कस्स ण वल्लहो अग्गी ॥५५ ॥ [गाहा] ५४. अट्ठारहेहिँ-A. 0. अट्ठारहेहि, B. अट्ठारहेहिं, C. अठ्ठारहेहि, D. अट्ठारएहि । तह-D. तं । विहूसिआ-C. D. विभूसिआ । ५५. जिविज्जइ-C.जिविज्जै, ०. जिविज्जिअ । अणुणिज्जइ-C. अणुलिज्जै, 0. अणुणिज्जिअ । वि-C. 'वि' इति पदं न प्राप्यते। पत्ते-D. पत्तो । णअरडाहे-B. "ठाहे C. °डाहो । भण-A. सहि । अग्गी-C. अग्गि, 0. अगी ।
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