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________________ ५०७ शब्द-समूह विजुरि (१.१६६ < विद्यूत् ली (री)), पत्थर (१.१६६ < प्रस्तर, राज० पाथर), भत्त (१.१७१ < भक्त), पंडिअ (१.१७१ < पण्डित), घरिणि (१.१७१ – गृहिणी), माआ (१.१८० < माया, अर्थ 'दया'), कवित्त ( २.३२ < कवित्व), वंझउ (२.१४९ < वन्ध्या), वड (२.१९३ < वृद्ध > *वड्ढ वड, हि० बड़ा, राज० बड़ो), जड्डा (२.१९५ < जाड्यं) । प्रा० पै० में देशी शब्द तथा धातु $ १२९. म० भा० आ० में ही ऐसे अनेक शब्द पाये जाते हैं, जिन्हें किन्ही संस्कृत शब्दों के तद्भव रूप नहीं माना जा सकता । वैयाकरणों ने इन शब्दों को देशी या देशज शब्द कहा है। इन शब्दों में प्रायः ऐसे शब्द हैं, जिनकी व्युत्पत्ति का पता नहीं है। ऐसे शब्दों में अधिकांश शब्द, वे जान पड़ते हैं, जो म० भा० आ० की कथ्य बोलियों में द्राविड़ भाषाओं या आग्नेय - परिवार की भारत में बोली जानेवाली भाषाओं से आ गये हैं । प्राकृत वैयाकरणों ने इन्हें देशी घोषित किया है तथा हेमचन्द्र की 'देशीनाममाला' में ऐसे अनेक शब्द हैं, जिनकी शोध खोज होने पर उनके मूल कां पता द्राविड़-परिवार तथा आग्नेय परिवार की शब्दावली में मिल सकता है । प्रा० पैं० में उपलब्ध देशी शब्दों में कतिपय निम्न हैं Vघल्ल, घल्लसि (१०७), 'देना, फेंकना' राज० घालबो, गुज० घालवुं. खुल्लणा (१.७). 'क्षुद्र,' राज० 'खोळ्लो'. Vछोडि (१.९), 'छोटी', राज० हि० 'छोटी'. खुड़, खुड़िअं (१.११) 'खुटना, पीड़ित होना'. हे (१.१४ - अधस्तात्) 'यहाँ पर, नीचे'. गुड़िआ (१.६७). 'गोली'. Vझंप, झंपिअ (१.९२) 'झाँपना, ढाँकना'. पक्खर (१.१०६), 'पाखर, हाथी घोड़े की झूल', राज० हि० 'पाखर'. Vठेल्ल (१.१०६) ' ठेलना' हि० ठेल-पेल. Vपेल्ल (१.१०६), 'पेलना' हि० ठेल-पेल. खोड (१.११६), 'लँगड़ा', राज० 'खोड्यो'. डेरउ (१.११६), 'टेढ़ी आँख वाला', राज० ढेय्रो'. मंडा (१.१३०), 'मोटी रोटी', राज० 'मँड़क्यो'. टंकु (१.१३०), 'आधा छटाँक', राज० 'टका भर' (वजन). रंक (१.१३०), 'गरीब', हि० 'रंक'. छइल (१.१३२), 'रसिक युवक', हि० 'छैला', राज० 'छैलो'. Vलुक्क, लुक्किअ (१.१५१, हि० लुकना), लुक्कु (२.१७३), 'छिपना'. Vगंज, गंजिअ ( १ . १५१). 'पराजित होना' 'राज० 'गँज जाबो' (बीमारी में परेशान होना). Vढुक्क, दुक्कंतउ (१.१५५, राज० संज्ञा 'ढोक'), ढुक्कु (२.१७३), 'मिलना'. Vखास, खसइ ( १ . १६० ). 'खिसकना' राज० 'खसकबो'. Vघुम, घुमइ (१.१६० हि० घूमना), राज० 'घूमबो'. Vघस, धसइ (१.१६०, हि० धँसना), राज० 'धसबो'. छाअण (१.१७४), हि० 'छाजन', राज० 'छावँण', 'छावणी'. लोर (१.१८०), 'आँसू', पूरबी हिंदी 'लोर'. V लोट्ट, लोट्टई (१.१८०) हि० रा० 'लोटना, लोटबो'. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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