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________________ भुंजेज्जसु, णिवसिज्जसु, जिणेज्जसु. (साथ ही संदेशरासक - पढिज्जसु कहिज्जसु ) । • दज्ज, कुमारपालप्रतिबोध में - 'इज्ज (केवल जीरो) वाले रूप भी प्र० पु० म० पु० ए० व० में पाये जाते हैं चइज्ज ( < त्यज्- ), भमिज्ज । प्रा० पैं० की भाषा में विधि प्रकार के रूप केवल प्र० पु० म० पु० ए० व० में ही मिलते हैं :- प्रथम पुरुष ए० व० 'उ रूप, म० पु० ए० व० 'हु, 'सु, ओ, शून्य रूप । पद- विचार प्राकृतपैंगलम् के विधि रूपों के विषय में संस्कृत टीकाकारों ने कई स्थानों पर भ्रांत दिशा का आश्रय लिया है, कुछ टीकाकार एक रूप को कर्मवाच्य से अनूदित करते हैं, दूसरे उसी रूप को आज्ञा से (अर्थात् वे उसे विधि रूप मानने के पक्ष में हैं)। कभी कभी सभी टीकाकार ऐसे स्थल पर जहाँ विधि रूप माना जाना चाहिए कर्मवाच्य मानते हैं। विधि के कुछ उदाहरण ये हैं : किज्जउ (१.९८), दिज्जउ (२.१०५). लिज्जउ (१.१३४), किज्जहु (१.१४९), दिज्जहु (१.१५३), ठविज्जसु (१.१९१), करिज्जसु (२.१३४), दिज्जसु (२.११८), मुणिज्जसु (२.११८), किज्जसु (२.११८), दिज्जो ( २.३७), मुणिज्जो (२.३७), करीज (१.१७७), दीज (१.१७७) ( टीकाकारों ने ये दोनों कर्मवाच्य रूप माने हैं - क्रियन्ते < दीयते), किज्जही (= किज्जहि) (२.५८), दिज्जही ( = दिज्जहि ) (२.५८) (टीकाकारों ने इन्हें भी कर्मवाच्य रूप माना है, < क्रियते < दीयंते). हैं ४९१ हिन्दी के आदरसूचक आज्ञा मध्यम पुरुष ए० व० के रूप इसी 'इज्ज' से संबद्ध हैं । हिन्दी के उदाहरण ये दीजिए, पीजिए, लीजिए । हिन्दी में 'इय्य वाले रूपों का भी विकास हुआ है ( प्राकृतपैंगलं मे० इय्य वाले रूप नहीं हैं) चलिए, खाइए, आइए । न० भा० आ० भाषाओं में आकर विधि वाले रूप आज्ञा प्रकार में ही मिल गये हैं। इसका संकेत हम उक्तिव्यक्तिप्रकरण की भाषा में ही पाने लगे हैं, जहाँ विधि प्रकार का कोई निजी रूप नहीं मिलता। कर्मवाच्य रूप : $ १०९, हम अभी संकेत कर चुके हैं कि मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा में कर्मवाच्य का चिह्न 'इय्य 'इज्ज (< ऐय्य, एंज्ज) < प्रा० भा० आ० 'य' है, दिज्जइ (म०, अर्धमा० जैनमहा०, अप०), दिज्जदि (शौर०), दे० पिशेल $ ५३५) । प्रा० पैं० में कर्मवाच्य के 'इज्ज तथा 'इय्य दोनों रूप मिलते हैं। संदेशरासक में 'इय, इज्ज तथा 'ईय (मेत्रि काजा, छंदोनिर्वाहार्थ) रूपों का अनुपात ३३ : १३ : ३ है । इस प्रकार स्पष्ट हैं कि संदेशरासक की भाषा इयविभाषा का संकेत करती है, जो मुलतान की तात्कालिक विभाषा का प्रभाव माना जा सकता है, जहाँ के निवासी अद्दहमाण ( अब्दुर्रहमान ) थे। प्राकृतपैंगलम् में भी 'इय (इअ), इज्ज (ईज) दोनों रूप मिलते हैं, किंतु यहाँ 'इय (जो प्राकृतपैंगलम् के हस्तलेखों की वर्तनी में 'इअ लिखा जाता है) वाले रूप मुश्किल से आधे दर्जन हैं, जब कि शेष सभी रूप 'इज्ज (ज) वाले हैं। यह तथ्य इस बात का संकेत करता है कि प्राकृतपैंगलम् की रचना 'इज्ज - ईज विभाषा से प्रभावित है। डा० चाटुर्ज्या ने उक्तिव्यक्ति की भूमिका में बताया है कि आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं को दो वगों में बाँटा जा सकता है :- (१) — इज्ज, –ईज भाषा वर्ग, जैसे राजस्थानी; (२) – ईअ, -इ भाषा वर्ग जैसे पंजाबी, पुरानी बँगला, पुरानी कोसली । इस प्रकार प्राकृतपैंगलम् के 'इय (इअ) रूपों को पंजाबी तथा खड़ी बोली हिंदी के प्राचीन रूप माना जा सकता है। वैसे ये 'इअ वाले रूप प्रा० पैं० में बहुत कम मिलते हैं । 2. Chatterjea: Uktivyakti § 70 (3) 3. Uktivyakti (Study) $ 72. p. 57 प्राकृतपैंगलम् से कर्मवाच्य के निम्न रूप उदाहृत किये जा सकते हैं :- इज्ज, ईज :- पाविज्जइ (१.४१), लविज्जइ (१.१०५), किज्जइ (१.१५२, २.९३), लिज्जइ (२.१९५), पभणिज्जइ (१.११६), सलहिज्जइ (१.१४६), मुणिज्जइ (२.१७०), किज्जए (२.६८), भणिज्जए (२.६८ ) (छन्दोनिर्वाहार्थ आत्मनेपदी रूप), ठवीजे (२.९२, करीजे (२.१००), कहीजे (२.१००), भणीजे (२.१००), धरीजे (१.१०१), दिज्जे (१.१०१), पाविज्जइ (१.४१ ). Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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