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________________ ३८२ प्राकृतपैंगलम् (२) बीसलदेवरास (बीसलदेवरासो) (३) पृथ्वीराजरासो (४) जयचन्द्रप्रकाश, (५) जयमयंकजसचन्द्रिका, (६) परमालरासो, (७) हम्मीररासो तथा (८) विजयपालरासो हैं। शुक्ल जी ने स्वयं ही इनमें से अधिकांश कृतियों की प्रामाणिकता पर संदेह किया है। इनमें से संख्या ४ तथा ५ के ग्रंथों की जानकारी नोटिस-मात्र कही जा सकती है तथा संख्या १ तथा ८ स्पष्ट रूप से बाद की रचनाएँ सिद्ध की जा चुकी हैं। 'हम्मीररासो' के विषय में शुक्ल जी का अनुमान कि "शाङ्गघर ने 'हम्मीररासो' नामक एक वीरगाथा काव्य की भी भाषा में रचना की थी" राहुलजीने यह कह कर गलत सिद्ध कर दिया था कि 'प्राकृत-पैंगलम्' में उद्धृत हम्मीर-संबंधी समस्त पद्य किसी जज्जल नामक कवि की रचना है। यह नाम हम्मीर से संबद्ध एक छप्पय में मिलता है :-"हम्मीर कज्जु जज्जल भणइ कोहाणल मह मइ जलउ।" किंतु इधर कुछ ऐसे प्रमाण मिलते दिखाई पड़े हैं, जो 'जज्जल' को हम्मीर का सेनापति घोषित करते हैं, तथा उक्त पद्यों का रचयिता कौन है, यह प्रश्न अभी भी अनिर्णीत बना हुआ है। जब तक हमारे पास कोई प्रमाण न हों, हम यह नहीं कह सकते कि ये पद्य 'शाङ्गघर' के 'हम्मीररासो' के ही हैं तथा शुक्ल जी का यह मत नि:संदेह संदेहास्पद है। नरपति नाल्ह के बीसलदेवरास के विषय में यह कहा जा सकता है कि प्रायः सभी विद्वान् एक मत से इसकी प्राचीनता पर संदेह करते हैं। डा० मोतीलाल मेनारिया ने तो स्पष्ट रूप से रचयिता को १६वीं शती के नरपति से अभिन्न माना है तथा उसकी रचना 'पंचदंड' से कुछ स्थल देकर उसकी भाषा की तुलना बीसलदेवरास(-रासो) की भाषा से कर यह सिद्ध किया है कि दोनों एक ही कवि की रचनाएँ हैं ।२ डा० माताप्रसाद गुप्तने 'बीसलदेवरास' का सम्पादन किया है तथा वे इस निर्णय पर पहुंचे हैं कि 'बीसलदेवरास' की रचना चौदहवीं शताब्दी तक अवश्य हो गई होगी।"३ इस संबंध में इतना संकेत कर दिया जाय कि डा० गुप्त को उपलब्ध हस्तलेखों में प्राचीनतम प्रति सं०.१६३३ की है। इस प्रति से लगभग २५०-३०० वर्ष पूर्व तक बीसलदेवरास की रचना-तिथि खींच ले जाने का कोई अवांतर पुष्ट प्रमाण डा० गुप्त न दे सके हैं । यदि डा० गुप्त कोई भाषाशास्त्रीय प्रमाण दे पाते तो उनके अनुमान को सहारा मिलता । इधर मेरे प्रिय शिष्य श्रीइन्द्रदेव उपाध्याय 'बीसलदेवरास' के भाषाशास्त्रीय अनुशीलन पर एम० ए० के प्रबंध के लिये काम कर रहे हैं । गवेषणाकार्य में उनका निर्देशन करते हुए मैं इसी निष्कर्ष पर पहुंच पाया हूँ कि उक्त कृति में सोलहवीं शती की राजस्थानी का रूप उपलब्ध है। श्री उपाध्याय के प्रबंध के प्रकाशित होने पर, आशा है, इस विषय में कुछ नये तथ्य विद्वानों के समक्ष आयेंगे । १२. चन्द के 'पृथ्वीराजरासो' की अप्रामाणिकता का विवाद हिंदी साहित्य के इतिहास में विशेष मनोरंजक है, साथ ही इसकी प्रामाणिकता सिद्ध करने में कुछ विद्वानों में अत्यधिक अभिनिवेश का परिचय दिया है। अतः इस पर यहाँ कुछ विस्तार से विचार करना अपेक्षित होगा । पृथ्वीराजरासो के विषय में तीन मत प्रचलित हैं। प्रथम मत उन विद्वानों का है, जो पृथ्वीराजरासो को प्रामाणिक रचना मानते हैं तथा इसे पृथ्वीराज की समसामयिक (१३वीं शती विक्रम पूर्वार्ध) रचना घोषित करते हैं । इस मत के पोषकों में पंडित मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या, रासो के लाहौर वाले संस्करण के संपादक पं० मथुराप्रसाद दीक्षित तथा डा० श्यामसुंदरदास हैं। पंड्या जी तो रासो को इतिहास संमत सिद्ध करने के लिये, इसकी तिथियों की संगति बिठाने के लिये, 'अनंद संवत्' की कल्पना भी कर बैठे थे । दीक्षित जो रासो की पद्य संख्या केवल 'सत्त सहस' या सात हजार श्लोक मानते हैं और उन्होंने ओरियंटल कालेज, लाहौर की प्रति को रासो का प्रामाणिक रूप घोषित किया है। यह प्रति रासो का लघु रूपांतर है । रासो के ऐसे ही लघु रूपांतर और भी मिलते हैं । इसकी एक प्रति अनूप संस्कृत पुस्तकालय बीकानेर में है, अन्य श्री अगरचंद नाहटा के पास है । ये सभी प्रतियाँ १७ वीं शताब्दी या उसके बाद की हैं । नाहटा जी वाली प्रति के आधार पर ही भाई नामवरसिंह ने 'कनवज्ज-समय' पर काम किया है। द्वितीय मत रासो को सर्वथा जाली ग्रंथ मानने वालों का है, जिनमें डा० ब्यूल्हर, डा० गौरीशंकर हीराचंद ओझा, मुंशी देवीप्रसाद तथा कविराज श्यामलदास है। ओझाजी के प्रमाणों को आधार बनाकर डा० मोतीलाल मेनारिया ने भी १. दे० मेनारिया : राजस्थानी भाषा और साहित्य पृ० ११२ (द्वितीय संस्करण) । २. वही पृ० ११८-११९ । ३. डा० गुप्त : बीसलदेवरास (भूमिका) पृ० ५५ (हिंदी परिषद, प्रयाग विश्वविद्यालय) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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