________________
३७६
प्राकृतपैंगलम्
प्रस्तुत संपादक को 'प्राकृतपैंगलम्' के तीन और हस्तलेख मिले हैं। इनमें से एक हस्तलेख अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। यह हस्तलेख उपलब्ध पश्चिमी हस्तलेखों में प्राचीनतम है। इसकी तिथि "कार्तिक सुदी बुद्धवार संवत् १६०८" है। इस प्रकार यह हस्तलेख डा० घोषाल के हस्तलेख B के ही बाद का है। यह हस्तलेख पश्चिमी प्रवृत्तियों से युक्त है, तथा कलकत्ता संस्कृत कालेज के हस्तलेख सं० ८१० (श्री घोष का A हस्तलेख) से प्रयुक्त पाठान्तर की दृष्टि से अक्षरश: मिलता है। संभवतः दोनों या तो एक ही हस्तलेख से नकल किये गये हैं, अथवा इनमें से एक, दूसरे से नकल किया गया हो । इन दोनों हस्तलेखों के परस्पर संबन्ध का विवेचन हम आगामी पृष्ठो में करेंगे। हमें प्राप्त द्वितीय हस्तलेख अधूरा है। इसमें कोई तिथि नहीं है तथा यह केवल मात्रावृत्त के ९२ पूरे छंद तथा ९३ अधूरे छंद तक प्राप्त है। हस्तलेख परवर्ती है तथा किसी जैन लिपिकार के द्वारा लिखा गया है। तृतीय हस्तलेख परवर्ती है, किंतु इसके साथ रविकरकृत टीका भी है। यह हस्तलेख हमें 'बड़ौदा विश्वविद्यालय' से प्राप्त हुआ है।
प्रस्तुत संस्करण में हमने दोनों प्रकाशित संस्करणों तथा उक्त हस्तलेखों का उपयोग किया है । इस प्रकार इस संपादन का मूल आधार पश्चिमी प्रकृति के ही हस्तलेख हैं; पूर्वी प्रकृति के पाठान्तर के लिये मैंने यत्र-तत्र कलकत्ता संस्करण तथा उसमें निर्दिष्ट पूर्वी हस्तलेखों के पाठान्तरों का वहीं संकेत किया है जहाँ आवश्यक है । इस प्रकार इस संस्करण में निम्न सामग्री का उपयोग किया गया है ।
१. K. श्री चन्द्रमोहन घोष द्वारा 'बिब्लोथिका इंडिका' में संपादित संस्करण । २. N. काव्यमाला में संपादित संस्करण । ३. A. संस्कृत कालेज, बनारस का हस्तलेख, श्री घोष वाला E हस्तलेख (त्रुटित) ।
B. संस्कृत कालेज, बनारस का हस्तलेख, श्री घोष वाला F हस्तलेख (त्रुटित) ।
C. जैन उपाश्रय, रामघाट, बनारस का पूर्ण हस्तलेख । ६. D. जैन उपाश्रय, रामघाट, बनारस का अपूर्ण हस्तलेख । ७. 0. बड़ौदा विश्वविद्यालय के "ओरियंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' का पूर्ण हस्तलेख ।
उक्त हस्तलेखों का परस्पर संबंध संकेतित करने के पूर्व इन हस्तलेखों का विवरण दे देना आवश्यक होगा । इनका यह विवरण निम्न है :
संस्कृत कालेज, वाराणसी के सरस्वती भवन पुस्तकालय में 'प्राकृतपैंगलम्' नाम से ४ हस्तलेख मुझे मिले हैं। इनमें तीन हस्तलेख प्रा० पैं० के हैं, चौथा हस्तलेख वस्तुतः प्राकृतपैंगलम् के आधार पर एक संक्षिप्त छन्दोग्रन्थ है । इस हस्तलेख का नाप १०x४है। पत्र संख्या २० तथा प्रत्येक पृष्ठ पर ९ पंक्तियां, तथा प्रतिपंक्ति में ३२-३३ अक्षर हैं। इसमें केवल ८५ चुने हुए चंद हैं तथा प्रा० पैं० के केवल लक्षण मात्र ही हैं । ग्रंथ की पुष्पिका है :-"इति श्री नागराजकृतं पिंगलशास्त्र चौरासी छंद: समाप्तं" पुष्पिका में 'चौरासीछंदः' लिखा है, पर अन्त में ८५ वा 'मनोहर' (मनहर) छंद देकर ८५ संख्या दी गई है। पुस्तक के अंत में लिपिकार का नाम यों है :-"संवत् १६३९ वर्षे चैत्र वदि ११ उत्तराषाढ नक्षत्र सुभनामजोगदिने सहरागढजगम्मनिराज्यप्रवर्तमाने इदं पुस्तकं श्रीमल्लक्ष्मीसागरशिष्यपंजिनदासेन लिषितमिदं पुत्र श्रीषरगसेनि पठनार्थं ॥ शुभं भवतु ॥ लेषकपाठकयोः ॥
शेष तीनों प्रतियाँ खंडित है । विवरण यों है :
१. माप १० x ३२, पत्र सं० ३, पंक्ति ८, अक्षर ४५-४६ केवल मूल (मात्रानष्ट प्रकरण तक), खंडित । २. माप १२५ x ५६, पत्र सं० १४, पंक्ति मूल ३, टीका ७ । सटीक, (गाथाप्रकरण तक), खंडित ।
३. माप १३२ x ५६, पत्र सं० ५७, पंक्ति १०, प्रत्येक पंक्ति अक्षर ४८, सटीक (वंशीधरी टीका से युक्त) खंडित ।
इनमें प्रथम हस्तलेख ठीक वही है, जो कलकत्ता के संस्करण में F हस्तलेख है, हमने B के लिए इसी का पाठ लिया है। त्रुटित अंशों के पाठ कलकत्ता संस्करण के F वाले पाठों से दिये हैं। अंतिम हस्तलेख भी कलकत्ता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org