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________________ भूमिका ३७५ E. क्वीन्स कालेज, बनारस के संस्कृत पुस्तकालय का हस्तलेख सं० १६० । यह हस्तलेख कतिपय स्थानों पर यत्र तत्र खंडित था, किंतु वैसे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण माना गया था। यह स्थूल एवं स्पष्ट देवनागरी अक्षरों में था । इसके साथ कृष्णदेव के पुत्र वंशीधर के द्वारा १६९९ (शक अथवा विक्रम संवत यह संकेत नहीं मिलता) में आषाढ मास में समाप्त 'पिंगलप्रकाश' टीका भी थी। ____E उक्त स्थान पर सुरक्षित हस्तलेख सं० ६५ । कुछ अस्पष्ट देवनागरी अक्षरों में किसी विश्वनाथ के द्वारा सं० १७४२ के ज्येष्ठ मास में लिखित । G. उक्त स्थान पर सुरक्षित हस्तलेख सं० ६६ । यह किसी कृष्ण के द्वारा लिखित टीका थी, जिसके आरंभिक पृष्ठ पर "वंशीधरी" लिखा था । यह देवनागरी हस्तलेख संपूर्ण था तथा संभवतः उसी लेखक का लिखा था, जिसने F हस्तलेख लिखा था । ___H. उक्त स्थान पर ही सुरक्षित हस्तलेख, जिसमें देवनागरी अक्षरों में यादवेंद्र लिखित 'पिंगलतत्त्वप्रकाशिका' टीका थी। इस विवरण से स्पष्ट है कि अंतिम दो हस्तलेखों में केवल टीकायें थीं, मूल ग्रन्थ नहीं । इन हस्तलेखों में केवल तीन पर ही तिथि थी । हस्तलेख B शकसंवत् १६९० (१८२५ वि०) का लिखा हुआ था, हस्तलेख F की लेखनतिथि संवत् १७४२ थी । हस्तलेख E का लेखनकाल नहीं था, किंतु उसमें प्राप्त टीका का रचनाकाल १६९९ सं० है, अतः यह हस्तलेख इससे पूर्व का नहीं है। अन्य हस्तलेख सभी बाद के थे । केवल A हस्तलेख, कुछ पुराना जान पड़ता है, किंतु बहुत पुराना नहीं है। कुछ लोगों ने लिख मारा है कि 'बिब्लोथिका इंडिका' का संस्करण जिन प्रतियों के आधार पर संपादित किया गया है, उनका समय १६ वीं शताब्दी से पहले का बताया गया है। यह मत सुनी-सुनाई बातों पर बनाया हुआ जान पड़ता है। स्पष्ट है, कि 'बिब्लोथिका इंडिका' वाले संस्करण का आधार १७ वीं शती से भी बाद के हस्तलेख हैं। ___ डॉ० एस० एन० घोषाल को, जो इन दिनों 'प्राकृतगलम्' के संपादन में व्यस्त हैं, कुछ नये हस्तलेख और मिले हैं । उन्होंने 'इंडियन हिस्टोरिकल क्वार्टर्ली' के मार्च १९५७ के अंक में इन हस्तलेखों की सूची दी है। उन्हें पूर्वी प्रदेश या बंगाल से ७ हस्तलेख उपलब्ध हुए हैं, जिन्हें वे "पूर्वी हस्तलेख" (Eastern Mss.) कहते हैं। इन्हें वे क्रमश: B1, B2, B3, Ba, Bs, Bh, B, कहते हैं । B, ठीक वही हस्तलेख है, जिसे श्रीचन्द्रमोहन घोष ने अपनी सूची में B संज्ञा दी थी, जो शकसंवत् १६९० का लिखा हुआ है। डा० घोषाल का BF-ठीक वही जान पड़ता है, जो श्रीचन्द्रमोहन घोष का A हस्तलेख था, तथा उनके B, तथा B4 क्रमशः श्रीघोष के C और D हस्तलेख हैं। डा० घोषाल को BI. Bh. और B. नये हस्तलेख मिले हैं, जो श्रीघोष को नहीं प्राप्त हो सके थे। ये तीनों लेख तिथियुक्त हैं। B, की तिथि १४२९ है। यह तिथि शकसंवत् है या विक्रमसंवत्, यह स्पष्ट नहीं है । जान पड़ता है, यह शकसंवत् ही है। इस तरह इसका लिपिकाल १५६४ वि० के लगभग आता है। यदि यह तिथि प्रामाणिक है, तो यह हस्तलेख निःसन्देह प्रा० पैं० के सतिथिक हस्तलेखों में प्राचीनतम सिद्ध होता है । B3 तथा B क्रमश: शकसंवत् १७७२ तथा शकसंवत् १७५४ के हैं तथा इस तरह बहुत बाद के हैं। डा० घोषाल को शेष ८ हस्तलेख भंडारकर ओरियन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना के पुस्तकालय से प्राप्त हुए हैं, जिन्हें वे "पश्चिमी हस्तलेख" (Western Mss.) कहते हैं। ये हस्तलेख क्रमश: DI, D2, D3, DA, D5, D6. D7, Ds की संज्ञा के अभिहित किये गये हैं। इनमें केवल दो हस्तलेख ही सतिथिक हैं | D3 की लेख-तिथि संवत् १८२२ है, D की सं० १७२९ । D हस्तलेख के साथ टीका भी है, जिसका रचनाकाल १६५७ संवत् है । इस हस्तलेख की टीका लक्ष्मीनाथ भट्ट वाली टीका ही जान पड़ती है। अतः स्पष्ट है कि यह हस्तलेख इस तिथि के बाद का है तथा इतना पुराना नहीं जान पड़ता । ये सभी हस्तलेख पश्चिमी प्रवृत्ति से युक्त बताये गये हैं; जिसका विवेचन डा० घोपाल ने उक्त पत्रिका में प्रकाशित लेख "ए नोट ऑन द इस्टर्न एंड वेस्टर्न मैन्युस्क्रिप्ट्स आव् द प्राकृतपैंगल" में किया है। हम इस अनुशीलन में यथावसर पूर्वी और पश्चिमी हस्तलेखों की इन प्रवृत्तियों का संकेत करेंगे । १. हिंदी साहित्य पृ० ६ (प्रथम संस्करण) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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