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________________ होना अभिधान (शब्दकोष) ३५५ विज्जाहर (विद्याधर) १.१४५ कवि का नाम संकट २.२४, २.१०१ विपत्ति विज्जुलिआ १.१८८ बिजली विवरीअ (विपरीत) १.७० उलटा संकरु (शंकरः) १.१०१ महादेव संकरो (शंकर) २.१४ महादेव विस (विष) २.१२० जहर विजुरि १.६६ बिजली संकाहरु (शंकाहरः) १.१०४ शंका हरने विसम (विषम) १.४३ विज्जू (विद्युत) २.८१ बिजली वाला *विज्जूमाला (विद्युन्माला) २.६६ छंद का | विसज्ज (वि-/सर्ज-सृज) विसज्जइ १.३६, विसज्जे २.१०६ छोड़ना नाम संख (संख्या) जहसंखं (यथासंख्यं) १.१२ संखा (संख्या) १.१६८ विट्टि (वृष्टि) विढेि (वृष्टि) कर्म० ए० १.७२ | विसामकरं (विश्रामकर) १.१८९ *संखणारी २.५१ वर्णिक छंद का नाम बारिस | वि+ हंड (वि+Vखंड्) विहंडिअ १.२०७ | संगहिणी (संग्रहिणी) १.६३, पुनर्भू, जो एक विण (विना) १.५५ टुकड़े करना पति को छोड़कर अन्य पति ग्रहण विणास (विनाश) १.१०१ अंधअ-गंधविहास (विभाषा) (स-) विहासं (सविभाषं) कर लेती है विणास करु-(अंधकगंधविनाशकरः) १.५ विकल्प सं. घार (सं+Vह) संघारि २.२० संहार विणु (विना) १.११६ विहि (विधि) १.८६, २.१५३ करना, भरना वि+Vणास विणासिअ१.२०७ विनाश करना विहिअ (विहित) २.१०९ संचारण २.४६ विणअ (विनय) १.१७४ नम्रता विहूसिणा (विभूषित) १.१४९ विणआ (विनया) २.११७ नम्र (स्त्री) सं+/चार संचारि (संचार्य) (पूर्वकालिक) विहु (द्वि) १.२०९ दो वि + Vतर वितरउ २.१३८ देना १.४७, घूमना, फिरना वि+हा (वि+Vधा) विहु (विधेहि) आज्ञा | संजन (संय वित्थर (विस्तार) १.१६६ संजुत्त (संयुक्त) १.२ (संजुत्तपरो १.२, १.४) म० ए० १.८६ करना संजोए (संयोगे) (अधिकरण ए० व०) १.५ वित्त १.१७४ धन विहूण (विहीन) १.११, (लक्खण-) विहूणं । संयोग में, हि० रा० संजोग विदिस (विदिशा) १.१८९ १.११ सं+Vठव (सं + Vस्थापय्) संठवहु (आज्ञा विपख (विपक्ष) १.२०४ शत्रु विहूसिआ (विभूषिता) १.५४ विपक्ख (विपक्ष) १.१४७ शत्रु म० ब०) (संस्थापयत) १.९५, वीर १.१२२, २.१३२, पराक्रमी विप्प (विप्र) *विप्पगणु (विप्रगण) १.१०९ १.१३४, संठविअ २.१५१, संठिआ वीरेश १.७९ किसी राजा का नाम २.७७ स्थापित करना चार लघु विप्पक्ख (विपक्ष) १.१८२, २.६७ शत्रु वीस (विंशति-) १.१३० बीस सँतार (संतार) १.९ विप्पी (विप्रा) १.६४, १.८३ ब्राह्मणी वीसा (विष) १.९८ जहर सं+Vतार (णिजंत) (सं+Vतृ) संतारिअ विमल (विमल) १.१, १.१७४ वीसामो (विश्राम:) १.१०० विराम, यति (संतारितः) १.९८ पार लगाया *विमइ (विमति) १.७५ स्कंधक का भेद | वीसाइँ (विंशति) १.५२ बीस | सं+Vतास (सं+Vत्रास्) संतासइ १.१४४ विमुह (विमुख) १.८७ वुत्तो (वृत्तं) १.६८ छंद त्रास देना, दुःख देना, डरानाविरह २.६३ वुड्डओ (वृद्ध-क:) १.३ हि० बुड्डा-बूढा, धमकाना विरम विरमइ १.१३३ शांत होना रा० गु० बूढा संपअ (सम्पत्) १.३६, १.९८, २.१०१ विरई (विरतिः) १.१०० यति, विराम Vवुल्ल वुल्लिअ (Vवुल्ल-) १.१३५ हि० संपुडो (संपुटः) २.९१ *विराडउ (विडालः) १.८० दोहा छंद का | | बोलना संपुण्णउ (संपूर्ण:) १.१७९ पूरा वुलउ (देशी) १.११६ (रा० बूलो) गूंगा संभव २.१४० उत्पन्न होना वि+Vण्णा (वि+Vज्ञा) विण्णिआ (विज्ञाता) | वह (व्यूह) २.१३२ सं+Vभण संभणिआ (संभणिता) (भूत० २.७६ जानना वेआल (वेताल) १.११९ भूत, वेताल कर्म० कृदंत स्त्री०) १.६८, विरीअ (विपरीत) २.१३५ उलटा Vवेलाव (Vवेलापय्) वेलावसि २.१४२ संभणिअ २.१५२ कहना विरुज्जउ (विरुद्ध) २.१४९ विलंब करना सं भल संभलि १.१८० सँभलना वि+Vलस् (वि+Vलस्) विलसइ (विल- | वेसी (वैश्या) १.६४, १.८३ वैश्य की स्त्री *संभु (शंभु) १.९३ रोला छंद का भेद सति) वर्त० प्र० ए० १.१११ | वेसा (वेश्या) १.६३ संभेअ (संभेद) २.१२१ प्रकार, भेद सुशोभित होना |Vवोल वोलाइ २.११ बोलना *संमोहा २.३३ वर्णिक छंद नाम विविह (विविध) १.१ सं+ हार संहर २.१४ संहार करना वि+Vवत्त (वि+Vवृत्) विवत्तिउ १.२०५ | (स) संहार १.२०७ नाश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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