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________________ ३५६ प्राकृतपैंगलम् संहारणा २.४६ नाश करनेवाला सं+Vमद (म) समदि (संमद्य) पूर्वकालिक (सर्वायाः) १.१७ हि० रा० सब सअ (शत) १.९७ सौ १.१०६ मदित करके सव्वकला (सर्व-कला) १.४० सअण (शयन) २.१३८, २.१५० सम समान समा २.११४ सव्वंग (सर्वांग) १.११६ सअल (सकल) १.८७ सारा समरूअ (समरूप) १.७३, १.११६ समान सव्वल (सर्वलिः ) १.१९९, २.१६८ सब सअलस (सालस) २.१६७ अलसाया । समला (श्यामला) २.८१ ससहर (शशधर) १.७५, २.१०९ चन्द्रमा सइ (स एव) २.९० वही समाज २.१६९ *ससि १.७५ स्कंधक का भेद सई (सती) २.८ पार्वती समाण (समान) १.७९ समाणा २.१६ । *ससि (शशिन्) १.१५ षट्कलगण का नाम सउँ (समं) करण-अपादान का परसर्ग 'से' | *समाणिआ (समानिका छन्द) २.८ ससि (शशिन्) चन्द्रमा ससिणा २.१८ १.११२, संभुहि सउँ (शंभुना अथवा ] *समुद्द (समुद्र) १.१९ अन्तलघु त्रिकल का | ससुर (श्वसुर) १.२०९ शंभोः समं) नाम (5) | Vसह (सं० /सह) हि० सहना रा० सहबो सउ (शत) १.४६ सौ *सारंग (सारंग) १.७५ स्कन्धक का भेद -वो (उ० स'बो) गु० सहेर्दू, सहइ सउबीस १.१७९ एक सौ बीस सर (शर) २.१६६ पाँच (वर्त० प्र० ए०) १.१०; सह "सक्को (शक:) १.१५ षट्कलगण का नाम | *सरग्गिक्का (सारंगिका) २.७८ वर्णिक छन्द १.१६१, सहिअ १.१६१, २.७४ सग्ग (स्वर्ग) २.५३, २.९४, २.२६१ का नाम सहिअउ १.१०७, सहिओ २.१७, सगणा १.२०३ अंतगुरु वणिक गण (15) | सरणा (शरण) २.१५५ २.१६६, सहब १.१६३ सच्चं (सत्य) १.७० सरस्सई (सरस्वती) २.३२ सहज १.६ सहजे (सहजेन) १.६ सहज से सजुत्त (संयुक्त) २.९३ सरह (शरभ) २.३९ छन्द नाम । सज्ज सज्जि १.२२५ सजाना सरह (शरभ) १.७५ स्कन्धक का भेद सहआर (सहकार) २.१६३ आम का पेड़ सज्जा २.१५७ सुसज्जित सरासार (शरासार) २.१३२ बाणवृष्टि सहसक्खो (सहस्राक्ष:) १.११३ काव्य छन्द सट्टि (षष्ठि) १.५१ साठ सरि (सहक्) १.३९ समान ___का भेद सण्णाह (सन्नाह) १.१०६ कवच *सरि (सरित्) १.७५ स्कंधक का भेद सहसक्खो (सहस्राक्षः) १.९३ रोला छन्द सततीस (सप्तत्रिंशत्) १.१५६ सैंतीस सरिस (सदृशः) समान, सरिसा (स्त्री०) का भेद सत्तसआ (सप्तशत) १.५० सात सौ १.१४ रा० सरीसो, सरीसी (स्त्री०) सहस्स (सहस्र) १.५० हजार सत्तग्गल (सप्ताग्रला) १.५२ सात अधिक | सरिर (शरीर) २.४० सहाओ (सहायः) २.८४ सत्ता (सप्त) २.१५६ सात सरीर (शरीर) १.१४७ सहावा (स्वभाव) १.२०९ सत्ताईसा (सप्तविंशति) १.५७, १.६४ | सरिस्सा (सदृश) १.७९ समान सहि (सखि) १,१६३, २.२३, २.५५ सत्ताईस | *सरु (शर) १.७५ स्कंधक का भेद । साअर (सागर) मध्यकालीन हिन्दी, सायर सत्तारह (सप्तदश) १.५० हि० सतरह रा० | सरूअ (स्वरूप) २.१७०, सरूअह २.१००। १.१, १.१५१ समुद्र सतरा, गु० सत्तर समान Vसाज ( सज्ज) सजकर, सजा कर, साजि सत्तावणी (सप्तपंचाशत्) १.५१ सत्तावन | सरोरुह २.९९ कमल १.१५७ सत्तावण्णाइ (सप्तपंचाशत्) १.५७ सत्तावन | Vसलहिज्ज (Vश्लाघय) सलहिज्जइ | साणंदिअ (सानंदित) १.१९५ सत्तु (शत्रु) १.३७ १.१४६, सलहिज्जसु १.११७ | *साण (श्वन्) १.१२२ छप्पय छंद का भेद सद्द (शब्द) १.१२३, २.१२७ प्रशंसा करना साण (शाण) १.१८८ शाण, बाण तेज करने Vसद्द (Vशब्द) शब्द करना, सद्दे २.८९ सल (शल्य) १.२०४ काँटा, दुःख, भाला का यन्त्र *सहूल (शार्दूल) १.८० दोहा छंद का भेद | सल्ल (शल्य) १.५८, १.१२३, १.२०५, | सामि (स्वामी-स्वामिन्) १.१०६ तु० हि० *सर्ल १.१०२ छप्पय छन्द का भेद सई रा० सामी (पति) २.१०६, २.१५७, भाला, दुःख सप्प (सर्प) २.१६० पिंगल नाग की उपाधि *सारंग १.१२२ छप्पअ छंद का भेद सव (सर्व) १.३७ सब सप्पाराए २.१०६ "सारंगरूअक्क (सारंगरूपक) २.१३१ छन्द सप्प (सर्प) १.८० दोहा छन्द का भेद | सवण (श्रवण) १.१०, २.१६५ कान । । का नाम समआ (समय) १.१४७ सव्व (सर्व) १.१८, तु० सव्व (संदेश०सारंगिक्का (सारंगिका) २.१५६ छन्द का समग्गल (समग्रलाः) १.१३१ सारे १८५) सव (वर्णर०६३ ख), सव | नाम समग्गाइँ (समग्राणि) १.५० सब कुल (उक्ति ५.२५), सव्वेहिं (सवैः) सारवई २.९४ छन्द का नाम समणा (शमनः) ३.१५५ शान्त करनेवाला (करण० ब०व०) १.१७, सव्वाए सारसि (सारसी) १.६१ गाथा का भेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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