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________________ १६८] प्राकृतपैंगलम् [२.१९० हंसा १९, जमका २०, सेसा २१, तिल्ला २२, विज्जोहा २३, तह चउरंसा २४, मंथाणा २५, संखणारी २६, मालती २७, दमणअ २८, समाणिआ २९, सुवासउ ३०, करहंची ३१, ता सीसा ३२, विज्जूमाला ३३, पमाणी ३४, मल्लिआ ३५, तुंगा ३६, कमला ३७, दीसा महालच्छी ३८, सारंगिक्का ३९, पाइत्ता ४०, कमला ४१, बिंब ४२, तोमरु ४३, रूअमाला ४४, संजुत्ता ४५, चंपअमाला ४६, सारवई ४७, सुसमा ४८, अमिअगई ४९, बंधु ५०, तह सुमुही ५१, दोधअ ५२, सालिणी ५३, दमणअ ५४, सेणिआ ५५, मालत्ती ५६, तह इंदवज्जा ५७, उविंदवज्जा ५८, उवजाइ ५९, विज्जाहरु ६०, भुअंगा ६१, लच्छीहर ६२, तोलअ ६३, सारंग ६४, मोत्तिअदाम ६५, मोदअ ६६, तरलणअणि ६७, तह सुंदरि ६८, माआ ६९, तारअ ७०, कंदु ७१, पंकावली ७२, वसंततिलआ ७३, चक्कवअं ७४, भमरावलि ७५, छंदा सारंगिक्का ७६, चामरु ७७, तह णिसिपाला ७८, मणहंस ७९, मालिणि ८०, सरहो ८१, णराउ ८२, णीलु ८३, तह चंचला ८४, तक्कड़ बंभारूअक जुत्ता ८५, पहवी ८६, मालाहरा ८७, मंजीरा ८८, जाणह, कीलाचंदा ८९, चर्चरी ९०, तह सदूला ९१, विअ सदूला ९२, जाणहु, चंदमाला ९३, धवलंगा ९४, संभू ९५, गीआ ९६, तह गंडक्का ९७, सद्धरआ ९८, णरिंदउ ९९, हंसी १००, सुंदरिआ १०१, दुम्मिला १०२, मुणहु, किरीट छंदा १०३, तह वे सालूरा १०४, विअ तिभंगी १०५, कइ पिंगल भणिअ पंचग्गल सउ सव्वा जाणहु धरकइ मुण हव्व। टिप्पणी-निर्णयसागर प्रति में ९१-९२ दोनों को एक ही संख्या में 'सद्लासट्टअ (९१)' माना है, तथा बाद में 'सवैआ (१०५)' छंद जोड़कर १०५ की संख्या पूरी की गई है। कलकत्ता प्रति में 'दोधक (५२)' को 'बंधु' से अभिन्न मानकर उसे 'दोधक ५०' लिखा है। इस तरह वहाँ १०४ संख्या होती है । 'कइ पिंगल.....' इत्यादि वाक्य कलकत्ता प्रति में नहीं है। कलकत्ता संस्करण की एक संस्कृत टीका भी संख्या १०४ ही मानती है-'चतुरधिकशतं वृत्तं जल्पति पिंगलराजः ।' (कलकत्ता संस्करण पृ. ५९३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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