SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४] वि' का विशेषण माना है- 'बुद्ध' (पु० नपुं० रूप) । पूरहु- पूरयत, आज्ञा म० पु० ब० व० । जहा, प्राकृतपैंगलम् पाअ णेउर झंझणक्कड़ हंससद्दसुसोहणा, थरथोर थणग्ग णच्चइ मत्तिदाम मणोहरा । वामदाहिण धारि धावइ तिक्खचक्खुकडक्खआ, काहु णाअर गेहमंडण एहु सुंदरि पेक्खि ॥ १८५ ॥ [ चर्चरी] १८५. उदाहरण: (इसके) पैरों में नूपुर, हंस के शब्द के समान सुंदर शब्द कर रहे हैं, मनोहर मुक्ताहार स्थूल स्तनाग्र पर नाच रहा है (अथवा मुक्ताहार स्तनाग्र पर थोड़ा थोड़ा नाच रहा है), इसके तीखे चक्षुः कटाक्ष बायें और दाहिने बाण की तरह दौड़ रहे हैं, किस सौभाग्यशाली पुरुष के घर को सुशोभित करने वाली यह सुंदरी दिखाई दे रही हैं ? टि०-झंझणक्कड़ - झणझणायते, ध्वन्याकृति (ओनोमेटोपोइक) किया, वर्तमान प्र० पु० ए० व० । थूरथोर - (१) स्थूलेस्थूले; (२) स्तोकं स्तोकं । काहु कस्य । पूरिस - पुरुषः, असावर्ण्य का उदाहरण, जहाँ परवर्ती 'उ' को 'इ' बना दिया गया है । Jain Education International [ २.१८५ पेक्खिआ-< प्रेक्षिता (= प्रेक्षितिका), कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत स्त्रीलिंग रूप; वस्तुतः 'प्रेक्षिता' से प्रेक्षिता > पेक्खिआ > पेक्खिअ अप० में होगा, इसका आ वाला रूप स्वार्थे क वाले रूप से विकसित हो सकता है; अतः हमने इसकी व्युत्पत्ति कोष्ठक में '*प्रेक्षितिका' से संकेतित की है) । एकोनविंशत्यक्षर प्रस्तार, शार्दूलसट्टक छंद: मोसो जो स ततो समंत गुरवो एऊणविंसा वणो, पिंडो सउ बीस मत्त भणिअं अट्ठासी जोणी उणो । जं छेहत्तरि वण्णओ चउ पओ बत्तीस रेहं उणो चोलीसह हार पिंगल भणे सद्दूल सट्टा मुणो ॥ १८६॥ १८६. जहाँ प्रत्येक चरण में क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण तथा गुरु हों; (इस प्रकार ) १९ वर्ण हों, तथा सम्पूर्ण छन्द में १२० मात्रा कही गई हैं, इनमें ८८ मात्रा योनि है, (अर्थात् ८८ मात्रा गुर्वक्षरों की है, भाव यह है यहाँ ४४ अक्षर गुरु होंगे - शेष लघु) जहाँ चारों चरणों में ७६ वर्ण हों तथा (इनमें) ३२ लघु (रेखा) अक्षर हों, ४४ गुरु हों, इसे पिंगल कवि ने शार्दूलसट्टक छंद समझा है । टि०- एऊणविसा - ८ एकोनविंशति, (निर्णयसागर प्रति में 'एगूणविसा' पाठ है, पिशेल ने इसी पाठ का संकेत किया है - पिशेल पृ. ३१५) । इसके अन्य रूप ये हैं: - 'एगूणवीसं ' (अर्धमागधी), अउणवीसई, अऊणवीसं (अर्धमा०, जैनमहा० ) दे० पिशेल $ ४४४ । (हि० उन्नीस, राज० उगणीस) । छेहत्तरि < षट्सप्तति, (जैनमहा० 'छावत्तरिं' पिशेल $ ४४६ ) ( शार्दूलसट्टक : - SSSSS || SSS SSS= १९ वर्ण) १८५. झंझणक - B. ज्झंझणक्कइ । सुसोहणा - A. सूसोहणा । थूर A. B. थूल, C. थोर थोर, N. थोल थोल । धारि - K. वाण, A. B. O. धालि कडक्खआ - K. कढक्खआ। काहु-N. काहि । णाअस्- C. पुरुस, N. O. पूरिस। एहु - N. एह । पेक्खिआC. देक्खिआ, N. पेक्खआ । १८५ - C. १८१, N. २३२ । १८६. सततो समंत -C. सततीस मत्त । एऊणविंसा वणो - A. B. एकविसावणो, C. एउण्णविसाउणो, K. एऊणविसाउणो, N. एगूणविसा वणा । बीस - B. विंस, N. वीस । अट्टासि जोणी ऊणोC. अट्ठास जोणिप्पुणो, N. अट्ठासि जोणी पुण। वण्णओ - C. वण्णणो । चउ-C. चतउ । पक्षी C. पआ । चोआलीसह - C. एआलीसह, A. चौआलीसह, B. चौवालीसह । सद्दूलसट्टामुणो- C. सद्दूल सो सट्टकं, N. सदूलसद्दा मुणो । चोआलीसह...मुणोO. एआलीसह णाम पिंगल कई सद्दूल सो सट्टआ । १८६ - C. १८२, N. २३८, O. १८७ । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy