SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५०] प्राकृतपैंगलम् [२.१७५ जहा, उम्मत्ता जोहा उढे कोहा ओत्था ओत्थी जुझंता, मेणक्का रंभा णाहं दंभा अप्पाअप्पी बुझंता । धावंता सल्ला छिण्णो कंठा मत्था पिट्ठी पेरंता, णं सग्गा मग्गा जाए अग्गा लुद्धा उद्धा हेरंता ॥१७५॥ [ब्रह्मरूपक] १७५. उदाहरण: कुद्ध उन्मत्त योद्धा उठ उठ कर एक दूसरे से लड़ते तथा अपने आपको दंभ से मेनका तथा रंभा का पति समझते हुए, भाले से कटे सिरवाले योद्धा मस्तक को पीछे गिरा कर दौड़ते हुए स्वर्ग की इच्छा से ऊपर जाते हुए ऊपर (मेनकादिको) ढूँढ़ रहे हैं। टिप्पणी-आत्था आत्थी र उत्थाय उत्थाय । दंभा < दंभात् =दंभ, अपादान में प्रातिपदिक का प्रयोग । पदांत 'अ' का छंदोनिर्वाहार्थ दीर्धीकरण । अथवा इसे प्रा० का 'आ' सुप् प्रत्यय वाला अपादान रूप भी माना जा सकता है। अप्पा अप्पी < आत्मानं आत्मानं । जुज्झंता (*युध्यन्तः युध्यमानाः), बुज्झंता (*बुध्यतः=बुध्यमानाः) परंता < पातयंतः । हेरंता / हेर (देशी धातु) +अंत ब० व० रूप । सप्तदशाक्षर प्रस्तार, पृथ्वी छंद: पओहर मुह ट्ठिआ तहअ हत्थ एक्को दिआ, ___ पुण्णो वि तह संठिआ तहअ गंध सज्जा किआ । पलंति वलआ जुआ विमल सद्द हारा उणो चउक्कलअ बीसआ पुहविणाम छंदो मुणो ॥१७६॥ १७६. जहाँ प्रत्येक चरण में आरंभ में पयोधर (जगण) हो, तब एक हस्त (सगण) दिया जाय, फिर इसी तरह जगण-सगण रखे जायें, तब एक गंध (लघु) सजाया जाय, फिर दो वलय (दो गुरु), विमल शब्द (एक लघु) तथा हार (एक गुरु) पड़ें; इस प्रकार प्रत्येक चरण में चार अधिक बीस मात्रा (२४ मात्रा) हों, इसे पृथ्वीनामक छंद समझो। पृथ्वी :-151, ||s, 151, 5, Iss, I5 = १७ वर्ण । टि०-दिआ-< दत्तः । सज्जा किआ-< सज्जीकृतः । जहा, - झणज्झणिअणेउरं रणरणंतकंचीगुणं, सहासमुहपंकअं अगुरुधूमधूपुज्जलं । जलंतमणिदीविअं मअणकेलिलीलासरं, णिसामुहमणोहरं जुअइमंदिरं रेहइ ॥१७७। [पृथ्वी] १७७. उदाहरण: झणझण शब्द करते भूषणों वाला, हास्ययुक्त मुखकमल वाला, अगुरु की धूप से सुगन्धित, मणि दीपकों से १७५. उट्टे-A. उठे, C. उठे। आत्था आत्थी-B. ओआ ओच्छी, C. ओथ्था ओथ्थी, N. उप्पाउप्पी । जुज्झंता-A.C. जुझ्झता। णाह-C. लाहे, N. णाहे । बुज्झंता-A.C. वुझ्झंता । धावंता-0. वा भल्ला । सल्ला-C. संठा । छिण्णो-C. छिण्णे, N. छिण्णा। पिट्ठी-C. पिठ्ठी । पेरंता-C. णच्चन्ता, N. सेक्खत्ता, 0. फेरंता । णं सग्गा-N. संमग्गा । मग्गा-N. भग्गा । लुद्धा-0. अद्धो। १७५-C. १७१, N. २०९ । १७६. ट्ठिआ-C. K. ट्ठिआ । एक्को-A. B. एक्का । पुणोवि B. पुणोपि । सज्जा-C. एक्को, N. सज्जो । पलंति-C. वलंत । बीसआ-N. वीसआ । मुणो-C. भणो । १७६-C. १७२, N. २१७ । १७७. झणज्झणिअ-B. झणझणिअ, K. झणझ्झणिअ । णेउर-C. N.O. भूसणं । कंचीगुणं-K. कांचीगुणं । धूपुज्जलं-C. धूमुज्जलं, 0. धूमज्जलं । 'दीवि-C. दीपों। लीलासर-C. 'कीलासरं । णिसामुह -C. णिसासुह । जुअइ-B. N. जुवइ । रेहइ-K. राजते। १७७C. १७३, N. २१८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy