________________
२.१७३] वर्णवृत्तम्
[१४९ टि०-दिज्जिए-विधि रूप (हि० दीजिये) । हिण्णि-< अनया; पदादि में 'प्राणता'; हिण्णि ह इण्णि (=इण्णि) । जहा, कण्ण पत्थ ढुक्क लुक्कु सूर बाण संहएण, घाव जासु तासु लग्गु अन्धकार संहएण । एत्थ पत्थ सट्टि बाण कण्णपूरि छड्डएण, पक्खि कण्ण कित्ति धण्ण बाण सव्व कट्टिएण ॥१७३॥
[चंचला] १७३. उदाहरण:कोई कवि कर्ण तथा अर्जुन के युद्ध का वर्णन कर रहा है:
कर्ण तथा अर्जुन (पार्थ) युद्ध के लिए एक दूसरे से भिड़ गये, बाणों के समूह के द्वारा सूर्य छिपा लिया गया, अन्धकार के समूह ने जिस किसी के घाव लगा दिया (अथवा अन्धकार समूह में भी शब्दबेधी होने के कारण उन्होंने एक दूसरे को घाव लगा ही दिया), इसी अवसर में अर्जुन ने साठ बाणों को (धनुष में चढ़ाकर) कान तक खींचकर छोड़ दिया; उन्हें देखकर यशस्वी कर्ण ने सभी बाणों को काट दिया ।
टि०-दुक्कु-< ढौकिताः, लुक्कु < निलीनः ।
छड्डएण, कट्टएण-इन दोनों के 'मुक्ताः' 'कर्तिताः' अनुवाद किये गये हैं। पर यह 'ण' समस्या बन गया है। 'छड्डए' 'कट्टए' को तो "ए वाले कर्ता ब० व० रूप मान सकते हैं, जो प्रा० पैं. की भाषा में अपवाद रूप में कुछ मिल जाते हैं, पर 'ण' के साथ ये रूप किस कारक के होंगे? इन्हें करण ए० व० के रूप तो माना नहीं जा सकता है। सम्भवतः 'संहएण' 'संहएण' की तुक मिलाने के लिए यह 'ण' प्रयुक्त हुआ है। यदि इन्हें 'कट्टए ण', 'छड्डुए ण' रूप माना जाय तो कुछ समस्या सुलझ सकती है तथा इन्हें 'मुक्ताः ननु' 'कर्तिताः ननु' से अनूदित किया जा सकता है। इसका संकेत कोई संस्कृत टीकाकार नहीं देता । ब्रह्मरूपक छंद :जो लोआणं वट्टे बिंबुढे विज्जुढे णासट्ठाणो,
सुज्जाणो णाओ छंदुट्ठावे कण्णद्वे हंसट्ठाणो । छंदु ग्गाअंतो वुत्तो कंतो सव्वे तो सम्माणीओ,
बम्हाणं रूअं छंदो एसो लोआणं बक्खाणीओ ॥१७४॥ १७४. जो (ब्रह्म) लोगों के बिंबोष्ठ में, विद्युत्स्थान (दाँतों) में तथा नासिका स्थान में रहता है, जो छंद का गान करनेवाले सभी लोगों के द्वारा सम्मानित है, यह सुंदर हंस के समान गति वाला, ब्रह्मरूपक छंद आठ कर्ण (आठ गुरुद्वय अर्थात् सोलह गुरु) के द्वारा ज्ञानी पिंगल (नाग) ने बताया है, इस छंद का मैंने लोगों के लिए वर्णन किया है।
ब्रह्मरूपक : 5555555555555555=१६ वर्ण । टिप्पणी-वट्ट < वट्टइ < वर्त्तते ।
छंटुट्ठावे =छंद+उट्ठावे ।। १७३. पत्थ-C. पथ्थ । ढुक्कु-C. 0. ढुक्क । लुक्कु-0. लुक्कु । संहएण-C. संघएण । घाव-0. घाउ । जासु तासु-C. N. जाहु ताहु । लग्गु-B. C. लग्ग, N. लागु । संहएण-C. संसएण । सट्टि-साठि । छड्डएण-N. छट्टएण । पेक्खि -C. पेक्ख । कट्टिएण-B. कठ्ठिएण, C. कट्टएण, K. कट्ठिएण, 0. कट्टएण । १७३-C. १६९, N. २०७. १७४. वट्टे-N. वच्छे। बिंबुढेC. विवुद्धे, N. बिम्बोटे । विजुट्टे-C. विज्जुद्धा, K.O. विजुटे। णासट्ठाणो-C. हंसठ्ठाणो, K. णासट्ठाणो, N. हंसट्ठाणे, ०. हंसाणां । सुज्जाणो-N. सुज्जाणे । णाओ-C. णाहो, N. णाऊ । छंदुवावे-C. कंडुठ्ठावे, A. B. K. छंदुठ्ठाणे, N. कण्ट्ठाणे । हंसट्टाणो-C.O. सारत्ताणो, N. सारहाणे । वुत्तो कंतो-N. कण्णा वुत्तो । कंतो... सम्माणीओ-C. सव्वं सेसो णामं भणीओ। बम्हाणं-B. बम्माणं, C. बंभाणो, N. बह्माणो, K. बह्माणं । रूअं-B. रूपं, C.N. रूओ। लोआणं-B. लोअणं, N. लोकाणं ।
बक्खाणीओ-A. वक्खाणिओ । १७४-C. १७०, N. २०८ । Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org