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________________ २.१७८] वर्णवृत्तम् [१५१ जाज्वल्यमान, मदनकेलि का लीला सरोवर, रात्रि के आरम्भ के समय मनोहर युवतिमंदिर (युवतियों का महल) सुशोभित हो रहा है। टि०-इस पद्य की भाषा प्राकृत है। इस पद्य में नपुंसक कर्ता ए० व० के अं वाले रूप मिलते हैं, जो प्रा० पैं. की भाषा में अपवाद स्वरूप हैं। मालाधर छंद: पढम दिअ विप्पआ तहअ भूवई थप्पिआ, चरण गण तीअओ तहवि भूवई दीअओ। चमर जुअ अग्गला विमल गंध हारुज्जला, भणइ फणिसेहरा मुणहु छंद मालाहरा ॥१७८॥ १७८. जहाँ प्रत्येक चरण में पहले विप्र (सर्वलघु चतुष्कल), तब भूपति (जगण) स्थापित किया जाय, तीसरे स्थान पर चरण गण (भगण) तथा फिर भूपति (जगण) दिया जाय, फिर दो चामर (गुरु), एक विमल गंध (लघु) तथा एक उज्ज्वल हार (गुरु) हो-सों के शेखर (सर्पश्रेष्ठ) पिंगल कहते हैं, इसे मालाधर छंद समझो। (मालाधर:-||5||ISISss=१७ वर्ण) टि०-विप्पआ-(विप्पअ) < विप्रकः (पदांत अ का छंदोनिर्वाहार्थ दीर्घ) । फणिसेहरा-फणिशेखरः । जहा, वहइ मलआणिला विरहिचेउसंतावणा, रअइ पिक पंचमा विअसु केसु फुल्ला वणा । तरुण तरु पल्लिआ मउलु माहवीवल्लिआ वितर सहि णत्तआ समअ माहवा पत्तआ ॥१७९॥ [मालाधर] १७९. उदाहरण: मलयानिल बह रहा है, विरहियों के चित्त को संतापित करने वाला कोकिल पंचम स्वर में बोल रहा है, किंशुक विकसित हो गए हैं, वन फूल गया है, वृक्षों में नये पल्लव आ गए हैं, माधवीलता मुकुलित हो गई है, हे सखि, नेत्रों को विस्तारित करो, देखो, वसन्त का समय आ गया है। टिप्पणी-माहवा-< माधवः (पदांत अ का छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्धीकरण) पत्तआ-< प्राप्त-क: (स्वार्थे क) (=पत्तअ, पदांत अ का छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्धीकरण) । अष्टादशाक्षर प्रस्तार, मंजीरा छंद:कुंतीपुत्ता तिण्णा दिण्णउ मंथा संठवि एक्का पाए, ऐक्का हारा दुज्जे कंकणु गंधा संठवि जुग्गा लाए । १७८. एतत्पद्यं-A. प्रतौ न प्राप्यते । तह अ-N. तहवि । भूवई-N. भूअइ । तहवि-B.N. तहअ । फणिसेहरा-B. फणिसारआ, N. फणिणाहरा । १७९. संतावणा-B. संतापणा । स्अइ-C. खइ, N. वुलइ, O. तबइ । तरुण-B. तरण । पेल्लिआ-C. N. पल्लवा । मउलु-B. मउल, K. मअलु, N. महुर । वितस्-B. विथरु । माहवा-B. मावहा । १७९-C.O. १७६, N. २२० । 0. अत्र पद्यचतुष्टयमधिकं प्राप्यते। - धआ कण्णा कण्णा सुपिअजुअलं गंधवलअं, उणो हारो णारी ठइअ चरणे अंत चमरं। इहा सत्ता वण्णा णवइ हुआ अठुइ फणी, फणीराआ जपे कमलमुहि एसा सिहरिणी ॥१७७॥ जहा, परं जोण्हा उण्हा गरलसरिसो चंदणरसो, णदक्खारो हारो मलअपवणा देहदवणा । मिलाणी वाणीली जलदिव जलद्दा तणुलदा, वइट्ठा जं दिठ्ठा कमलवअणा दीहणअणा ॥१७८|| सिहरिणी दिअपिअ गुरु गंधकण्णा लआरा ठवीआ तहा, पुणवि चमर दुण्ण सद्दा सुसज्जा करीआ तहा। तह वि अणिअ दुण्ण वंका वि संखावि हारा दिए, कमलवअणि मोत्तिहारा फणिंदा भणिआ पिए॥ जहा, अमिअवमिअ चंदबिबमुही पेक्खतिस्सा जहा, विमलकम फुल्ल ओल्ला अणेत्ता फुरंता तहा। दसण विततिसुद्ध कुन्दा कणीआ धरीआ जहा, अहरविमलबंधु फुल्ले सरिस्सा करीआ तहा ॥१८०॥ मोत्तिहारा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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