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२.१६३ ]
वर्णवृत्तम्
मनोहंस छंद:
जहि आइ हत्थ णरेंद बिण्ण वि दिज्जिआ, गुरु एक्क काहल बे वि अंतह किज्जिआ । गुरु ठाइ गंध अ हार अंतहि थप्पिआ, मणहंस छंद पसिद्ध पिंगल जंपिआ ॥ १६२ ॥ १६२. जहाँ प्रत्येक चरण में आरंभ में हस्त (सगण), तथा दो नरेन्द्र (जगण) दिये जायँ, फिर एक गुरु स्थापित कर, अंत में फिर गंध (लघु) तथा हार (गुरु) स्थापित किये जायँ, वह पिंगल के द्वारा प्रसिद्ध मनोहंस छंद है । (मनो हंसः - 115 15 115 15 || 515 = १५ वर्ण)
टिप्पणी-जहि-< यस्मिन् । दिज्जिआ < देयाः, किज्जिआ < करणीयाः ।
ठाइ - स्थापयित्वा । थप्पिआ <स्थापिताः, जंपिआ [ = जंपिअ < जल्पितं (छन्दोनिर्वाहार्थ 'अ' का दीर्घीकरण] ।
जहा,
[ १४५
जहि फुल्ल केसु असोअ चंपअ मंजुला, सहआरकेसरगंधलुद्धउ भम्मरा ।
वह दक्ख दक्खिण वाउ माणह भंजणा, महुमास आविअ लोअलोअणरंजणा ॥ १६३ ॥
[मनोहंस]
१६३. उदाहरण:
हे सखि, किंशुक, अशोक, चम्पक और मंजुल (वेतस) फूल गये हैं, भौरे आम के केसर की सुगन्ध के लोभी ( हो गये हैं), (मानिनियों के) मान का भंजन करनेवाला चतुर दक्षिण पवन बह रहा है; लोकलोचनों को प्रसन्न करनेवाला मधुमास (वसंत) आ गया है।
टि०- फुल्ल - फुल्लानि । भम्मरा < भ्रमराः कर्ता ब० व० ।
माह भंजणा - मानस्य भंजनः 'ह' संबंध कारक ए० व० का प्रत्यय; भंजणा (= भंजण) में पदांत 'अ' का छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्घीकरण ।
आविअ - आयातः (= आइअ का व श्रुतियुक्त रूप ) ।
रंजणा - ( = लोअलो अणरंजण) छंदोनिर्वाहार्थ पदान्त 'अ' का दीर्घीकरण) ।
मालिनी छंद:
पढम रससहित्तं मालिणी णाम वुत्तं, चमर तिअ पसिद्धं बीअ ठाणे णिबद्धं ।
सर गुरुजुअ गंधं अंत कण्णा सुबद्धं, भणइ सरस छंदं चित्त मज्झे णिहित्तं ॥ १६४ ॥
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१६४. जहाँ पहले दो रस (सर्वलघु त्रिकल) हों तब दूसरे स्थान पर तीन चामर (गुरु) निबद्ध हों, अन्त में क्रमशः शर (लघु), दो गुरु, गंध (लघु) तथा कर्ण (दो गुरु) हो, उसे (पिंगल) मालिनी नामक छंद कहते हैं; यह सरस छन्द (सहृदयों के) चित्त में बसा हुआ है ।
(मालिनी - III ||| SSS SS SS = १५ वर्ण)
टि० - सहित्तं - ( = सहितं तत्सम रूप का छंदोनिर्वाहार्थ द्वित्व) । णिहित्तं- ( णिहितं, अर्धतत्सम रूप का छंदोनिर्वाहार्थ द्वित्व) वृत्तं वृत्तं ।
१६२. जहि - C. जहिं, N. जिह। आइ- B. आहि । दिज्जिआ - A. दिज्जिए B दिज्जए । अंतह - C. N. तक्कइ । अंतहि -C. अंतह । जंपिआ - N. जप्पिआ । किज्जिआ - A. B. किज्जिए । १६३. फुल्ल - 0. फुल्लु । केसु - A. किंसु । मंजुला - C. वंजुला, N. वञ्जुला । सहआर - B. सहकार। भम्मरा - N. भम्मला । लोअण - C. लोचण । आविअ - B. आविआ । १६४. सहित्तं - B. सहितं । वृत्तं - A. वृत्तं । चमर - A. चरम, N. परम। पसिद्धं - A. B. णिबद्धं । बीअ ठाणे णिबद्धं - A. B. 'पसिद्धं, C. णिवित्तं, N. वीअ ठा मोणिबद्धम् । कण्णा सुबद्धं - A. B. °णिवद्धं, N. °णिवद्धं, C. सुणिद्धं । छंद - A. B. कव्वो । मज्झे -C. सठे, K. मझे, N मज्जे । णिहित्तं -C. णिबद्धं ।
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