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________________ १४६] प्राकृतपैगलम् [२.१६५ चित मज्झे-< चित्तमध्ये (=चित्ते) 'मज्झे' अधिकरण का परसर्ग । जहा, वहइ मलअवाआ हंत कंपंत काआ, हणइ सवणरंधा कोइलालावबंधा । सुणिअ दह दिहासुं भिंगझंकारभारा, हणइ हणइ हंजे चंड चंडाल मारा ॥१६५॥ [मालिनी] १६५. मलयवायु बह रहा है, हाय शरीर काँप रहा है, कोयल का आलाप कानों के रंघ्र में मार रहा है, दसों दिशाओं में भौंरों की गूंज सुनाई देती है, हे सखी, अत्यधिक क्रोधी, चण्डाल के समान निर्दय, कामदेव मारे डालता है, मारे डालता है। टिप्पणी-सुणिअ-टीकाकारों ने इसे 'श्रूयते', 'श्रूयन्ते' से अनुदित किया है, वस्तुतः यह कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत रूप 'श्रुताः' है। दिसेसुं < दिशासु, 'सुं' प्राकृत में अधिकरण ब० व० का प्रत्यय है । हंजे-सखी को संबोधन करने के लिए प्रयुक्त होता है। शरभ छंदः भणिअ सुपिअ गण सर लहु सहिओ, तह दिअवर जुअ करअल लहिओ। चउ चउकल गण पअ पअ मुणिओ, सरह सुपिअ कह फणिवइ भणिओ ॥१६६॥ १६६. जहाँ प्रत्येक चरण में पहले सुप्रिय गण (द्विलघ्वात्मक गण) को कह कर, शर (एक लघु) तथा लघु दें, तब दो करतल (चतुर्लध्वात्मक गण) लिये जायँ, इस प्रकार प्रत्येक चरण में चार चतुष्कल गण (४४४=१६ मात्रा) समझे जाय,-हे प्रिय, उसे फणिपति के द्वारा भणित शरभ छंद कहो । (शरभ:-॥ ॥ ॥ ॥ ॥s=१५ वर्ण) । टिप्पणी-लहिओ (Vलह+इअ) (कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत) < लब्धः । मुणिओ < मतः, भणिओ < भणितं । जहा, तरल कमलदल सरिसउ णअणा, सरअसमअससिसुसरिस वअणा । मअगलकरिवरसअलसगमणी कमण सुकिअफल विहि गढ तरुणी ॥१६७॥ [शरभ] १६७. उदाहरण: चंचल कमलपत्र के समान नेत्रवाली, शरत्कालीन चन्द्रमा के समान मुखवाली, मदमत्त हाथी के समान मंथर (सालस) गतिवाली, रमणी, किस सुकृतफल के कारण ब्रह्मा ने गढ़ी (बनाई)? टिप्पणी-मअगल < मदकल । (मि० राज. हि० मयगल, मैगल-"मदि माता मयगल सिणगार्या" (कान्हडदे प्रबंध १-४४)। कमण < केन (=कवण) । षोडशाक्षरप्रस्तार, नाराच छंदः णरेंद जत्थ सव्वलो सुपण्ण चक्क दीसए, पइक्क ठाम पंचमे पआ चऊ सबीसए । पलंत हार चारु सारु अंत जस्स वट्टए, पसिद्ध ए णराउ जंप गंध बंधु अट्ठए ॥१६८॥ १६८. जिस छंद के प्रत्येक चरण में सबल नरेंद्र (जगण) तथा सुपर्ण (रगण) क्रमशः दो बार दिखाई दें, पाँचवे १६५. हंत कंपंत-C. हन्त कंपन्ति । सवणरंधा-C. सरसवंधा । सुयिअ-A. सूणिअ । दिहासु-C."साअं, N. दिसेसुं। चंडC. हंत । १६६. सुपिअ-A. सूपिअ C. अ पिअ । लहु-B. B. जह । सर लहु सहिओ-C. पअगण सहिओ । तह...लहिओN. तह विहु करअल पअ पअ लहिओ । मुणिओ-C. सुणिओ। कह-C. गण । १६७. सरिस-C. N. 0. सरिजुअ । सुसरिसA. सूसरिअ । मअगल-C. मअगअ । विहि-C. विहु । गढु-K. गठ, 0. लिहु । १६८. णरेंद-A. B. णरिंद । चक-N. O. वे वि । चऊ सबीसए-A. B. चउ सवीसए, N. चतूरुवीसए। हार-N.O. हारु । वट्टए-C. वद्धए, N. वट्ठए । पसिद्ध.....अट्ठएN. पसिद्ध ए णराउ जम्पु गन्धबङ्कअट्टए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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