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________________ १३२] जहा, प्राकृतपैंगलम् बालो कुमारो स छमुंडधारी, उप्पाअहीणा हउँ ऐक्क णारी । अहण्णिसं खाहि विसं भिखारी, गई भवित्ती किल का हमारी ॥१२०॥ [ उपजाति] १२०. उदाहरण: पार्वती शिव से अपनी स्थिति का वर्णन कर रही हैं : कुमार (स्वामी कार्तिकेय) बालक है, साथ ही छः मुँह वाला है, मैं उपायहीन अकेली नारी हूँ, और (तुम) भिखारी ( बन कर ) रात दिन विष का भक्षण करते रहते हो; बताओ तो सही, हमारी क्या दशा होगी ? टि० - हउं - उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम इसकी उत्पत्ति निम्न क्रम से हुई है :- प्रा० भा० आ० अहम् > म० भा० आ० अहकं ('क' स्वार्थे ) परवर्ती म० भा० आ० हकं, हअं, हवँ > अप० हऊँ-हउ (अननुनासिक रूप ) ( व्रज० हौं, गु० हूँ । खाहि - Vखा + हि, वर्तमान म० पु० ए० व० । भिखारी - भिक्षा-कारिक >* भिक्खा आरिअ >* भिक्खारिअ> *भिक्खारी भिखारी । भवित्ती- भवित्री । हमारी - *अस्म - कर> अम्हअर > * अम्हार > हमार 'हमारी' 'हमार- हमारा' का स्त्रीलिंग रूप है । कित्ती वाणी माला साला, हंसी माआ जाओ बाला । अद्दा भद्दा पेम्मा रामा, रिद्धी बुद्धी तासू णामा ॥१२१॥ [विद्युन्माला] १२१. उपजाति के चौदह भेदों के नाम: [ २.१२० कीर्ति, वाणी, माला, शाला, हंसी, माया, जाया, बाला, आर्द्रा, भद्रा, प्रेमा, रामा, बुद्धि, ऋद्धि-ये उनके नाम हैं । द्वादशाक्षर प्रस्तार, विद्याधर छंद: चारी कण्णा पाए दिण्णा सव्वासारा, पाआअंते दिज्जे कंता चारी हारा । छण्णावेआ मत्ता गण्णा चारी पाआ, विज्जाहारा जंपे सारा णाआराआ ॥१२२॥ १२२. जहाँ प्रत्येक चरण में चार कर्ण (गुरुद्वय, अर्थात् आठ गुरु), तब अंत में चार गुरु (हार) दिये जायँ; जहाँ चारों चरणों में छानवे मात्रा हों, नागराज उसे विद्याधर छंद कहते हैं । टिप्पणी- दिण्णा < दत्ताः कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत । दिज्जे- कर्मवाच्य रूप । छण्णावेआ ८ षण्णवति: (प्रा० पैं० में इसका 'छण्णवइ' रूप भी मिलता है । दे० १-९५ । दे० पिशेल 8 ४४६ । अर्धमा० छण्णउई' ) । ( विद्याधर : - ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ = १२ वर्ण) । Jain Education International जहा, जासू कंठा वीसा दीसा सीसा गंगा, णाआराआ किज्जे हारा गोरी अंगा । गत्ते चम्मा मारू कामा लिज्जे कित्ती, सोई देओ सुक्खं देओ तुम्हा भत्ती ॥१२३॥ [विद्याधर] १२३. उदाहरण: जिनके कंठ में विष दिखाई देता है, सिर पर गंगा है, नागराज को हार बनाया है, तथा गौरी अंग में है, जिनके १२०. बालो कुमारो - बालः कुमारः । उप्पाअ - C. उप्पाअ, K. उप्पाउ । अहण्णिसं - C. अहणिसं । खाहि -C. खासि । विसंA. विशं, C. O. विखं । गई - C. गतिर्भवित्ती, N. गई० । भवित्ती -0. भवित्री । १२२. छण्णावे -C. छेण्णावेआ । गण्णापत्ता । १२३. जासू कंठा वीसा दीसा - N. वीसा कण्ठा वासू दीसा । कंठा - C. कंठे । गोरी-B. गौरी, O. णारी । गत्ते - K. O. गंते । गत्ते खम्मा - C. गल्ले चाम। सोई -C. सोऊ । देओ सुक्खं देओ - N. देऊ सुक्खं देओ, K. देऊ सुक्खं देऊ । तुम्हाC. अह्मा, O. उम्हा । भत्ती - O भत्ता । For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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