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२.१२४] वर्णवृत्तम्
[१३३ शरीर पर गजचर्म है, जिन्होंने कामदेव को मार कर कीर्ति प्राप्त की है, वही देव तुम्हें 'भक्ति' के कारण सुख दें ।
टिप्पणी-इस पद्य में छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्घस्वरांत की प्रवृत्ति बहुतायत से है। दीसा (=दीस < दृश्यते, कर्मवाच्य रूप । 'दीस' केवल धातु रूप है। सविभक्तिक रूप 'दीसइ' होगा)। भुजंगप्रयात छंदः
धओ चामरो रूअओ सेस सारो, ठए कंठए मुद्धए जत्थ हारो ।
चउच्छंद किज्जे तहा सुद्धदेहं, भुअंगापआअं पए बीस रेहं ॥१२४॥ १२४. हे मुग्धे, जहाँ ध्वज (आदिलघु त्रिकल, 15), तथा चामर (गुरु), इस प्रकार चार गण, प्रत्येक चरण में स्थापित किये जायें (अर्थात् जहाँ चार यगण ।ऽऽ हों), पिंगल ने इसे समस्त छंदों का सार कहा है तथा यह वैसे ही गले में स्थापित किया जाता है, जैसे हार । इस शुद्धदेह वाले छंद को भुजंगप्रयात कहा जाता है-इसमें प्रत्येक चरण में २० मात्रा होती हैं।
भुजंगप्रयात ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ 155=१२ वर्ण, २० मात्रा ।
टिप्पणी-'ओ' वाले शब्द 'धओ, चामरो' आदि प्राकृतीकृत रूप हैं । भुअंगापआअं, ०देहं, रेह-छन्दोनिर्वाहार्थ 'अनुस्वार' का प्रयोग ।
अहिगण चारि पसिद्धा सोलहचरणेण पिंगलो भणड ।
तीणि सआ बीसग्गल मत्तासंखा समग्गाइ ॥१२५॥ [गाहा] १२५. (भुजंगप्रयात छंद में) चार अहिगण (यगण) प्रसिद्ध हैं; (इस छंद के) सोलह चरणों में (अर्थात् चार छंदों में मिलाकर) सब कुछ बीस अधिक तीन सौ (तीन सौ बीस) मात्राएँ होती है-ऐसा पिंगल कहते हैं। (इस तरह एक छंद में ३२०:४८० मात्रा होगी।)
जहा,
महा मत्त माअंग पाए ठवीआ, तहा तिक्ख बाणा कडक्खे धरीआ ।
भुआ पास भोहा धणूहा समाणा, अहो णाअरी कामराअस्स सेणा ॥१२६॥ [भुजंगप्रयात] १२६. इस सुंदरी के चरणों में अत्यधिक मदमत्त हाथी स्थित है (यह मदमत्त गज के समान गति वाली है), तथा कटाक्ष में तीक्ष्ण बाण धरे हुए हैं, इसकी भुजाएँ पाश हैं, भौंह धनुष के समान हैं,-अरे यह सुंदरी तो कामदेव रूपी राजा की सेना है।
टि०-ठवीआ-< स्थापितः (=ठविअ का छन्दोनिर्वाहार्थ विकृत रूप, णिजंत का कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत)। धरीआ-< धृताः (=धरिआ, ब० व० रूप, 'इ' का छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्घ रूप) ।
धणूहा-< धनुः (अर्धतत्सम रूप 'धनुह' का छन्दोनिर्वाहार्थ विकृत रूप; अथवा तद्भव 'धणु'+'ह' (स्वार्थे)=धणुह का विकृत रूप) । लक्ष्मीधर छंद:
हार गंधा तहा कण्ण गंधा उणो, कण्ण सद्दा तहा तो गुरुआ गणो ।
चारि जोहा गणा णाअराआ भणो, एहु रूएण लच्छीहरो सो मुणो ॥१२७॥ १२७. जहाँ हार (गुरु) तथा गंध (लघु) हों, फिर कर्ण (दो गुरु) तथा गंध (लघु) हों, तथा कर्ण (गुरुद्वय) तथा
१२४. बीस-N. वीस । एतत्पद्यं C. प्रतौ न प्राप्यते । १२५. अहिगण-B. अभिगण, एतत्पद्यं C. प्रतौ १२६ संख्यकपद्यानन्तरं प्राप्यते । १२६. भुआ-B. भुजा । पास-A. B.O. फास । भोहा-C. भौहा, 0. भउहा । धणूहा-N. धनूहा, B. धणूसा । सेणाA. सणा, १२६-C. १२२ । भुजंगप्रयात-K. भुअंगपआतं । १२७. लच्छीहरो-B. लच्छीधरो ।
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