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________________ १३०] मात्रावृत्तम् [२.११३ ये मूलत: कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत रूप है। जंपंता जपंत, यह वर्तमानकालिक कृदंत रूप है :सं० जल्पन् > जंपतो > जंपंत का छन्दोनिर्वाहार्थ विकृत रूप है। णाएसा (=णाएस) < नागेशः । जहा, ठामा ठामा हत्थी जूहा देक्खीआ, णीला मेहा मेरू सिंगा पक्खीआ । वीराहत्था अग्गे खग्गा राजंता, णीला मेहा मज्झे विज्जू णच्चंता ॥११३॥ [मालती] ११३. उदाहरण: स्थान स्थान पर हाथियों के झुंड दिखाई पड़ रहे हैं, जैसे मेरु के श्रृंग पर नील मेघ दिखाई पड़ रहे हों; वीरों के हाथों के अग्र भाग में खड्ग सुशोभित हो रहे हैं; जैसे नील मेघों के बीच नाच रही हो । टिप्पणी-ठामा ठामा (=ठाम ठाम) 'स्थान-स्थाने' अधिकरण एक वचन । दक्खीआ (दक्खिअ < दृष्टं), पक्खीआ (पक्खिअ < प्रेक्षित) अथवा इन्हें ब० व० रूप भी माना जा सकता है, किंतु फिर भी दीर्घ 'ई' छन्दोनिर्वाहार्थ ही है। राजंता-(=राजंत अथवा ब० व०), णच्चंता (=णच्चंत, छंदोनिर्वाह दीर्घरूप), ये दोनों वर्तमानकालिक कृदंत इन्द्रवज्रा छंदः दिज्जे तआरा जुअला पएसुं, अंते णरेंदो गुरु जुग्ग सेसं । जंपे फर्णिदा धुअ इंदवज्जा, मत्ता दहा अट्ठ समा सुसज्जा ॥११४॥ ११४. प्रत्येक चरण में दो तगण दिये जायँ, अंत में जगण तथा दो गुरु हों, फणींद्र कहते हैं कि यह इंद्रवज्रा छंद है, तथा इसमें दस और आठ (अर्थात् अठारह) मात्रा प्रत्येक चरण में होती है। (इन्द्रवज्रा:-5515515155 =११ वर्ण) टि०-दिज्जे-< दीयते (कर्मवाच्य), अथवा इसे 'दद्यात्' (विधि प्रकार) का रूप भी माना जा सकता है। पएस-< पदेषु; 'प्राकृत' विभक्ति 'सु' अधिकरण ब० व० । जंपे-< जल्पति; वर्तमान प्र० पु० ए० व० । जहा, __ मंतं ण तंतं णहु किंपि जाणे, झाणं च णो किंपि गुरुप्पसाओ । मज्जं पिआमो महिलं रमामो, मोक्खं वजामो कुलमग्गलग्गा ॥११५॥ [इन्द्रवज्रा] ११५. उदाहरण : न मैं मंत्र ही जानता हूँ, न तंत्र ही, न ध्यान ही करता हूँ, न कोई गुरु की कृपा ही है। हम मद्य पीते हैं, महिला के साथ रमण करते है तथा कुल (कौल) मार्ग में लगे रह कर मोक्ष प्राप्त करते हैं । यह पद्य भी कर्पूरमंजरी सट्टक का है। वहाँ यह प्रथम यवनिकांतर का २२ वाँ पद्य है। इसकी भाषा भी प्राकृत है। टि०-जाणे-(जानामि); वर्तमान उत्तम पु० ए० व० । पिआमो (पिवामः), रमामो (रमामः), जामो-(यामः), वर्तमान उत्तम पु० ब० व० (प्राकृत रूप) । ११३. दक्खीआ-B. देखीआ, C. पेख्खीआ। णीला-C. णाई । सिंगा-C. सिंगे। पक्खीआ-C. देक्खीआ । राजंता-C. वज्जंता, N. रज्जन्ता । णीला..... णच्चन्ता-C. विज्जु मेहा मम्झे णच्चंता, 0. णाइ । ११४. दिज्जे-B. दिज्जे त राआ, C. दिज्जेइ हीरा जुअला पएसुं । पएसुं-A. पएसूं. N. पएसु । फर्णिदा-B. फणींदा, C. भर्णिदो । धुअ-B. धुव । अट्ठ-C. अट्ट । ११५. जाणे-C. जाणं । माक्खं-B. मोखं । वजामो-K. बजामो, N. च जामो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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