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________________ [१२९ २.१०२] प्राकृतपैंगलम् कलअं-< कलाः (छंदोनिर्वाहार्थ अनुस्वार) । जहा, परिणअससहरवअणं विमलकमलदलणअणं । विहिअअसुरकुलदलणं, पणमह सिरिमहुमहणं ॥१०९॥ [दमनक] १०९. उदाहरण: पूर्ण चन्द्रमा के समान मुखवाले, विमल कमलपत्र के समान नेत्र वाले, असुर कुल का दलन करनेवाले, श्रीमधुसूदन (कृष्ण) को प्रणाम करो। टि०-पणमह-प+Vणम+ह; आज्ञा म० पु० ब० व० । सेनिका छंद : ताल णंदए समुद्दतूरआ, जोहलेण छंद पूरआ । गारहाइँ अक्खराइंजाणिआ, णाअराअ जंप एअ सेणिआ ॥११०॥ ११०. जिस छंद में क्रमश: ताल, नन्द, समुद्र तथा तूर्य (ये चारों गुर्वादि त्रिकल 'ऽ।' के नाम हैं) हों तथा अंत में जोहल (रगण) से इस छंद को पूरा किया गया हो तथा ग्यारह अक्षर जानो;-नागराज पिंगल ने इसे सेनिका छंद कहा (सेनिका-51515151515) । जहा, झत्ति पत्तिपाअ भूमि कंपिआ, टप्यु खुंदि खेह सूर झंपिआ । गोडराअ जिण्णि माण मोलिआ, कामरूअराअवंदि छोडिआ ॥१११॥ [सेनिका] १११. उदाहरण: पैदल सेना के चरणों से पृथ्वी एकदम काँप उठी, (घोड़ों की) टापों से उड़ी धूल ने सूर्य को ढंक दिया, (उस राजा ने) गौडराज को जीत कर उसके मान को समाप्त कर दिया; तथा कामरूप-राज के बंदी को छुड़ा दिया । टिप्पणी-कंपिआ [=कंपिअ का दीर्घ रूप अथवा 'स्वार्थे क' का रूप *'कंपितिका' (भूमिः) से]; कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत । झंपिआ-(=झंपिअ-आच्छादितः, छंदोनिर्वाहार्थ दीर्घ रूप) । कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत । मोलिआ (-मोटितः), छोडिआ (मोचितः, Vछोड देशी धातु है), इनमें भी छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्घ स्वर पाया जाता है-वास्तविक रूप 'मोलिअ', 'छोडिअ' होगा । जिण्णि < जित्वा, पूर्वकालिक क्रिया रूप । मालती छंद : कुंतीपुत्ता, पंचा दिण्णा जाणीआ, अंते कंता एक्का हारा माणीआ । पाआ पाआ मत्ता दिट्ठा बाईसा, मालत्ती छंदा जंपंता णाएसा ॥११२॥ ११२. हे प्रिय, जहाँ प्रत्येक चरण में पाँच कुंतीपुत्र (गुरु) दिए हुए समझो, तथा अंत में एक हार (गुरु) माना जाय, प्रत्येक चरण में २२ मात्रा देखी जाय, नागेश पिंगल इसे मालती छंद कहते हैं । टिप्पणी-दिण्णा < दत्ता । जाणीआ, माणीआ-ये वस्तुतः 'जाणिअ, माणिअ' के छंदोनिर्वाहार्थ (मेत्रि काजा) विकृत रूप है। इस तरह १०९. परिणअ-C.O. पअलिअ । विविह-C. वलिअं । सिरि -A. सिर । ११०. गारहाइँ-N. गारहाइ। अक्खाराइँ-B. अक्खराणि, N. अक्खराइ । जाणिआ-C. जाणिआँ। जंप एह सेणिआ-A. "एअ०,C. जंपए सुसेणिआ, N. जम्पि एअ सेणिआ। १११. टप्पु C. टप्पि, O. टप्पे । गोडराअ-A. B.N. गौडराअ, C. K. गोलरा। जिण्णि-O. जीणि । वंदि-C.बंधि, 0.बंध । छोडिआ___C.K. छोलिआ, N. लोडिआ। ११२. कंता-C. कण्णा । दिट्टा-C.O. दिण्णा । बाईसा-C. वाइसा । छंदा-C. माला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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