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प्राकृतपैंगलम्
[२.१०६
१०५. उदाहरण:
जिन्होंने पीली जटा में गंगा स्थापित की है, जिन्होंने अर्धांग में नागरी (गौरी) धारण की है, जिनके सिर पर सुंदर चन्द्रकला है, वे शंकर तुम्हें मोक्ष दें।
टि०-पिंण जटावलि ठाविअ गंगा-एक टीकाकार ने इसे समस्त पद मानने की भूल की है :'पिंगलजटावलिस्थापितगंगः । वस्तुत: यह 'पिंगजटावल्यां स्थापिता गंगा' है।
ठाविअ-< स्थापिता; Vठाव + इअ । णिजंत क्रिया रूप से कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत स्त्रीलिंग, ए० व०। धारिअ-2 धृता; कर्मवाच्य भूतका० कृदंत रूप, स्त्री० । अधंगा-अधंग का छंदोनिर्वाहार्थ दीर्घ रूप; L अर्धांगे, अधिकरण ए० व० । णोक्खा -देशी शब्द, सं० 'रमणीया' के अर्थ में । तुह- तुभ्यं । दिज्जऊ-विधि प्रकार उ० पु० ए० व० का रूप, 'दद्यात्' । माक्खा -(=मोक्ख का छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्घ रूप) < मोक्षं, कर्म कारक ए० व० में प्रातिपदिक का प्रयोग । शालिनी छंद:_ कण्णो दुण्णो हार एक्को विसज्जे, सल्ला कण्णा गंध कण्णा सुणिज्जे ।
बीसा रेहा पाअ पाए गणिज्जे, सप्याराए सालिणी सा मुणिज्जे ॥१०६॥ १०६. दुगना कर्ण (दो बार दो गुरु), इसके बाद फिर एक हार (गुरु) दिया जाय, फिर क्रमश; शल्य (एक लघु), कर्ण (दो गुरु), सुने जायँ; प्रत्येक चरण में बीस मात्रा गिनी जायँ, सर्पराज पिंगल ने उसे शालिनी माना है । (शालिनी 5555575555 = ११ वर्ण) ।
टि०-विसज्जे-(=विसृज्यते), सुणिज्जे (=श्रूयते), गणिज्जे (=गण्यंते), मुणिज्जे (=मन्यते), कर्मवाच्य रूप । जहा,
रंडा चंडा दिक्खिदा धम्मदारा, मज्जं मंस पिज्जए खज्जए अ ।
भिक्खा भोज्जं चम्मखंडं च सज्जा, कोलो धम्मो कस्स णो भादि रम्मो ॥१०७॥ १०७. उदाहरण:
चंडा (कोपवती) मंत्रानुसार दीक्षित रंडा ही जहाँ पत्नी है; (जहाँ) मद्य पीया जाता है, और मांस खाया जाता है; भिक्षा भोजन है तथा चर्मखंड शैय्या है, वह कौल धर्म किसे अच्छा न लगेगा ?
यह उदाहरण कर्पूरमंजरी सट्टक से लिया गया है, वहाँ यह प्रथम यवनिकांतर का २३ वाँ पद्य है, इसकी भाषा प्राकृत है।
टि०-पिज्जए-(पीयते), खज्जए (खाद्यते), कर्मवाच्य रूप । दमनक छंद:
दिअवरजुअ लहु जुअलं, पअ पअ पअलिअ वलअं ।
चउ पअ चउ वसु कलअं, दमणअ फणि भण ललिअं ॥१०८॥ १०८. जहाँ प्रत्येक चरण में दो द्विजवर (अर्थात् दो बार चतुर्लघ्वात्मक गण; आठ लघु). फिर दो लघु तथा अंत में एक गुरु (इस प्रकार १० लघु तथा एक गुरु) प्रकटित हों, जहाँ चारों चरणों में (मिलाकर) चार और आठ अर्थात् ४८ मात्रा हों, फणिराज पिंगल उस ललित छंद को दमनक कहते हैं । (दमनक-|| III III Is=११ वर्ण)
टि०-पअलिअ-< प्रकटितं; कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत रूप । • १०६. विसज्जे-O. विसज्जो । सल्ला-C. सल्लो। गणिज्जे-0. मुणिज्ज । मुणिज्जे-C. सुणिज्जे, N. पुणिज्जे, O. भणिज्ज । १०७. दिक्खिदा-C. दिक्खिआ । खज्जए-0. खज्जिए । अ-K. आ। भिक्खा -C. भिषा । सज्जा-C. सज्जा । कोलो-C. कोण्णो । १०८. दिअवर-B. द्विजवर । लहु-B. लघु । फणि भण ललिअं-C. भण फणि भणिअं।
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