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२.१०३] वर्णवृत्तम्
[१२७ १०२. पहले द्विजवर (चतुर्लात्मक गण), फिर हार (गुरु), फिर दो लघु वलय (एक गुरु), तब हस्ततल (गुर्वंत सगण) हो, तथा प्रत्येक चरण में १४ मात्रा हो, वह सुमुखी छंद है, ऐसा कविवर सर्पराज (अही, पिंगल) ने कहा है। सुमुखी:-IIISIS = प्रत्येक चरण ११ वर्ण । .
टिप्पणी-परिट्टिअ-2 परिस्थिताः, परि+Vठा+इअ, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत प्रत्यय । चोदह-< चतुर्दश > चउद्दह > चोद्दह > चोदह । जंप-< जल्पति, वर्तमान प्र० पु० ए० व० शुद्ध धातु रूप । अही-< अहिः, छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्घ रूप । जहा,
अइवल जोव्वणदेहधणा, सिविअणसोअर बंधुअणा । ___ अवसउ कालपुरी गमणा परिहर बब्बर पाप मणा ॥१०३॥ [सुमुखी] १०३. उदाहरण:
यौवन, देह तथा धन अत्यन्त चंचल हैं; बांधव स्वप्न के समान हैं; कालपुरी में अवश्य जाना है। बब्बर कहता है, अपने मन को पाप से हटावो (अथवा अपने पापी मन को रोको)।
टिप्पणी-अइचल< अतिचलानि, कर्ता ब० व० में प्रातिपदिक का प्रयोग । जावणदेहधणा-< यौवनदेहधनानि (°धण प्रातिपदिक रूप का छन्दोनिर्वाहार्थ दीर्घरूप); जाव्वण < यौवनं ।
सिविअणसोअस्-< स्वप्नसोदरः कर्ताकारक ब० व०; सिविअण < स्वप्न, 'इ' का दो स्थान पर आगम; 'प' का लोप ।
कालपुरी-< कालपुर्यां, अधिकरण ए० व० । गमणा-(= गमण का दीर्घ रूप, छन्दोनिर्वाहार्थ) L गमनं; (भाववाचक क्रियामूलक पद) । पाप मणा-(१) पापात् मनः (परिहर); (२) पापं मनः परिहर । दोधक छंदः
चामर काहल जुग्ग ठवीजे, हार लहू जुअ तत्थ धरीजे ।
कण्णगणा पअ अंत करीजे, दोधअ छंद फणी पभणीजे ॥१०४॥ १०४. चामर (गुरु), तथा दो काहल (दो लघु) को स्थापित करना चाहिए, तब एक हार (गुरु) तथा दो लघु को दो बार धरना चाहिए, प्रत्येक पद के अन्त में कर्ण गण (गुरुद्वयात्मक गण) करना चाहिए-इसे फणी (सर्पराज पिंगल) दोधक छंद कहते हैं।
दोधक छंदः-5॥5॥5॥55 = ११ वर्ण । टि०-"जुग्ग-< 'युगं; द्वित्वप्रवृत्ति । ठवीजे-1 स्थाप्यते, धरीजे L ध्रियते, करीजे L क्रियते, ये तीनों कर्मवाच्य रूप हैं ।
पभणीजे-यह भी कर्मवाच्य रूप ही है, यद्यपि, टीकाकारों ने इसे कर्तृवाच्य रूप 'प्रभणति' माना है। तुक मिलाने के लिए इसे कर्मवाच्य रूप में प्रयुक्त किया गया है । इसका संस्कृत रूपान्तर "दोधकं छन्दः फणिना प्रभण्यते" होना चाहिए। जहा,
पिंग जटावलि ठाविअ गंगा, धारिअ णाअरि जेण अधंगा ।
चंदकला जसु सीसहि णोक्खा, सो तुह संकर दिज्जउ माक्खा ॥१०५॥ [दोधक] १०३. जाव्वण-A. B. C. K. जोव्वण, N. जुव्वण । सिविअण-A. सिवणअ, C. सिविणअ । बंधुअणा-N. E. 'जणा । अवसऊ-0. अउसउ । १०४. चामर-B. चामल । धरीजे-C. करीजे । अंत-C. अंतर । करीजे-C. दीजे । दोध छंद -N. दोधक छन्दह णाम करीजे, C. °फणीस भणीजे, 0. छंदु फणिदे भणीजे । १०५. ठाविअ-N. धारिअ । धारिअ-C. 0. ठाविअ । णाक्खा-B. चोक्खा । तुह-A. B. तुअ, 0. महु । दिज्ज-A. दीज्जउ। माक्खा-A. साक्खा, B. N. सोक्खा ।
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