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________________ १२४] प्राकृतपैंगलम् [२.९३ द्विगुरु गण), फिर हस्त (सगण) किया जाय और अंत में पुनः हार (गुरु) स्थापित किया जाय, उसे चम्पकमाला छंद कहा जाता है। (चंपकमाला-51555155) । टिप्पणी-ठवीजे, करीजे, कहीजे (स्थाप्यते, क्रियते, कथ्यते), कर्मवाच्य रूप । जहा, ओग्गरभत्ता रंभअपत्ता, गाइक घित्ता दुद्धसजुत्ता । मोइणिमच्छा णालिचगच्छा, दिज्जइ कंता खा पुणवंता ॥९३॥ [चंपकमाला] ९३. उदाहरण: केले के पत्ते में दूध से युक्त ओगर का भात तथा गाय का घी, मोइणि मत्स्य (विशेष प्रकार की मछली) तथा नालीच के गुच्छे का साग प्रिया के द्वारा दिया जाता है और पुण्यवान् व्यक्ति खाता है। टिप्पणी- भत्ता, पत्ता, जुत्ता, पित्ता, "मंता इन सभी में छन्दोनिर्वाहार्थ पदांत 'अ' को दीर्घ बना दिया गया है। सभअपत्ता < रम्भापत्रे, यहाँ 'पत्त' (पत्ता) का अधिकरण ए० व० के अर्थ में शुद्ध प्रातिपदिक प्रयोग है। गाइक धित्ता (गाय का घी) 'क' के लिए दे० परसर्ग । दिज्जइ - दीयते, कर्मवाच्य रूप । खा < खादति-वर्तमान प्र० पु० ए० व० के लिए शुद्ध धातु का प्रयोग । सारवती छंद : दीह लहू जुअ दीह लहू, सारवई धुअ छंद कहू। अंत पओहर ठाइ धआ, चादह मत्त विराम कआ ॥९४॥ ९४. जहाँ प्रत्येक चरण में क्रम से दीर्घ के बाद दो लघु, फिर दीर्घ के बाद एक लघु तथा अंत में पयोधर (जगण) तथा फिर ध्वज (15) स्थापित कर चौदह मात्रा पर विराम किया जाय, उसे सारवती छंद कहो । (सारवती :-5||5||5) टिप्पणी-कहू (कहु) < कथय-आज्ञा म० पु० ए० व०; पदांत 'उ' को छंदोनिर्वाहार्थ दीर्घ कर दिया है। ठाइ < स्थापयित्वा-पूर्वकालिक किया । कआ < कृतः > कओ > कअ (पदांत 'अ' का दीर्धीकरण) । जहा, पुत्त पवित्त बहुत धणा, भत्ति कुटुम्बिणि सुद्धमणा । हक्क तरासइ भिच्च गणा को कर बब्बर सग्ग मणा ॥९५॥ [सारवती] ९५. उदाहरणः पुत्र पवित्र हो, (घर में) बहुत धन हो, पत्नी पवित्र मनवाली तथा भक्त (पतिव्रता) हो, नौकर हाँक (डाट) से ही डरते हों, तो बब्बर कहता है, स्वर्ग की इच्छा (मन) कौन करे ? टिप्पणी-तरासइ < व्यस्यति । हक्क < हक्कारेण (हाँक), करण ए० व० । कर < करतु-अनुज्ञा, प्र० पु० ए० व० । सग्ग < स्वर्ग-अधिकरण ए० व० । सुषमा छंद : कण्णो पढमो हत्थो जुअलो, कण्णो तिअलो हत्थो चउथो । ९३. ओग्ग-A. ओगर । दुद्ध-C. K. दुध्ध । सजुत्ता-A. सूजत्ता, C. सुज्जुत्ता, N. सुजुत्ता । णालिच-B. K. नालिच । पुणवंताC.O. पुणमन्ता । ९४. धुअ-A. धुव । ठाइ-N. ठान । चादह-C.O. चउदह, N. चोदह । ९५. हक्क-C.O. हक्के । ९६. पठमो-0. पअलो । जुअलो-A. युवलो, C. जुग्गलो । चउथो-C. O. पअलो । सुसमा-A. सूसमा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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