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११८] प्राकृतपैंगलम्
[२.७५ टि०-विप्पओ, णरेंदओ-(विप्रकः, नरेंद्रक:); इसमें 'अओ' (सं० स्वार्थे 'कः' से युक्त कर्ता ए० व०) विभक्ति चिह्न है। ये भी प्राकृत रूप हैं ।
अंतिणा, भंतिणा; अंतिणा की व्याख्या 'अंते' की गई है।
'भंतिणा' की उत्पत्ति का पता नहीं है, कुछ इसे 'भवति' मानते हैं, कुछ 'भक्त्या' (भत्तिणा) । वस्तुतः 'अंतिणा' की तुक पर 'भंतिणा' रख दिया गया है। इतने पर भी 'णा' की समस्या बनी रहती है। यह छंदोनिर्वाहार्थ प्रयुक्त पादपूरक है, या प्राकृत के करण कारक ए० व० चिह्न 'णा' से इसका संबंध है ?
जहा,
स जअइ जणद्दणा असुरकुलमद्दणा ।
गरुडवरवाहणा बलिभुअणचाहणा ॥७५॥ [कमल] ७५. उदाहरण:
असुर कुल का मर्दन करनेवाले, गरुड के श्रेष्ठ वाहन (पर बैठने) वाले, बलि नामक दैत्य के भुवन (राज्य) की इच्छा करनेवाले, जनार्दन की जय हो ।
टिप्पणी-जअइ< जयति ।
जणद्दणा, "मद्दणा, “वाहणा, "चाहणा-ये कर्ताकारक ए० व० रूप हैं, जिनके पदांत 'अ' को दीर्घ बना दिया गया है। (जनार्दनः, 'मर्दनः, 'वाहन, •*चाहनः (इच्छु:) 'चाहण, Vचाह < सं० इच्छति, (हि० चाहना, रा० चाहवो (उ० छा' बो)। नवाक्षरप्रस्तार, महालक्ष्मी छंदः
दिट्ठ जोहा गणा तिण्णिआ, णाअराएण जा विण्णिआ ।
मास अण पाअ ट्ठिअं जाण मुद्धे महालच्छिअं ॥७६॥ ७६. हे मुग्धे, जिस छन्द के प्रत्येक चरण में तीन योधा (मध्यलघु पंचकला या रगण) का वर्णन किया गया है, तथा जिनके प्रत्येक चरण में एक महीने की आधी अर्थात् पन्द्रह मात्रा स्थित हों, उसे महालक्ष्मी छन्द समझो । (महालक्ष्मी :-515515515) ।
टिप्पणी-णाअराएण-< नागराजेन । ट्टि-< स्थितां। जाण-< जानीहि, अनुज्ञा म० पु० ए० व० ।
महालच्छिअं-< महालक्ष्मीकां > महालच्छिअं, अपभ्रंश में प्रायः दीर्घ स्वरान्त शब्दों की ह्रस्वांत प्रवृत्ति देखी जाती है। इस प्रकार अप० में 'अकारांत' स्त्रीलिंग रूप भी पाये जाते हैं, दे० भूमिका । जहा,
मुंडमाला गला कंठिआ णाअराआ भुआ संठिआ ।
वग्घछाला किआ वासणा चंडिआ पाउ सिंहासणा ॥७७॥ [महालक्ष्मी] ७७. उदाहरण:
जिसके गले में मुण्डमाला की कंठी (गले का हार) है, हाथ में सर्प स्थित है, जिसने व्याघ्रचर्म को वस्त्र बना रखा है, वह सिंह पर स्थित चण्डिका (मेरी) रक्षा करे ।।
टिप्पणी-गला-< गले, यह अधिकरण ए० व० के अर्थ में प्रयुक्त शुद्ध प्रातिपदिक रूप 'गल' का दीर्धीकृत रूप है। अथवा इसे 'गलक' (गल+क) > गलअ-गलउ > गला के क्रम से 'आकारांत' पुल्लिंग शुद्ध प्रातिपदिक रूप भी माना जा सकता है । (तु० हि० गला) । ७५. स जअइ-C.O. विजअइ । जणदणा-C. जणदणा । "मद्दणा-C. मदनणा । भुअण-B. N. भुवण । ७६. णाअराएणB. णागराएण । विण्णिआ-C. विण्णिऔं, B. वण्णिआ । ट्ठिअं-0. त्थिअं । जाण-B. जाणु । ७७. गला-0. गले । संठिआN. सट्ठिआ । वग्घछाला-C. वध्यछाआ, K. वध्यछाला N. वग्घछल्ला ।
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