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________________ २.७१] वर्णवृत्तम् . [११७ जहा, जेण जिण्णु खत्ति वंस रिट्ठि मुट्ठि केसि कंस । बाणपाणि कट्टिएउ सोउ तुम्ह सुक्ख देउ ॥७१॥ [मल्लिका] ७१. उदाहरण : जिन (परशुराम) ने क्षत्रिय वंश को जीता तथा सहस्रार्जुन के हाथ काटे, तथा जिन (कृष्ण)ने अरिष्ट, मुष्टिक, केशी तथा कंस को जीता तथा बाणासुर के हाथ काटे, वे (परशुराम और कृष्ण) तुम्हें सुख प्रदान करें। टिप्पणी-जिण्णु < जितः, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत प्रत्यय 'ण' (< प्रा० भा० आ० 'न'), 'उ' कर्ताकारक (कर्मवाच्य कर्मकारक) ए० व० का चिह्न । कट्टिए-2 कर्तिताः > कट्टिआ-कट्टिए > कट्टिएउ । इसमें एक साथ कर्ता ब० व० 'ए' प्रत्यय तथा 'उ' (कर्ता कर्म ए० व० का अपभ्रंश का सुप् चिह्न) पाया जाता है। संभवत: 'उ' का प्रयोग छन्दोनिर्वाहार्थ हुआ है। तुंग छंद : तरलणअणि तुंगो पढमरस सुरंगो । णगण जुअल बद्धो गुरु जुअल पसिद्धो ॥७२॥ ७२. हे चंचल नेत्रों वाली सुंदरि, पहले दो नगणों से युक्त छ: सुंदर लघु हों, तथा बाद में दो गुरु हों, वह तुंग नामक छंद है। (तुंग-II | 55) टि०-'तुंगो', सुरंगो, बद्धो, पसिद्धो; ये सब प्राकृतीकृत रूप हैं। जहा, कमलभमरजीवो सअलभुअणदीवो । दलिअतिमिरडिंबो अइ तरणिबिंबो ॥७३॥ [तुंग] ७३. उदाहरण: कमल तथा भ्रमर (अथवा कमल में छिपे भ्रमरों) का जीवन, समस्त भुवन का दीपक, सूर्यबिंब, जिसने अंधकार के समूह का नाश कर दिया है, उदित हो रहा है। टि०-उअइ-उदयति, वर्तमानकालिक प्र० पु० ए० व० रूप । जीवो, 'दीवो, "डिंबो, "बिंबो-ये सब कर्ता कारक ए० व० के रूप हैं, जिनमें प्राकृत विभक्ति चिह्न 'ओ' का प्रयोग हुआ है। ये सब प्राकृतीकृत रूप हैं । कमल छंद : पढम गण विप्पओ बिहु तह णरिंदओ। गुरु सहिअ अंतिणा कमल इम भंतिणा ॥७४॥ ७४. जहाँ पहला गण विप्र (चतुर्लघ्वात्मक गण) हो, इसके बाद दूसरा गण नरेन्द्र (मध्यगुरु जगण) हो, तथा अंत में गुरु साथ में हो, इसे कमल छंद कहते हैं। (कमल || 15 15) ७१. जिण्णु-A. जिणू । रिट्टि मुट्टि-C. रिट्ठि मुठ्ठ K. रिट्टि मुट्टि । सोउ-A. B. N. सोउ, C. K. O. सोइ । तुम्ह-0. देउ। सुक्ख-A. सूक्ख, B. N. सुक्ख, C. K.सुम्भ । ७२. रस-C. N. गण । सुरंगो-A. सूरंगो । जुअल-A. B. युगल । ७३. जीवो-0. जीओ। दीवो-B.O. दीओ। डिंबो-A.C. डिभो । उअइ-B. जअइ । ७३-०.७२ । ७४. तह-A. जह। णरिदओA. B. णरिंदओ, K. N. O. णरेंदओ । सहिअ-N. सहित । अंतिणा-B. अंतिण, C. एंतिणा। इम-B.C. K. O. एम । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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