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२.३४] वर्णवृत्तम्
[१०७ ३३. जहाँ दो कर्ण (गुरुद्वय) अर्थात् चार गुरु और एक हार (गुरु) (इस प्रकार कुल पाँच गुरु) हों, वह पृथ्वीतल में सारभूत संमोहा नामक छंद दिखाई देता है । (55555)
टि०-भूअं-< भूतं; कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत नपुंसकलिंग रूप (प्राकृतीकृत रूप)। भूअंतासारा-< भुवनांत:सारः; यहाँ भी छंदोनिर्वाह तथा तक के लिए दीर्धीकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है। जहा,
उदंडा चण्डी दूरित्ताखण्डी ।
तेल्लाका साक्खं देऊ मे मोक्खम् ॥३४॥ [संमोहा] ३४. उदाहरण:उद्भट चण्डी, जो पापों (या दुःखों) का खण्डन करती है, मुझे त्रैलोक्य का सुख मोक्ष दे।
टिप्पणी-दुरित्ता खंडी < दुरितखंडिनी, 'दूरित्ता' में 'ऊ' तथा 'आ' में दीर्धीकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है। साथ ही यह अर्धतत्सम रूप है।।
साक्खं < सौख्यं । माक्खं < मोक्षं । । तेलाक्का < त्रैलोक्य > तेलाक्क । 'आ' कारांत छंदोनिर्वाह के लिए दीर्धीकरण की प्रवृत्ति है । हारी छंदः
आईहि अंते हारे सजुत्ते ।।
मज्झक्वगंधो हारी अ छंदो ॥३५॥ ३५. जो आदि तथा अंत में हार (गुरु) से युक्त हो, मध्य में एक गंध (लघु) हो, वह हारी छंद है। (55155)। टिप्पणी-आईहि-'आई' (आदि) से अधिकरण कारक ए० व० रूप 'आइहि' होगा । 'ई' का दीर्धीभाव छंदोनिर्वाह के लिए है। हारे < हारेण; करण ए० व० । जहा,
जा भत्तिभत्ता धम्मक्कचित्ता ।
सा होइ णारी धण्णा पिआरी ॥३६॥ [हारी] ३६. उदाहरण:जो पति की भक्त तथा धर्मपरायण हो, वह नारी धन्य तथा (पति को) प्यारी होती है। .
टिप्पणी-पिआरी प्रिया; पिआ+री । आ० भा० आ० स्वार्थे 'प्रत्यय 'रा-री' से इसकी निष्पत्ति जान पड़ती है। तु० राज०-प्यारो-प्यारी (पियारी), हि०-प्यारा-प्यारी । हंस छंदः
पिंगल दिट्ठो भ इइ सिट्ठो ।
कण्णदु दिज्जो हंस मुणिज्जो ॥३७॥ ३७. पिंगल के द्वारा दृष्ट भगण को दे कर शेष स्थान में कर्ण (गुरुद्वय) को दो, इसे हंस छंद समझो । (5I55) टिप्पणी-द्दइ<दइ<*दइअ (दत्त्वा), यहाँ छंदोनिर्वाह के लिए 'द' का द्वित्व कर दिया गया है।
दिज्जो-इसकी व्याख्या टीकाकारों ने 'दत्त्वा' की है, जो गलत है। वस्तुत: यह विधि प्रकार (ओप्टेटिव मूड) का रूप है। दिज्जो दि (Vद)+ज्ज+ओ (अनुज्ञा म० पु० ब० व० का प्रत्यय) । यद्यपि खड़ीबोली हि० में 'दिज्जो' का ३४. उदंडा-C. उदंडा । दूरित्ता-B.C. दुरित्ता । तल्लोक्का-0. तिल्लोआ । साक्खं-सुक्खं । देऊ-0.देउ । ३५. आई-C. आइ । हारे-A. B. कण्ण । मज्झे-C. मझ्झे । छंदो-A. B.O.बंधो । ३६. भत्ता-C.0. जुत्ता । ३७. पिंगल-0. पिंगले । सिट्टो
C. सिठ्ठो । भ इ-A. भ द्देइ । कण्णदु-C. कण्ण हु। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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