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________________ १०६] प्राकृतपैंगलम् [२.३० लघु हो) वह धारी छंद है । (5151) टिप्पणी-धारि-छन्दोनिर्वाह के लिए 'ई' का ह्रस्वीकरण । सारि < शर । 'सर' (< शर) को छन्दोनिर्वाह के लिए 'सार' (अ का दीर्धीकरण) बना दिया है तथा 'धारि' की तुक के लिए उसे 'सारि' रूप दे दिया गया है। जहा, देउ देउ सुब्भ देउ। जासु सीस चंद दीस ॥३०॥ [धारी] ३०. उदाहरण:देवदेव (महादेव), जिनके सिर पर चंद्र दिखाई देता है, (तुम्हें) शुभ प्रदान करे । टिप्पणी-दे-देवः<देओ<देउ; कर्ता कारक ए० व० । सीस<शीर्षे, अधिकरण ए० व० । दोस<दृश्यते>दीसइ, यहाँ कर्मवाच्य क्रिया के शुद्ध धात्वंश का प्रयोग है। नगाणिका छंदः पओहरो गुरुत्तरो । णगाणिआ स जाणिआ ॥३१॥ ३१. जहाँ गुरूत्तर (जिसके अंत में गुरु हो) पयोधर (मध्यगुरु जगण) हो उसे नगाणिका छंद समझा जाता है। (ISIS) टिo-जाणिआ-टीकाकारों ने इसे 'ज्ञायते', 'ज्ञातव्या' आदि रूपों से अनूदित किया है। संभवतः यह कर्मवाच्य भूतकालिक कृदंत रूप है तथा इसका संबंध सं० 'ज्ञाता' से जोड़ा जा सकता है। जहा, सरस्सई पसण्ण हो । कवित्तआ फुरंतआ ॥३२॥ [नगाणिका) ३२. उदाहरण:(यदि) सरस्वती प्रसन्न हो, (तो) कवित्व स्फुरित होते हैं। टि०-कवित्तआ-< *कवित्वानि; कर्ता कारक ब० व० । फुरंतआ-टीकाकारों ने इसे या तो वर्तमानकालिक रूप (स्फुरन्ति) माना है, या फिर अनुज्ञा रूप (स्फुरंतु) । मेरी समझ में यह वर्तमानकालिक कृदंत का ब० व० रूप है। संस्कृत में मेरे मत से इसकी व्याख्या होगी-'कवित्वानि स्फुरन्ति (सन्ति)' जहाँ 'फुरन्ति' क्रिया न होकर नपुंसक लिंग कर्ता कारक ब० व० रूप है (स्फुरत् स्फुरती स्फुरन्ति)। ध्यान देने की बात तो यह है कि खड़ी बोली हिंदी में वर्तमानकाल के रूप प्रायः इसी वर्तमानकालिक कृदंत की देन है, जिनके साथ सहायक क्रिया के 'हूँ', है, हैं' रूप लगाये जाते हैं:-तु० फड़कता हूँ, फड़कता है, फड़कते हैं। पंचाक्षर प्रस्तार, सर्वगुरु संमोहा छंदः संमोहारूअं दिट्ठो सो भूअं । बे कण्णा हारा भूअंतासारा ॥३३॥ ३०. सुब्ध-C. सम्भ, K. O. सुभ्भ, N. संभु । ३१. गुरुत्तरो-C. गुरुतरो। णगाणिआ-C. णगाणिऑ, 0. णगालिआ।। जाणिआ-C. जाणिऔं । ३२. पसण्ण-C.O. पसण्णि । फुरंतआ-C. फुरंतु ते, K. फुरं तआ, N. फुरत्तओ । 0. फुरंततो। ३३. संमोहा-C. सम्मोहा। ट्ठिो-C. दिछो । भूअंता-K. भूअत्ता । बे... सारा-C. भूवण्णा सारो वे वण्णा हारो । हारा-O. हारो। सारा-0. सारो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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