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१.२०८] मात्रावृत्तम्
[९७ [अथ मरहट्ठा छंदः] एहु छंद सुलक्खण भणइ विअक्खण जंपइ पिंगल णाउ,
विसमइ दह अक्खर पुणु अट्ठक्खर पुणु एगारह ठाउ । गण आइहि छक्कलु पंच चउक्कुलु अंत गुरु लहु देहु,
सउ सोलह अग्गल मत्त समग्गल भण मरहट्ठा एह ।।२०८॥ २०८. मरहट्टा छंदः
यह छन्द (मरहट्ठा) सुलक्षण है, ऐसा चतुर पिंगल नाग कहते हैं; यहाँ दस मात्रा (यहाँ 'अक्षर' शब्द का अर्थ मात्रा लेना होगा, क्योंकि यह मात्रिक छंद है), फिर आठ मात्रा, फिर ग्यारह के स्थान पर विश्राम होता है; आदि में षट्कल, फिर पंचकल तथा चतुष्कल गण तथा अंत में क्रमश: गुरु लघु दो, समग्र छंद में सोलह अधिक सौ (एक सौ सोलह) मात्रा होती हैं । इसे मरहट्ठा छंद कहो ।
(मरहट्ठा-१०+८+११=२९x४=११६ मात्रा) । टिप्पणी-विसमइ-< विश्राम्यति; वर्तमानकालिक क्रिया प्र० पु० ए० व० ।
ठाउ< स्थाने, अधिकरण कारक ए० व०, 'उ' सम्भवतः 'व' का रूप है, जो ‘णाउ' की तुक पर 'ठाउ' हो गया । जहा, जसु मित्त धणेसा ससुर गिरीसा तह विहु पिंधण दीस,
जइ अमिअह कंदा णिअलहि चंदा तह विहु भोअण वीस । जइ कणअ सुरंगा गोरि अधंगा तह विहु डाकिणि संग,
__ जो जस हि दिआवा देव सहावा कबहु ण हो तसु भंग ॥२०९॥ २०९. उदाहरण:
यद्यपि (शिव के) मित्र कुबेर है, श्वसुर पर्वतों के राजा हिमालय हैं, तथापि उनके वस्त्र दिशायें हैं; यद्यपि अमृत का कंद चन्द्रमा (उनके) समीप है, तथापि उनका भोजन विष है; यद्यपि कनक के समान सुन्दर रंग की पार्वती अर्धांग में है, तथापि उनके साथ में डाकिनियाँ रहती हैं, दैव ने जिसे जैसा स्वभाव दे दिया है, उस स्वभाव का कभी भी भंग नहीं होता।
टिप्पणी-जसु-< यस्य > जस्स > जासु > जसु । ससुस्-< श्वसुरः, कर्ताकारक ए० व० में प्रातिपदिक का प्रयोग ।
धणेसा, गिरीसा, कंदा, चंदा, अधंगा, सहावा-इन सभी शब्दों में पदांत 'अ' को छंदोनिर्वाहार्थ दीर्घ कर दिया गया है।
तह वि-< तथापि; हु < खलु । पिंधण-< पिधानं, दे० १.९८ । दीस-< दिशा > दिसा > अप० दिस । छन्दोनिर्वाहार्थ 'इ' का दीर्धीकरण ।
अमिअह-< अमृतस्य; सम्बन्धकारक ए० व० 'ह' विभक्ति चिह्न । २०८. सुलक्खण-K. सुलखण । भणइ-A. भणहि, B. भणहु । णा-A. C. णाओ, N. णाअ । पुणु-N. पुण, C. पुणि। अट्ठक्ख र-A. C. अठ्ठक्खर, N. अठ अक्खर । एगारह-A. N. एग्गारह । लहू-K. लहु । भण-N. भण । मरहट्ठा-A. B. मरहठ्ठा, N. मरहट्टा । २०९. जसु-B. N. जसु, C. K. जइ । धणेसा-0. धणेस । ससुर-N. सुसुर । पिंधण-N. पीधण । दीस-B. दीसा । णिअलहि-B. N. णिअरहि। तह विहु-A. तदविहु । डाकिणि-A. डाइनि, C. आसण । जस हि-K. जस, B. जसहिँ, C. जासु, जस हि। दिआवा-C. दिआवे-0. देआवा । देव-0. देउ। सहावा-C. सुहावे । कबहु-C. कवहू। हो तसु भंग-0. होत सुभंग । २०९-0. १९८ ।
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