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१.२०४] मात्रावृत्तम्
. [९५ चलु दमकि दमकि दलु चल पइकबलु घुलकि घुलकि करिवर ललिआ,
वद मणुसअल करइ विपख हिअअ सल हमिर वीर जब रण चलिआ ॥२०४॥ [जलहरण] २०४. उदाहरण
जब वीर हमीर रण की ओर चला, तो खुरों से पृथ्वी को खोद खोदकर ण ण ण इस प्रकार शब्द करते, घर्घररव करके घोड़े चल पड़े टटट इस प्रकार शब्द करती घोड़ों की टापें पृथ्वी पर गिरती हैं, उसके आघात से पृथ्वी घुसती है, तथा घोडों के चँवर बहुत सी दिशाओं में चकमक करते हैं (जाज्वल्यमान हो रहे है); सेना दमक दमक कर चल रही है; पैदल चल रहे हैं, घुलक घुलक करते (झूमते) हाथी हिल रहे हैं (चल रहे हैं); वीर हमीर जो श्रेष्ठ मनुष्यों में है, विपक्षों के हृदय में शल्य चुभ रहा है (पीडा उत्पन्न कर रहा है)।
टिप्पणी-खुर-2 खुरेण अथवा खुरैः, करण कारक रूप । खुदि-Z क्षोदयित्वा, पूर्वकालिक क्रिया रूप ।
णणणगिदि, टटटगिदि-(णणणगिति, टटटगिति)-'त' का 'द'; अप० में कई स्थानों पर स्वरमध्यग अघोष 'क, त, प' का 'ग, द, ब' पाया जाता है। ठीक यही बात 'ख, थ, फ' के साथ भी पाई जाती है, जिसके 'घ, ध, भ' रूप पाये जाते हैं । दे० हेमचन्द्र ८-४-३९६ (अनादौ स्वरादसंयुक्तानां क-ख-त-थ-प-फां-ग-ध-द-ब-भाः)
दमकि दमकि, घुलकि-घुलकि-अनुकरणात्मक क्रिया Vदमक, तथा Vघुलक के पूर्वकालिक रूप । विपख-2 विपक्ष 7 विपक्ख (सरलीकरण की प्रवृत्ति) । हिअअ-2 हृदयेषु, अधिकरण ब० व० के लिए प्रातिपदिक का प्रयोग । सल-< शल्य > सल्ल > साल, यह 'साल' का छन्दोनिर्वाहार्थ ह्रस्वीकृत रूप है। ललिआ-< ललिताः; कर्मवाच्य भूतकालिक कृदन्त ब० व० ।
चलिआ-2चलितः; कर्मवाच्य भूतकालिक कृदन्त ए० व० 'पदांत' 'अ' का छन्दोनिर्वाहार्थ (तुक के लिए) दीर्धीकरण । ___ [अथ मअणहरा छन्दः]
पिअ भणमि मणोहरु पल्लि पओहरु सुहव सुहाव सुसिद्ध खणो थिर करहि मणो, जइ राअ विवत्तिउ अणुसर खत्तिअ कट्ठिकए बहि छंद भणो जिम खलइ रिणो । बि बि सल्ल पहिल्लिअ तुरअ वहिल्लिअ हअ गअ पअ पसरंत धरा गुरु सज्जिकरा,
जइ जग्गि णिरुत्तउ दहगणजुत्तउ चउ संधिहि चालीस धरा भणु मअणहरा ॥२०५॥ २०५. मअणहरा (मदनगृह) छंद
हे प्रिये, मैं सुन्दर बात कह रहा हूँ; पयोधर (जगण) को हटा कर (अर्थात् यहाँ जगण कभी न देकर) अपने सुन्दर स्वभाववाले स्निग्ध मन को क्षण भर के लिए स्थिर कर लो । यदि इस छन्द के विषय में सुनने की तुम्हारी इच्छा (राग) है, तो क्षत्रिय प्रस्तार का अनुकरण कर अन्य छंदःप्रस्तारों से बाहर निकाकलर इस छंद को कहो । पहले आरम्भ में दो शल्य (लघु) स्थापित कर बाद में हय, गज, पदाति (अर्थात् चतुर्मात्रिकों) को रख कर अन्त में गुरु को सजाकर यदि ध्यान देकर (जागकर) दस गण से युक्त चालीस मात्रा चारों चरणों में कही गई हैं, तो इसे मदनगृह छंद कहो । २०४. खुर खुर-A. खुखुदि । खुदि खुदि-C. बँदि खुलुक, A.O. खुलुकि, N. खुरि खुलकि । कलइ-C. कइ, N. कलहि । णणणगिदि-N. गृदि । टटटगिदि-N. "गृदि । पलइ-N. परइ । टपु-A. टबु, C. टउ, N. टप । चमले-N.C.0. चमरे । चल-C. दपु । दलु-C. दल, K. बलु । ललिआ-A. ललिए, C. कलिव ललिअ, K. चलिआ । "सल-N. सिल । जब रण चलिआ-A. जइ रण चलिए । हंमिर...-0. हंवीर ज खणे रण चलिआ । २०५. भणमि-A. C. भणइ । पल्लि-C. मिलिअ, 0. मेल्लि । सुहव-A. N. O. सुहअ । विवत्तिअ-0. विवत्तिउ । जिम-0. जेम । खलइ रिणो-C. खल विमणो । हअ गअ पअ-N. O. रह हअ गअ । सज्जिकरा-0. सज्जिवरा । चालीस-0. चालिस।
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