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८८] प्राकृतपैंगलम्
[१.१८७ एक्कक-2 एकैकः; विअक्खण < विचक्षणान्, कर्म कारक ब० व० ।
पअ पअ आइहि गुरुआ पिंगल पभणेइ सअल णिब्भंती ।
छंद पवंगम दिट्ठो मत्ताणं एकबीसंती ॥१८७॥ [गाहा] १८७. समस्त (शास्त्रों में) निर्धांत पिंगल कहते हैं कि जहाँ प्रत्येक चरण में आरम्भ में गुरु हो तथा इक्कीस मात्रा हो, वह प्लवंगम छन्द देखा गया है (होता है)।
टिo-मत्ताणं-मत्ताणं मात्राणां; संबंधकारक ब० व० । एकबीसंतो-2 एकविंशति ।
तिक्कलु चउकल पंचकल तिअ गण दूर करेहु ।
छक्कलु तिण्णि पलंत जेहि लहु गुरु अंत मुणेहु ॥१८७क। [दोहा) १८७ क. त्रिकल, चतुष्कल तथा पंचकल इन तीन गणों को दूर करो, जहाँ तीन षट्कल पड़ें तथा अन्त में लघु एवं गुरु समझो।
(प्लवंगम=३ षट्कल-लघु+गुरु=१८+१+२=२१ मात्रा) जहा,
णच्चइ चंचल विज्जुलिआ सहि जाणए, मम्मह खग्ग किणीसइ जलहरसाणए ।
फुल्ल कलंबअ अंबर डंबर दीसए, पाउस पाउ घणाघण सुमुहि वरीसए ॥१८८॥ [प्लवंगम] १८८. उदाहरण
हे सखि, चंचल बिजली चमक रही है, ऐसा जान पड़ता है मानो कामदेव बादल के शाण पर खड्ग को तीक्ष्ण बना रहा है । कदंब फूल गये हैं, (आकाश में) बादल घुमड़े हुए दिखाई दे रहे हैं । हे सुमुखि, वर्षाकाल आ गया है, बादल बरस रहा है।
टिप्पणी-जाणए-(ज्ञायते), दीसए (दृश्यते), वरसए (*वर्षते वर्षति)। ये तीनों आत्मनेपदी रूप है। इनका प्रयोग छन्दोनिर्वाहार्थ हुआ है।
फुल्ल-कर्मवाच्य-भाववाच्य भूतकालिक कृदन्त रूप । कअंबअ-< कदंबका; कर्ताकारक ब० व० । पाऊ< प्राप्तः (प्रावृट् प्राप्ता), कर्मवाच्य भाववाच्य भूतकालिक कृदंत रूप । [अथ लीलावतीच्छंदः] गुरु लहु णहि णिम्म णिम्म णहि अक्खर पलइ पओहर विसम समं,
जहि कहुँ णहि णिम्मह तरल तुरअ जिमि परस विदिस दिस अगमगमं । गण पंच चउक्कल पलइ णिरंतर अंत सगण धुअ कंत गणं,
परिचलइ सुपरि परि लील लिलावइ कल बत्तीस विसामकरं ॥१८९॥ १८७. पभणेइ-B. भणइ । णिब्भंति-A. णिम्भति, B. णिभंता, C. K. णिम्भंती, N. णिभंता । १८७ क. केवलं A.C. प्रतिद्वये K. संस्करणे च प्राप्यते । तिक्कलु-C. तिकल । चउकल-C. चउक्कल । छक्कलु-C. छकल। पलंत-C. पल अंत । जेहि-C. प्रतौ लुप्तं वर्तते । गुरु-C. गुरुआ । मुणेहु-A. मुणेह । 0. न प्राप्यते । १८८. विज्जुलिआ-A. विज्जुलिओ, 0. विज्जुलआ । मम्मह-A.C.O. वम्मह, N. मम्भह । किणीसइ-B. कणीसइ, C. किणीसइ, 0. कीणीसइ । N. "खग्गकिणी सइ । फुल्लA.C. फुल्ल । कलंबअ-A. कदम्बअ, B. कलंबअ, C. कदंव कि (A. प्रतौ तृतीय चतुर्थपंक्त्योर्विपर्यास: दृश्यते) पाऊ-C. समअ, 0. आउ। १८८-C. १८४ । १८९. णहि णिम्म-O. णिम्म णहि । कहु-N. कहू । णिम्मह-C. N. णिम्म । तुरअ-B. तुरग, C. तुरआ । जिमि-A. जिम । दिस-A. दिसि । गमं-A. त्रयं । कंत-C. N. कण्ण । गणं-B. गुणं । सुपरि परि लील-N. सुपरिलील । लिलावइ-B. लीलावइ, C. णिलावइ । कल-0. पअ । बत्तीस-N. वतीसु । विसाम करं-A. विसामकरे B. वीसामकरं । १८९-C. १८५ ।
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